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मूवी थिएटरों की ताकत और उसके प्रभाव की बराबरी कर पाना संभव नहीं है

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एमआईटी-वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी सम्मेलन में अभिनेता रजित कपूर ने परिदृश्य को बदलने वाले ओटीटी के बारे में कहा

पुणे, दिव्यराष्ट्र/: मौजूदा दौर में लोग बड़ी संख्या में ओटीटी लेटफार्मों की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जिसकी वजह से मूवी थिएटरों की लगातार घटती लोकप्रियता एक बड़ी चिंता का विषय बन गई है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए, जाने-माने अभिनेता एवं निर्देशक रजित कपूर ने जोर देकर कहा कि टेक्नोलॉजी चाहे जितनी भी प्रगति कर ले, इसके बावजूद मूवी थिएटरों की ताकत और उसके प्रभाव की बराबरी कर पाना संभव नहीं है।
ब्योमकेश बक्शी में अपने अभिनय के लिए प्रसिद्ध, रजित कपूर को दर्शकों की भरपूर तारीफ़ पाने वाली फिल्में ‘सूरज का सातवां घोड़ा’ और ‘द मेकिंग ऑफ द महात्मा’ में महात्मा गांधी के किरदार के लिए जाना जाता है। उन्होंने एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के मीडिया एवं संचार विभाग द्वारा आयोजित मीडिया एवं पत्रकारिता पर राष्ट्रीय सम्मेलन ( एनसीएमजे) के छठे संस्करण में अपने विचार व्यक्त किए।
एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी में छात्रों के साथ परस्पर-संवाद के सत्र में, अनुभवी अभिनेता ने आज के डिजिटल जमाने में सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्मों के कारण परिस्थितियों में आए बदलाव के बीच मूवी थिएटरों की अहमियत पर जोर दिया।
उन्होंने कहा, “मूवी थिएटर एक ऐसी जगह है, जहाँ आप फिल्म की विषय-वस्तु, उसकी कहानी, और उसके दृश्यों को तल्लीनता से देखने का आनंद लेते हैं, जो आपके दिलो-दिमाग पर छा जाते हैं, आपको अपनी दुनिया का हिस्सा बना लेते हैं, आपको जुड़ाव का एहसास कराते हैं और आपको रोमांचित कर देते हैं। निश्चित तौर पर आपको आईपैड, स्क्रीन मॉनिटर या फोन पर कभी ऐसा अनुभव नहीं मिल सकता है; मुझे लगता है कि हमें इस बात को समझना होगा। मैं भी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कंटेंट देखता हूँ, लेकिन इससे परे मैं तो थिएटर जाने और उस कहानी में पूरी तरह से डूब जाने की बात सोच कर ही आनंदित हो जाता हूँ। यह अनुभूति वाकई बेमिसाल है। टेक्नोलॉजी चाहे जितनी भी प्रगति कर ले, इसके बावजूद मूवी थिएटरों की ताकत और उसके प्रभाव की बराबरी कर पाना संभव नहीं है।”
इस अवसर पर लोकप्रिय अभिनेता एवं निर्देशक ने युवाओं के मन पर सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव और इससे जुड़ी चिंताओं पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि, सोशल मीडिया बड़ी तेजी से हमारी ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन गया है। उन्होंने माना कि यह स्थिति बेहद चिंताजनक है, और कहा कि अब हमारे लिए अपनी ज़िम्मेदारियों पर विचार करना आवश्यक हो गया है।
उन्होंने आगे कहा, “मैं भी अपनी बातों और भावनाओं को खुलकर जाहिर करने के विचार का समर्थक हूँ, परंतु हमें ऑनलाइन माध्यमों से जुड़ते समय अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी भी स्वीकार करनी चाहिए। इसका नाता सिर्फ़ अपनी तस्वीरों पर लगाए जाने वाले फ़िल्टरों से नहीं है— हमारे मन में जो फ़िल्टर मौजूद हैं, उनका क्या? अक्सर लोग अपने शब्दों के परिणाम पर विचार किए बिना पोस्ट कर देते हैं। अपनी बातों को खुलकर कहने की आज़ादी काफी मायने रखती है, खासकर तब जब सोशल मीडिया आपके हाथों की कठपुतली बन गई हो। लिहाजा आपको शेयर की जाने वाली हर चीज़ पर अच्छी तरह गौर करना चाहिए, क्योंकि हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है। बदकिस्मती से, हम कभी-कभी इस संतुलन को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। आप जैसे युवा ही इस देश की बुनियाद हैं। आपका हर काम, आपकी प्रतिक्रियाएँ और मानसिकता ही हमारे देश के भविष्य को आकार देने वाले हैं। आने वाला कल आप पर निर्भर है, इसलिए ज़रा ध्यान से सोचिए कि आप कैसा भविष्य चाहते हैं और आज जो विकल्प आप चुनते हैं, उसके माध्यम से आप इसे कैसा स्वरूप देना चाहते हैं।”
“मीडिया और समाज: उभरता परिदृश्य” की विषय-वस्तु पर आयोजित इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में पत्रकारिता के भविष्य को आकार देने वाले अवसरों एवं चुनौतियों पर चर्चा के साथ-साथ मीडिया और समाज के बीच विकसित होते संबंधों पर विशेष ध्यान दिया गया।
संस्थान में मीडिया एवं संचार विभाग के एसोसिएट डीन, प्रो. धीरज सिंह के बेहद प्रेरणादायक मुख्य वक्तव्य के साथ इस कार्यक्रम की शुरुआत हुई। अपने संबोधन में उन्होंने मुख्य रूप से मीडिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भूमिका, शांति स्थापना में पत्रकारिता के प्रभाव और डिजिटल सिनेमा के भविष्य के बारे में बात की।

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