ऋतुओ के राजा बसंत का स्वागत (डा.सीमा दाधीच)।
बसंत पंचमी शीत ऋतु के अंत और बसंत ऋतु के आगमन का संकेत देती है यह पंचमी हिंदू माह माघ की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। इसे दक्षिण भारत में श्री पंचमी के नाम से जाना जाता है। यह त्योहार विशेष रूप से विद्या और ज्ञान की देवी, सरस्वती की पूजा से जुड़ा हुआ है।
बसंत को “सभी ऋतुओं का राजा” कहा जाता है बसंत पंचमी के दिन आमतौर पर उत्तरी भारत में सर्दी जैसी और भारत के मध्य और पश्चिमी भागों में वसंत जैसी स्थिति होती है, जिससे यह धारणा
मानी जाती है कि बसंत पंचमी के दिन से 40 दिन बाद बसंत पूरी तरह खिल जाता है। इस दिन का संबंध देवी सरस्वती से है, जिन्हें विद्या, बुद्धि, कला, और संगीत की देवी माना जाता है। माघ माह को हिंदू धर्म में त्योहारों का महीना माना गया है, क्योंकि इस दौरान सकट चौथ, षटतिला एकादशी, मौनी अमावस्या और गुप्त नवरात्रि जैसे प्रमुख पर्व आते हैं। इन सभी पर्वों में बसंत पंचमी का महत्वपूर्ण स्थान है, जो विशेष रूप से देवी सरस्वती की पूजा और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए मनाई जाती है।
इस दिन को लेकर हर साल छात्रों में विशेष उत्साह देखा जाता है, क्योंकि यह दिन उन्हें शिक्षा, कला और संगीत के क्षेत्र में सफलता और उन्नति का आशीर्वाद प्रदान करता है। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा से विद्यार्थियों के ज्ञान में वृद्धि और कला कौशल में निखार आता है। बसंत पर्व को विद्या की अधिष्ठात्री देवी महासरस्वती के जयंती के रूप में मनाया जाता है।
न रोको मैन के तारों को
बावरे मन को गाने दो
आज फिर चटकी हैं कलियाँ
आज वसंत को आने दो।। कवि हृदय ने बसंत ऋतु पर मन के भावों को व्यक्त किया है।
इस दिन से लोगों के मन में काम करने का उल्लास भर जाता है सर्दी से राहत मिलने से सब खुशी से वसंत का स्वागत करते है। प्रात जगाता शिशु-बसंत को नव गुलाब दे-दे ताली।
सोफी बासी देव की कविता वन-वन उड़ती मतवाली।।
बसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान करता है। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा का विशेष महत्व है इसमें
सरस्वती नाम से दो देवियों का उल्लेख मिलता है। ऐसी मान्यता है कि एक विद्या की देवी और दूसरी संगीत की देवी। दोनों की ही पूजा की जाती है। एक कमल पर विराजमान है और दूसरी हंस पर। कहीं-कहीं ब्रह्मा पुत्री सरस्वती को विष्णु पत्नी सरस्वती से संपूर्णतः अलग माना जाता है।
बसंत का मौसम आने पर पेड़ से पुराने पत्ते गिरकर नए पत्ते आते हैं, वैसे ही हमें भी बुरी आदतें छोड़नी चाहिए। हमें नई चीजें सीखनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में नई शुरुआत करनी चाहिए। विद्यार्थियों एवम् कला साधक को अध्ययन पर जोर देना चाहिए जिससे नई ऊर्जा का संचार होता है। इस महीने के अंत से परीक्षा का आयोजन भी कई जगह हो जाता है स्कूल के बच्चे अपने पढ़ाई के प्रति सजक हो जाते है।