जयपुर, दिव्यराष्ट्र/ आजकल कई बीमारियों के इलाज के लिए फिजियोथेरेपी का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसकी सबसे खास बात है कि इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है। फिजियोथेरेपी चिकित्सा विज्ञान की वह शाखा जिसकी मदद से शरीर के बाहरी हिस्से का इलाज किया जाता है। इसके माध्यम से कई स्तरों में इलाज किया जाता हैं। जेईसीआरसी अपने विद्यार्थियों को हैंड्स ऑन एक्सपीरियंस देता हैं जिससे की स्टूडेंट्स की कौशल और क्षमता में सुधार आ सके और वह एक बेहतर फिजियोथेरेपिस्ट बनने में सक्षम रहें |
जेईसीआरसी स्कूल ऑफ एलाइड हेल्थ साइंसेज में बीपीटी छात्रों के व्यावहारिक कौशल पर खास ध्यान देते हैं। चौथे सेमेस्टर से ही हम उन्हें अस्पतालों में प्रशिक्षण के लिए भेज दिया जाता हैं | इस व्यावहारिक अनुभव से छात्रों को मानव शरीर के बारे में अच्छी तरह से समझने में मदद मिलती है। वे सीधे मरीजों से मिलते हैं और उनका इलाज करते हैं। इससे विद्यार्थी कक्षा में सीखी बातों को बेहतर तरीके से समझ पाते हैं और व्यावहारिक अनुभव से सीखते हैं।
जेईसीआरसी स्कूल ऑफ एलाइड हेल्थ साइंसेज का नारायणा, मणिपाल, एपेक्स, गेट-वेल लैब, ईएचसीसी, एचसीजी, जीवन रेखा जैसे प्रमुख अस्पतालों के साथ टाई-अप हैं जिस से स्टूडेंट्स को बेहतर ट्रेनिंग मिल पाती हैं | स्टूडेंट्स भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति (बीएमवीएसएस) में भी प्रशिक्षण ले रहें हैं। यहां वे कटे अंगों के इलाज में फिजियोथेरेपी का व्यावहारिक प्रशिक्षण लेते हैं।
डीन, स्कूल ऑफ एलाइड हेल्थ साइंसेज, डॉ. विशाल जैन ने बताया की हम ‘आरोग्य’ नाम का एक सामुदायिक कार्यक्रम भी चलाते हैं। इसके तहत हम ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य शिविर और विशेषज्ञ वार्ता आयोजित करते हैं। इस तरह के अनुभव से छात्रों के हाथ का हुनर बढ़ता है। समुदाय के साथ मिलकर काम करने से वे अपने थेरेपी के तरीकों को सुधारते हैं और अनुभवी चिकित्सकों से सीखते हैं। असली मरीजों पर अभ्यास करके, छात्र आत्मविश्वास और कुशलता पाते हैं जो उनके करियर में काम आता हैं।
हेड ऑफ डिपार्टमेंट, फिजियोथेरेपी, स्कूल ऑफ एलाइड हेल्थ साइंसेज, डॉ. आकांशा शर्मा ने कहा की इस तरह के अनुभव से हमारे छात्र और ज्यादा जागरूक और अच्छे डॉक्टर बनते हैं। वे न केवल अच्छे फिजियोथेरेपिस्ट बनते हैं, बल्कि मरीजों के प्रति ज्यादा संवेदनशील और सहानुभूतिपूर्ण भी हो जाते हैं। जब वे अपनी पढ़ाई की शुरुआत करते हैं, तभी से उनमें ये गुण विकसित होने लगते हैं। कुल मिलाकर, यह प्रयास छात्रों को सैद्धांतिक और व्यावहारिक ज्ञान में संतुलन बनाने में मदद करता है और उन्हें बेहतर चिकित्सा पेशेवर बनाता है।