Home Blog क्षमावाणी से विश्वमैत्री संभव है-प्रज्ञायोगी आचार्य गुप्तिनंदी

क्षमावाणी से विश्वमैत्री संभव है-प्रज्ञायोगी आचार्य गुप्तिनंदी

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आडूल,, दिव्यराष्ट्र/ श्री नवजिन शान्ति जिनालय अतिशय क्षेत्र धर्मतीर्थ,गुरू भक्तों की नगरी छ.संभाजीनगर में आचार्य श्री गुप्तिनंदी सभागृह हीराचंद कस्तूरचंद कासलीवाल प्रांगण में श्री पार्श्वनाथ खंडेलवाल दिगंबर जैन मंदिर पंचायत राजाबाजार,श्री महावीर खण्डेलवाल दिगम्बर जैन मंदिर आडूल, श्री शांतिनाथ अग्रवाल दिगंबर जैन मंदिर ट्रस्ट सराफा/हडको, आचार्य श्री गुप्तिनंदी जी वर्षायोग समिति धर्मतीर्थ क्षेत्र2024व सकल जैन समाज द्वारा दिगम्बर जैनाचार्य श्री गुप्तिनंदी गुरुदेव के प्रमुख सानिध्य में व स्थविर श्रमण श्री विहित सागर ,गणधर श्रमण श्री विवर्धन सागर आदि आचार्य श्री विरागसागरजी ससंघ 23पीछी, मुनि विमलगुप्त, गणिनी आर्यिका आस्थाश्री माताजी ,क्षुल्लक शान्तिगुप्त, क्षुल्लिका धन्यश्री माताजी, क्षु.तीर्थश्री माताजी की उपस्थिति में सामुहिक क्षमावाणी पर्व विश्व मैत्री दिवस के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर समाज की सभी संस्थाओं के गणमान्य प्रतिनिधियों द्वारा दीपप्रज्वलन किया गया ब्र.पूजा दीदी ने मंगलाचरण किया।श्री पार्श्वनाथ खंडेलवाल दिगंबर जैन मंदिर पंचायत राजाबाजार के नवनिर्वाचित अध्यक्ष श्री महावीर पाटनी ने बताया-इस दशलक्षण पर्व में सकल जैन समाज उपवास करने वालों की बहार आयी है।आचार्य श्री गुप्तिनंदी जी की पूर्वाश्रम की जन्मदात्री क्षुल्लिका धन्यश्री माताजी व संघस्थ ब्र.निर्मल भैया के 10-10 उपवासों के छत्रपति संभाजीनगर संभाग में लगभग150 से अधिक श्रावक श्राविकाओं ने, साथ में अनेकों अजैन बंधुओं ने सोलह कारण के16,दशलक्षण पर्व के10,अठाई के8,पंचमेरू के 5,रत्नत्रय का तेला उपवासों की कठोर तपस्या की है।और अनंत चतुर्दशी का हजारों लोगों ने सामुहिक उपवास रखा।छोटे छोटे बालक बालिकाओं ने भी उपवास की साधना में बढ़चढ़कर पुण्यार्जन किया है।पंचायत के महामंत्री प्रकाश अजमेरा ने बताया उन तपस्वियों के लिए श्री पार्श्वनाथ खण्डेलवाल दिगम्बर जैन पंचायत राजाबाजार के संयोजन में सार्वजनिक अभिनंदन और शाही पारणा ,सामुहिक क्षमावाणी के साथ किया है।गणिनी आर्यिकाश्री आस्थाश्री माता जी ने क्षमावाणी का महत्व बताते हुए कहा कि क्षमावाणी में भी माँ समाई है माता धरती है, प्रकृति,है क्षमा सबमें समाई हुई है क्षमा में सृजन और विकास दिखाई देता है जबकि क्रोध में सिर्फ विनाश ही विनाश है।शांत रहने वाले क्षमाशील व्यक्ति ही स्वयं का और सबका विकास करते हैं। प्रज्ञायोगी दिगंबर जैनाचार्य श्री गुप्तिनंदी जी गुरुदेव ने उत्तम क्षमावाणी धर्म पर अपनी क्षमाशील मंगल वाणी में कहा–*

कर्मों का शोषण करती है क्षमावाणी।
आत्मा का पोषण करती है क्षमावाणी।
क्रोध का दूषण हरती है क्षमावाणी।
तीर्थंकर पार्श्वनाथ बनाती है क्षमावाणी।।

पर्यूषण पर्व का आरम्भ भी क्षमा से होता है और अंत भी क्षमावाणी से होता है।इस लोक और परलोक दोनों को शांतिपूर्ण सम्मान प्रद बनाने वाली एक मात्र भावना क्षमा भाव ही है।विश्व शांति और वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना का भवन,क्षमा की ही नींव पर स्थापित है।जीओ और जीने दो की भावना का मूलतत्व क्षमा में ही समाहित है।क्षमा का ज्योति पुत्र वर्तमान में विध्वंसक शस्त्रों की प्रतिस्पर्धा और युद्ध में महाप्रलय के छोर पर खड़े विश्व को शांति व समता का मार्ग दिखा रहा है।यदि हम वास्तव में अहिंसा के पुजारी हैं तो हमारे हृदय में अहिंसा की,क्षमा की पावन धारा प्रवाहित होना चाहिए। तभी हमारा आचरण विश्व वंद्य बन सकता है।वर्तमान में मात्र वाचनिक क्षमा ही नहीं हार्दिक क्षमा की आवश्यकता है।क्षमावाणी एक धार्मिक परिणति है,आध्यात्मिक उत्थान का उत्तम सोपान है।उसमें पर के सहयोग अथवा स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है।यदि हम क्षमा भाव धारण करना चाहते हैं तो उसके लिए यह कोई अनिवार्य नहीं है कि जब कोई हमसे क्षमा याचना करें तभी हम क्षमा धारण करें अर्थात् क्षमा अपनायें।अपराधी द्वारा क्षमा याचना नहीं करने पर भी उसे क्षमा किया जा सकता है अन्यथा क्षमा भाव भी स्वाधीन होने के स्थान पर पराधीन हो जायेगा। यदि किसी ने हमसे क्षमा याचना नहीं की है तो उसने स्वयं की मान कषाय का त्याग नहीं किया और यदि हमने उसके द्वारा क्षमा याचना किए बिना ही क्षमा कर दिया तो हमने अपने क्रोध भाव का त्याग कर दिया।

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