दिल्ली। दिव्यराष्ट्र/राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान ने विज्ञान भवन में अपना 35वाँ स्थापना दिवस समारोह आयोजित किया। कार्यक्रम सुबह 10:30 बजे शुरू हुआ। समारोह के मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रोफेसर चमू कृष्ण शास्त्री रहे। कार्यक्रम का आरंभ श्रीमद दयानंद कन्या गुरुकुल महाविद्यालय, चोटीपुरा की छात्राओं ने वैदिक मंत्रों के उच्चारण, सरस्वती वंदना और अतिथियों के दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। अतिथियों का स्वागत एनआईओएस के अध्ययन केंद्र अमर ज्योति स्कूल, कड़कड़डूमा के दिव्यांग शिक्षार्थियों ने स्वागत गीत से किया। जिसे सभी अतिथियों ने करतल ध्वनि से सराहा। तत्पश्चात एनआईओएस का ध्येय गीत प्रस्तुत किया गया।
समारोह में उपस्थित अतिथियों का स्वागत एनआईओएस के अध्यक्ष प्रोफेसर पंकज अरोड़ा ने स्वागत उद्बोधन कर किया और स्मृति चिन्ह भेंट कर उन्हें सम्मानित किया। प्रोफेसर अरोड़ा ने अपने उद्बोधन में राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला और वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए बताया कि एनआईओएस ने भारतीय ज्ञान परंपरा और देशज ज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य किया है और सभी विषयों में उत्कृष्ट विषयवस्तु को समाहित किया जा रहा है। एनआईओएस सुदूर स्थानों तक शिक्षा पहुँचाने के लिए प्रतिबद्ध है।
एनआईओएस के स्थापना दिवस समारोह में नए पाठ्यक्रम नाट्यकला का विमोचन किया गया। मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रो. चमू कृष्ण शास्त्री ने बटन दबाकर इलेक्ट्रॉनिकली उल्लास से निओस कार्यक्रम का उद्घाटन किया। इस कार्यक्रम के तहत 15 वर्ष से अधिक उम्र के निरक्षर व्यक्तियों को शिक्षित कर उनके प्रमाणन का कार्य एनआईओएस करेगा। इसके तहत 2027 तक 5 करोड़ शिक्षार्थियों को शिक्षित करने का लक्ष्य है।
सम्मानित अतिथि प्रो. (डॉ) निर्मलजीत सिंह कलसी (भा.प्र.से.) पूर्व अध्यक्ष, एनसीवीईटी ने बताया कि शिक्षक देश की सबसे बड़ी संपदा है और इन्होंने एनआईओएस के शिक्षार्थियों की प्रतिभा और कौशल को विश्वस्तर का बताया। इन्होंने एनआईओएस की इन्क्लूसिव शिक्षा प्रणाली की सराहना की।
मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रो. चमू कृष्ण शास्त्री, अध्यक्ष भारतीय भाषा समिति, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार ने अपने व्याख्यान में कहा कि एनआईओएस के शिक्षार्थियों का अनुभव कथन सुनना अद्भुत और भाव विभोर करने वाला है। उन्होंने दिव्यांग शिक्षार्थियों की प्रतिभा और जीवटता को सराहा। उन्होंने कहा कि आज एनआईओएस के 35वें स्थापना दिवस पर तीन स्तरों पर सिंहावलोकन, विहंगमावलोकन और दूरअवलोकन करने की आवश्यकता है। उन्होंने एनआईओएस के ध्येय वाक्य विद्याधनं सर्वधनप्रधानम की व्याख्या करते हुए कहा कि विद्या ही मनुष्य का सर्वांगीण विकास करती है। उन्होंने विभिन्न संस्थानों के ध्येय वाक्य भी जानने का आग्रह किया और कहा कि यदि ध्येय वाक्य का अर्थ जान लिया जाय तो भारतीय संस्कृति से परिचय स्वतः ही हो जाएगा। विद्या से ही मनुष्य का सर्वांगीण विकास संभव है क्योंकि विद्या के माध्यम से ही मनुष्य के अंदर सही और गलत को समझने की शक्ति उत्पन्न होती है। तीन तरह की शक्तियां होती हैं ज्ञान, क्रिया और इच्छा शक्ति। जब देश को भव्य बनाने की इच्छा शक्ति जागृत होती होगी तभी देश विश्व गुरु बनेगा। इस तरफ देश के शिक्षार्थियों का ध्यान दिलाने की आवश्यकता है। संस्कार से लोग सनातन धर्म के संस्कार का तात्पर्य लेते हैं जबकि इसका एक और अर्थ है संस्कार का अर्थ है दोष को मिटाकर गुणों का विकास करना।
राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान के 35वें स्थापना दिवस समारोह के मंच पर बतौर विशिष्ट अतिथि प्रो. प्रेम नारायण सिंह, निदेशक, आईयूसीटीई, बीएचयू, वाराणसी और अभिलाषा झा मिश्र, सदस्य सचिव, एनसीटीई मौजूद रहीं।
राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान की स्थापना 23 नवंबर 1989 को हुई थी। एनआईओएस ने देश को लाखों प्रतिभाशाली शिक्षार्थियों को उनका सपना पूरा करने के लिए उन्हें एक आधार प्रदान किया है। यही वजह है कि देश के बहुत से प्रोफेशनल्स की पहली पसंद एनआईओएस बना हुआ है। एनआईओएस विश्व की सबसे बड़ी मुक्त विद्यालयी शिक्षा प्रणाली है और यह बीस क्षेत्रीय केंद्रों, तीन प्रकोष्ठों एवं दस हजार से ज्यादा अध्ययन केंद्रों के माध्यम से देश भर में सभी तक शिक्षा की सहज पहुंच को सुनिश्चित कर रहा है।