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आत्महत्या नहीं है जीवन की समस्याओं का समाधान

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दिव्य राष्ट्र के लिए रोहित मीना (फाउंडर मोटिवेशनल स्पीकर, टीम हर घर शिक्षा)

जयपुर, दिव्य राष्ट्र/ आत्महत्या का मतलब होता है “आत्मा की हत्या “अर्थात् स्वयं को मारना। कोई भी व्यक्ति स्वयं को कैसे मार सकता हैं। जीवन का अटल सत्य है मृत्यु । यानि जिसने इस संसार में जन्म लिया हैं। उसे एक न एक दिन मृत्यु को प्राप्त होना ही हैं। लेकिन समय से पहले ही मौत को गले लगाना सभी को एक सदमा-सा दे जाता हैं। और मन में एक ही सवाल होता हैं कि आखिर उसने ऐसा क्यों किया होगा ?

किसी भी व्यक्ति के द्वारा आत्महत्या करने में कई कारण हो सकते हैं। जैसे बेरोजगारी की समस्या, पारिवारिक समस्याएं, किसी व्यक्ति द्वारा पीड़ित या शोषण किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त, मानसिक तनाव, और सबसे ज्यादा किशोर-किशोरियों में प्रेम-प्रसंग भी आत्महत्या का एक अहम कारण देखने को मिल रहा हैं। और जब से ये महामारी कोरोना महामारी आई है तब से बेरोजगारी की समस्या आत्महत्या करने का एक महत्त्वपूर्ण कारण बन गयी हैं। मोबाईल की लत, सोशल मीडिया पर हद से ज्यादा समय बिताना भी युवाओं की आत्महत्या का एक कारण ही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट माने तो भारत डिप्रेशन से घिरे हुऐ लोगों में अग्रणी देशों में शुमार हैं। भारत में लगभग 36% लोग मानसिक तनाव से हैं।

हमारे देश में बढ़ती आत्महत्याओं का एक प्रमुख कारण हैं- व्यक्ति का जीवन में आने वाले उतार-चढ़ावों में बैलेंस नहीं कर पाना। ऐसी परिस्थितियों में जीवन में संतुलन रखना परम आवश्यक हो जाता हैं। कवि नीरज ने क्या खूब कहा है किं “कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता। आत्महत्या कभी अंतिम विकल्प नहीं होती। छिछोरे और एम, एस धोनी जैसी फिल्मों में अभिनय कर संघर्ष से उठकर जिंदादिली का पाठ सिखाने वाले सुशांत सिंह राजपूत ने भी फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली ।पिछले कुछ सालों में फिल्मी दुनिया और खूब अच्छे पढ़े-लिखे युवाओं में से बहुत से लोगों ने आत्महत्या जैसा गंभीर कदम उठाया हैं। जो इस बात का इशारा कर रही हैं कि सफलता की जो परिभाषा हमें समाज में दिखाई जा रही हैं वह पूर्णतः सत्य नहीं हैं।

मैं रोज बहुत से युवाओं का स्टेट्स सोशल मीडिया पर देखता हूँ, alone, feeling sad, Mood off ऐसे status से social Media भरा पड़ा है। अधिकत्तर युवा आकर्षण वाले प्रेम के दलदल से खुद को बाहर ही निकाल नहीं पाते हैं। परीक्षा में असफलता, पढ़ाई के लिए माँ-बाप का दबाव, नौकरी, परिवार, सामाजिक समस्याऐ और पता नहीं कौन-कौन से दर्द युवा अपने मन में लिये घूमते है। और डिप्रेशन से घिरे रहते हैं।सोशल मीडिया पर भले ही आपके दोस्तों की लिस्ट बहुत लंबी है पर वास्तविकता तो यही है कि वर्तमान में अधिकतर व्यक्ति अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं। ऐसी युवा साथियों से अपील है कि नकारात्मकता को छोड़िये, सकारात्मक सोच अपनाइये ।

दोस्तों से मिलिये, ऐसे दोस्त बनाइये जिनको आप अपने मन की बातें बता सकें, और जो आपको अच्छी सलाह दे सकें। सही राय से जीवन की दिशा बदल सकें। अपने घरवालों के साथ अच्छा समय व्यतीत कीजिए और इतनी सी उम्र में ज्यादा चिंता लेना छोड़ दीजिए। खुल के जीना सीखिए अपने कर्तव्य पूरे करते रहिए। गीता का “निष्काम कर्मयोग” सिद्धांत अपनाइए। “कर्म करते रहो, फल की चिंता मत करो।” अपनी खुशियों पर बंदिश मत लगाइये कि कुछ हो जायेगा। फिर देखना आप खूब खुश होंगे। अभी जिंदगी में खुश रहना और हँसना सीखिये । वो गाना तो सुना “ही होगा, “Love you zindagi” बस अब यहीं करना है।, याद रखिए ये सुना होगा निकल गया, ये दिन अगर निकल गया फिर कभी वापस नहीं आयेगा। आप किसी पर्सन या प्रोवलम की वजह से अपनी जिंदगी ही जीना छोड़ देगें क्या….।

प्रतिदिन सुबह जल्दी जागिए, व्यायाम कीजिये, किसी पास वाले पार्क में जाइयें, या छत पर जाइये, प्रकृति को चारों तरफ देखिये, स्माइल के साथ गहरी साँस लीजिये और विश्वास के साथ खुद से कहिये, बस अब और नहीं अब से मुझे बस खुश रहना है, मैं सब कुछ कर सकता।

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