Home समाज मुख्यमंत्री से राजभाषा संबंधी स्थिति स्पष्ट करने की मांग

मुख्यमंत्री से राजभाषा संबंधी स्थिति स्पष्ट करने की मांग

185
0
Google search engine

जयपुर। दिव्यराष्ट्र/ आरटीआई कार्यकर्त्ता ओम प्रकाश ओझा ने मुख्यमंत्री भजन लाल को पत्र लिखकर राज्य सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, विभागों और नौकरशाही पर राज भाषा के प्रश्न पर भारतीय संविधान के प्रावधानोें का उल्लंघन करने का सनसनीखेज आरोप लगाया है। ओझा ने बताया कि राजभाषा के सम्बन्ध में उन्होंने जो भी पात्र लिखे उसे नौकरशाही ने कूड़े के ढेर में डाल दिए। मुझे यह लिखने में कोई संकोच नही है कि राज्य सरकार की मशीनरी या तो वस्तुस्थिति को आपको समझाने में असमर्थ है या संबंधित मंत्रालय और राजकीय विभाग अपने को बचाते हुए राजभाषा की मान्यता की जिम्मेदारी एक दूसरे पर डाल रहे हैं।

ओझा ने बताया राजस्थान ऑफिसियल लैंग्वेज एक्ट 1952 और 1956 दोनों एक्ट राजस्थान राज्य के गठन से पूर्व प्रचलित राजस्थानी भाषा को दरकिनार करके उसके स्थान पर ‘‘हिन्दी भाषा‘‘ को राज्य स्तर राजभाषा घोषित करने के लिए जारी किये गये थे। उपरोक्त बिन्दु संख्या 2 (क) के अध्यादेश/नोटिफिकेशन को दिनांक 03 दिसम्बर 1952 को हिज हाईनेंस, राज प्रमुख, महाराजा सवाई मानसिंह जी की अनुमति और हस्ताक्षरो से जारी किया गया था। जबकि, बिन्दु संख्या 2 (ख) के नोटिफिकेशन को राजस्थान के प्रथम राज्यपाल सरदार गुरूमुख निहाल सिंह की अनुमति और हस्ताक्षरों से दिनांक 28 दिसम्बर 1956 को जारी किया गया था। दोनों की विषय वस्तु लगभग एक सी ही है। दोनों में वर्णित है कि अध्यादेशों को राजस्थान विधानसभा द्वारा पास करवाया जावेगा। हिन्दी भाषा को राज भाषा घोषित करने के उपरोक्त दोनों अध्यादेश विधानसभा से पास नही हुए हैं। राज्य सरकार के संबंधित विभाग-शिक्षा ग्रुप (5) विभाग, भाषा विभाग और संसदीय कार्य विभाग, तीनों ही मुझे यह जानकारी और दस्तावेज उपलब्ध कराने में असफल रहे हैं कि राजस्थान विधानसभा द्वारा राजभाषा के रूप में हिन्दी भाषा अपनाये जाने का प्रस्ताव या बिल कब पास हुआ था।

उन्होंने बताया राजस्थान विधानसभा द्वारा पूर्व में पास किए गये प्रस्ताव या बिल के अवलोकन के लिए मैने विधानसभा के प्रधान सचिव श्री महावीर प्रसाद शर्मा से 25 अप्रेल 2024 को विधानसभा पुस्तकालय में प्रवेश की अनुमति मांगी थी, जो कि उनके मोबाईल पर सम्पर्क करने के पश्चात् भी नहीं मिली। विधानसभा के ‘‘राज्य लोक सूचना अधिकारी‘‘ ने भी जब, एक महीने तक वांछित सूचना और दस्तावेज उपलब्ध नहीं किराये, तो मैने विधानसभा के पोर्टल पर लिखित सूचना के आधार पर, ‘‘प्रथम अपील अधिकारी‘‘ महावीर प्रसाद शर्मा के ना म से एक अपील डाक विभाग के मार्फत भेजी। प्रधान सचिव के कार्यालय द्वारा अपील की सुनवाई करना तो दूर की बात है, लिफाफे पर मेरा नाम पढ़ते ही, लिफाफा लेने से ही इंकार कर दिया। ओझा के अनुसार वर्तमान में राजस्थान की कोई राजभाषा नहीं है।

अगर विधानसभा से पूर्व में जारी अध्यादेश पास नही हुवे है तो राजस्थान की राज भाषा ‘‘राजस्थानी‘‘ ही है, जो कि राजस्थान निर्माण से पूर्व प्रचलन में थी। सन् 1952 और सन् 1956 में जारी अध्यादेशों की वैधता 6 माह ही थी। संवैधानिक प्रावधानों के अन्तर्गत, चूंकि दोनो में से कोई भी नोटिफिकेशन 6 माह की अवधि के दौरान विधानसभा ने पास ही नहीं किया था, इसलिए इनकी वैधता जारी करने के 6 माह के पश्चात् स्वतः ही समाप्त हो चुकी थी। माना जा सकता है कि हिन्दी भाषा राजस्थान की राजभाषा नहीं है।

Google search engine

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here