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राम वह पुल, जो भारत को जोड़ता है एक धड़कन से : शेखावत

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केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री ने किया डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘ कण-कण में राम’ को रिलीज

नई दिल्ली, दिव्यराष्ट्र*/। केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने बुधवार को द इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (आईएनटीएसीएच) की डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘ कण-कण में राम’ को रिलीज किया। शेखावत ने कहा कि राम वह पुल हैं, जो भारत के विविध हिस्सों को एक धड़कन से जोड़ता है।

अपने उद्बोधन में केंद्रीय मंत्री शेखावत ने कहा कि फिल्म “मर्यादा पुरुषोत्तम” को केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं देखने का आग्रह रखती है। “कण-कण में राम” से आशय उनके चरित्र से स्थापित जीवन सूत्र हैं, जो हमारी संस्कृति में रचे-बसे हैं। इसमें आपको भारत की संस्कृति के उन पहलुओं का परिचय भी मिलेगा, जिनके बारे में अधिक चर्चा नहीं होती या उनके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि ‘कण-कण में राम’ केवल भगवान राम की कथा नहीं है, यह हमारी उस सभ्यता की कहानी है, जो हजारों वर्षों से ऐसी सोच को जीवित रखे हुए है, जिसमें हर पेड़, हर नदी, हर कण में, हर आवाज में और हर दिल की भक्ति में भी भगवान को देखा जाता है। यह विरासत हमें सिखाती है कि मंदिरों और ग्रंथों से परे हमारी धरती, हमारी संस्कृति और हमारे आपसी रिश्तों में भी एक दिव्यता है।

शेखावत ने कहा कि यह फिल्म भगवान राम की उपस्थिति को राजनीति के चश्मे से नहीं, बल्कि संस्कृति की आवाजों से दिखाती है। अयोध्या से रामेश्वरम तक, चित्रकूट से तमिलनाडु के लोक रंगमंचों और कर्नाटक की छाया कठपुतलियों तक, हर क्षेत्र अपनी रामकथा कहता है और यह विविध कथाएं भले ही अलग हों, लेकिन हम सबकी साझी विरासत हैं। इसी तरह राम केवल किसी एक के नहीं, हम सभी के हैं। उन्होंने कहा कि रामायण को अक्सर एक महान ग्रंथ या महाकाव्य कहा जाता है, लेकिन मेरा मानना है कि यह उससे बढ़कर है। यह वह सूत्र है, जो हमें भाषा, क्षेत्र और पीढ़ियों के पार जोड़ता है।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि रामायण एक सांझी स्मृति और सांस्कृतिक अनुभूति है। तमिल में कंबन की रामायण हो या बंगाल में कृत्तिबास की, संस्कृत में भवभूति के नाटक हों या जैन परंपरा के प्राकृत संस्करण, पूर्वोत्तर भारत की आदिवासी लोक-कथाएं हों या अवधी और उर्दू की सूफियाना व्याख्याएं, इनमें हम, एक ऐसे राम को देखते हैं, जो सीमाओं से परे हैं, भाषा, जाति, धर्म और भौगोलिक सीमाओं से परे हैं। उन्होंने कहा कि आज हम ऐसे दौर में हैं, जहां जानकारी बहुत है, पर भ्रम भी उतना ही है। अब संस्कृति केवल कलाकारों और विद्वानों से नहीं, बल्कि तकनीक और एल्गोरिदम से भी आकार पा रही है। ऐसे में, यह जरूरी हो गया है कि सच्ची, समावेशी और प्रेरक कहानियां हमारे युवाओं तक पहुंचें। ‘कण-कण में राम’ ऐसी ही एक कहानी है। इस फिल्‍म को स्कूल, कॉलेज, गांव और ऑनलाइन मंचों तक ले चलें।

आईएनटीएसीएच के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए शेखावत ने कहा कि संस्था ने पिछले चार दशक से अधिक समय से हमारे उस सांस्कृतिक खजाने को सहेजने का काम किया है, जिसे अक्सर हम अनदेखा कर देते हैं। केंद्रीय जलशक्ति मंत्री रहते हुए मुझे नदी पुनरुद्धार की कई परियोजनाओं में आईएनटीएसीएच के साथ काम करने का सौभाग्य मिला। इन परियोजनाओं में नमामि गंगे कार्यक्रम मेरे दिल के सबसे करीब रहा। आईएनटीएसीएच ने गंगा बेसिन की सांस्कृतिक और अमूर्त विरासत को सहेजने में बड़ी भूमिका निभाई। उन्‍होंने उन परंपराओं, लोकगीतों और अनुष्ठानों को दर्ज किया, जिनका कोई लिखित रिकॉर्ड नहीं था।

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