★1200 वनवासी शहीद हुए★
(बलिदान दिवस 7 मार्च पर विशेष)
(दिव्यराष्ट्र के लिए विजय विप्लव)
राजस्थान मे गोविन्द गुरु ने धार्मिक कार्यकमो के माध्यम से जनजाति वर्ग को जागृत करने का सफल अभियान चलाया । उनके प्रयास से भील, मीणा तथा गरासिया जैसी वनवासी जातियां सामाजिक रूप से जागरूक हुई। उनके बाद इस चिन्गारी को मोतीलाल तेजावत व विजय सिंह पथिक जैसे आंदोलनकारियों ने ज्वाला बना दिया।
उदयपुर जिले की झाडोल तहसील के कोल्यारी गाव मे जन्मे मोतीलाल तेजावत झाडोल ठिकाने के कामदार थे। उन्होनें वनवासियो पर हो रहे अत्याचारों को निकट से देखा। जमीदारों द्वारा इनकी पकी फसल को कटवा लेना, बेगार लेना, दुधारू पशुओ को उठा लेना तथा छोटी सी भूल पर कोडो या बेंत से पिटवाना आदि उन दिनों सामान्य बात थी। कोढ मे खाज की तरह वनवासी समाज अनेक सामाजिक कुरीतियो से भी ग्रस्त था। इस परिस्थिति में तेजावत का मन विचलित हो उठा। तेजावत ने झाडोल के राव साहब की नोकरी छोडकर वनवासियों मे जागृति का अभियान छेड़ दिया। वे वनवासी बंधुओं को आपस मे मिलकर रहने तथा अत्याचारो का विरोध करने की बात समझाने लगे। धीरे-धीरे यह अभियान एकी आन्दोलन के नाम से प्रसिद्ध हो गया। मगरा की भीलों से प्रारम्भ होकर यह अभियान क्रमश भोमट, अलसीगढ, पांडोली, कपासन , उपरला व निचला गिर्वा , डूंगरपुर , दांता , पालनपुर, ईडर, सिरोही, बांसवाड़ा, विजयनगर आदि क्षेत्रो मे जोर पकडने लगा।
सन् 1921, में देश भर मे हुए असहयोग आन्दोलन मे भी तेजावत तथा उनके साथियों ने भाग लिया। उनका सम्पर्क देश के अन्य भागों मे चल रही स्वाधीनता की गतिविधियों से भी बना हुआ था। तेजावत के प्रयासों से स्थान-स्थान पर वनवासियों के विशाल सम्मेलन होने लगे। उन्होने बेगार तथा लगान न देने की घोषणा कर दी । इससे अंग्रेजों की नीद हराम हो गयी।
7 मार्च 1922 को विजयनगर राज्य के नीमड गांव मे भीलों का एक विशाल सम्मेलन आयोजित किया गया। अंग्रेजो ने लोगों को डराने के लिए अपनी सेनाएं भेज दी ।बड़ी संख्या मे नीमडा पहुचने लगे। इस सभा में अंग्रेजों द्वारा आदिवासियों पर लगाए जा रहे कर व शोषण के खिलाफ भाषण दिये जा रहे थे। इससे गुस्साए ब्रिटिश अधिकारी सुरजी निनामा के आदेश के बाद अंग्रेजी सिपाहियों ने अंधाधुंध गोलीबारी कर 1200 से अधिक निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया ।
इस नरसंहार में यहां के पूर्व सरपंच कमजीभाई डामोर के घर के पास स्थित एक कुएं में लोग जान बचाने के लिए कूद पड़े थे। इतिहासकारों के अनुसार पूरा कुआं लाशों से पट गया था।
गर्व का विषय है कि एकी आंदोलन के माध्यम से वनवासी वर्ग को संगठित कर उनमें जागृति का काम करने वाले भारत मां के सपूत मेवाड़ की वीर प्रसुता धरती के लाल था- मोतीलाल तेजावत।
जब अँग्रेज शासन के निर्देश पर विजयनगर रियासत की आदिवासी विरोधी नीतियों के कारण आदिवासी दु:खी थे। जागीरदारों द्वारा बिना कुछ लिए-दिये बेगार करवायी जाती थी। वनोपज पर सरकार ने पाबंदी लगा दी थी और जंगलों को काटा जाने लगा था। सागवान की लकड़ी इंग्लैण्ड व अन्य देशों में भेजी जाने लगी थी। जो भी थोड़ी बहुत खेती-बाड़ी होती, उस पर लगान लगा दिया गया था। आये दिन लोगों को सरकारी कर्मचारियों और जागीरदार के आदमियों द्वारा परेशान किया जाता था। इस सारे माहौल में मोतीलाल तेजावत जैसा दृढसंकल्पी व समर्पित नेता वनवासियों को मिला।
नीमडा में 7 मार्च 1922 को हुए भीषण नरसंहार वाले सभा स्थल पर एक स्मारक बना दिया गया है। स्वतंत्रता के बाद वर्षों तक यह घटना व बलिदान स्थल दोनों गुमनामी में रहे, लेकिन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में यहां पर 1200 शहीदों की स्मृति में 1200 पौधे रोपकर स्मारक बनाया गया । उसके बाद से इस स्थल पर प्रतिवर्ष सात मार्च को मेले का आयोजन होता है । –