Home समाज महाकुम्भ : स्वामी हितेश्वरानंद सरस्वती मेवाड़ क्षेत्र से पहले होंगे महामण्डलेश्वर

महाकुम्भ : स्वामी हितेश्वरानंद सरस्वती मेवाड़ क्षेत्र से पहले होंगे महामण्डलेश्वर

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महाकुम्भनगर, दिव्यराष्ट्र/। तीर्थराज प्रयाग में मेवाड़ क्षेत्र के किसी संत को पहली बार महामंडलेश्वर बनाया जायेगा। महंत स्वामी हितेश्वरानंद सरस्वती को महाकुम्भ क्षेत्र में एक भव्य समारोह में 26 जनवरी को पट्टाभिषेक कर महामण्डलेश्वर बनाया जायेगा। स्वामी हितेश्वरानंद सरस्वती महाराज श्री मानव कल्याण आश्रम के महंत दुर्गेशानंद सरस्वती के शिष्य हैं। स्वामी हितेश्वरानंद सरस्वती महाराज को महामंडलेश्वर बनाने का निर्णय श्री पंचायती निर्वाणी अखाड़ा ने एक धार्मिक कार्यक्रम में देशभर के प्रमुख संतों की उपस्थिति में लिया गया।
उल्लेखनीय है कि सनातन परंपरा में महामंडलेश्वर को शंकराचार्य के बाद दूसरा सबसे बड़ा पद माना जाता है। महामंडलेश्वर का विशिष्ट सम्मानजनक पद विशेष आध्यात्मिक और धार्मिक प्रतिष्ठा का प्रतीक है। यह सम्मान उन संतों को प्रदान किया जाता है, जो अपने आध्यात्मिक जीवन, सेवा और साधना में उच्चतम मानक स्थापित कर लेते हैं।
स्वामी हितेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने हिन्दुस्थान समाचार प्रतिनिधि को बताया कि महाराणा प्रताप की निर्वाण स्थली चावंड में लगभग 550 वर्ष पुराना महादेव मंदिर कटावला मठ है। अप्रैल 2021 में मानव कल्याण आश्रम के परमाध्यक्ष महंत स्वामी दुर्गेशानंद सरस्वती महाराज ने कटावला मठ के पीठाधीश्वर घनश्याम ब्रह्मचारी बाव जी को संन्यास दीक्षा देकर अपना शिष्य घोषित किया और उन्हें मुझे स्वामी हितेश्वरानंद सरस्वती के नाम से दीक्षित कर संन्यास परंपरा का अनुगामी बनाया था।
स्वामी हितेश्वरानंद सरस्वती महाराज का जीवन परिचय
संत घनश्याम बाव जी के नाम से प्रसिद्ध स्वामी हितेश्वरानंद सरस्वती महाराज का जन्म चाणोद, सुमेरपुर जिला पाली में हुआ। श्रीमाली ब्राह्मण कुल में जन्मे घनश्याम ब्रह्मचारी बाव जी की माता का नाम मां हुलासी देवी जी है। ननिहाल केलवाड़ा कुंभलगढ़ के संत घनश्याम ब्रह्मचारी बाव जी ने ब्रह्मचारी जीवन से सीधा संन्यास जीवन में प्रवेश लिया। गुरु परंपरा स्वामी दुर्गेशानंद जी सरस्वती महंत श्री मानव कल्याण आश्रम हरिद्वार का अनुगमन करते हुए वे बीते 14 से अधिक वर्ष से कटावला मठ चावंड में निवासरत हैं।
पूरी संपत्ति आदिवासियों के कल्याण के लिए कर दी थी दान
स्वामी हितेश्वरानंद सरस्वती महाराज कटावला मठ में रह कर साधना और समाज कल्याण का कार्य निरंतर करते हैं। उन्होंने कोराना काल में अपनी पूरी संपत्ति आदिवासियों के कल्याण के लिए दान में दे दी। उनके सेवा और धर्म का मार्ग अनुकरणीय है।

महामण्डलेश्वर बनने की यह है प्रक्रिया
महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया बहुत लंबी और कठिन है। अखाड़े में प्रवेश के समय साधु-संत को सबसे पहले संन्यासी का पद दिया जाता है। इसके बाद महापुरुष, कोतवाल, थानापति, आसंधारी, महंत, महंत श्री, भंडारी, पदाधिकार सचिव, मंडलेश्वर और फिर महामंडलेश्वर बनाया जाता है। महामंडलेश्वर का कार्य सनातन धर्म का प्रचार करना, अपने ज्ञान का प्रकाश फैलाना, भटके लोगों को मानवता की सही राह दिखाना है।
सन्यासी बनने के पहले करना होता है पिंडदानसंन्यासी होना आसान नहीं होता। इस प्रकिया में उनका पिंडदान उन्हीं के द्वारा कराया जाता है। उनके पूर्वजों का भी पिंडदान इसी में शामिल रहता है। इसके बाद उनकी शिखा रखी जाती है। अखाड़े में प्रवेश करने पर उनकी शिखा भी काट दी जाती है। फिर उन्हें दीक्षा दी जाती है और इसके बाद पट्टाभिषेक होता है। पट्टाभिषेक पूजन विधि विधान से संपन्न होता है। अखाड़े में दूध, घी, शहद, दही, शक्कर से बने पंचामृत से पट्टाभिषेक किया जाता है। अखाड़े की ओर से चादर भेंट की जाती है। 13 अखाड़ों के संत, महंत समाज के लोग पट्टा पहनाकर स्वागत करते हैं।

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