Home हेल्थ इंटरस्टिशियल इम्प्लांट द्वारा सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित महिलाओं का सफल इलाज संभव

इंटरस्टिशियल इम्प्लांट द्वारा सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित महिलाओं का सफल इलाज संभव

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जयपुर , दिव्यराष्ट्र/नारायणा हॉस्पिटल में सर्वाइकल कैंसर के दोबारा होने या पूरी तरह जड़ से ख़त्म न होने के मामले का सफलतापूर्वक इलाज किया जा रहा है । मरीज के इलाज में इंटरस्टिशियल इम्प्लांट प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया को रेडिएशन ऑन्कोलॉजी की डायरेक्टर, डॉ. निधि पाटनी और उनकी अनुभवी टीम लगातार बखूबी अंजाम दे रही है। एक मामले में 41 वर्षीय महिला को छह महीने से योनि द्वार से बदबूदार पीला पानी व रक्तस्त्राव की समस्या हो रही थी। साथ ही संपर्क में आने पर योनिद्वार से ब्लीडिंग भी हो रही थी। जांच प्रक्रिया से गुजरने के बाद, उन्हें प्रथम स्टेज सर्वाइकल कैंसर होने का पता चला। इसके लिए रोगी की सर्जरी, कीमोथैरेपी एवं रेडिएशन थैरेपी हुई। इन्हें चार साल ठीक रहने के बाद उसी तरह के लक्षण फिर से नज़र आने लगे। जांच में कैंसर के दोबारा उभरने की पुष्टि हुई। कैंसर की स्थिति को देखते हुए पुनः सर्जरी कर पाना संभव नहीं था। उन्हें पहले पूरी रेडिएशन थेरेपी दी जा चुकी थी। ऐसे में पारंपरिक तरीके के साथ दोबारा रेडिएशन देने से कई गंभीर साइड इफेक्ट होने की आशंका थी। इसका विपरीत प्रभाव उनके मूत्राशय, मलाशय और छोटी आंत पर पड़ सकता था, जिससे कि उनकी रोज़मर्रा की जिंदगी में परेशानियां और बढ़ने की संभावना थी।
ऐसी नाज़ुक स्थिति में ब्रैकीथैरेपी या इंटरनल रेडियोथैरेपी, उपचार के एकमात्र विकल्प के रूप में सामने आया। इस पूरी प्रक्रिया में सर्वप्रथम पूरी बीमारी का बड़ी ही सटीकता से आंकलन किया जाता है। इसमें एनेस्थीसिया देकर कैंसर ग्रसित हिस्से में बेहद ही पतली खोखली नलियाँ डाली जाती हैं। इन नलियाँ को डालने के दौरान बेहद सावधानी बरती जाती है, क्योंकि मूत्राशय और मलाशय जैसे सामान्य अंग बहुत करीब होते हैं। सीटी स्कैन या एमआरआई करने के बाद कंप्यूटर के एडवांस एल्गोरिदम की मदद से उपचार की योजना बनाई गई। आदर्श योजना में रोगग्रस्त हिस्से में ज्यादा से ज्यादा रेडिएशन पहुंचाने की कोशिश की जाती है, वहीं आस-पास के अंगों को बचाने की कोशिश की जाती है। प्रभावित हिस्से तक रेडिएशन की कम समय में अत्यधिक डोज पहुंचाकर ब्रैकीथैरेपी की गई। अत्यंत छोटा रेडियोएक्टिव स्रोत नलियों से होकर गुजरते हुए रेडिएशन प्रदान करता है। ब्रैकीथैरेपी की इस प्रक्रिया को इंटरस्टिशियल इम्प्लांट कहा जाता है। इस रोगी को लगभग पांच-दिनों के उपचार के लिए भर्ती किया गया था। तीन माह पश्चात जांच में ये रोगी कैंसर मुक्त पाई गईं। इस अवसर पर नारायणा हॉस्पिटल, जयपुर रेडिएशन ऑन्कोलॉजी डायरेक्टर, डॉ. निधि पाटनी कहती हैं, “ब्रैकीथैरेपी में रेडियोएक्टिव मटेरियल कैंसर के समीप या उसके भीतर जाता है। इंटरस्टिशियल इम्प्लांट, जो कि एक विशेष प्रकार की ब्राकीथेरेपी है, की कुछ सीमाएं होती हैं- कैंसर उपचार केंद्रों पर ब्रैकीथैरेपी मशीनों की अनुपलब्धता, रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट में अनुभव और ट्रेनिंग की कमी, उपचार की जटिलता। ब्रैकीथैरेपी का सबसे बड़ा फायदा है कि ये उपचार का बहुत सटीक और किफायती विकल्प है।” डॉक्टर निधि के अनुसार “नारायणा हॉस्पिटल में हम अक्सर इस तरह के कठीन और जटिल मामलों का इलाज करते हैं, जो प्रदेश में शायद ही कहीं और हो रहे हैं।“नारायणा हॉस्पिटल, जयपुर के क्लिनिकल डायरेक्टर, डॉ. प्रदीप कुमार गोयल ने कहा कि “उपचार के नए आयाम ज़्यादा से ज़्यादा रोगियों तक पहुंचना ही हमारा उद्देश्य है। कैंसर रोगियों के आधुनिक और संपूर्ण उपचार के लिए हम प्रतिबद्ध हैं।

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