-रीढ़ की हड्डी से जुड़ी बीमारियों, ऑस्टियोपोरोसिस और संक्रमण के इलाज में नए तरीकों पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चर्चा
नई दिल्ली, दिव्यराष्ट्र/: भारत में तेजी से बढ़ रही रीढ़ की हड्डी से जुड़ी बीमारियों, जैसे कि ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियों का कमजोर होना) और स्पाइनल इंफेक्शन (संक्रमण) के बेहतर इलाज और रोकथाम को लेकर दिल्ली में एक अहम चिकित्सा संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस स्पाइनल कॉर्ड सोसाइटी मिड-टर्म संगोष्ठी में देश के 175 से ज्यादा हड्डी और स्पाइन से जुड़े डॉक्टरों ने हिस्सा लिया। इस आयोजन में 60 से अधिक अनुभवी डॉक्टरों ने अपनी बात रखी। कार्यक्रम का आयोजन स्पाइनल कॉर्ड सोसाइटी ने श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट और दिल्ली ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन के सहयोग से किया।
कार्यक्रम का नेतृत्व डॉ. एच.एस. छाबड़ा ने किया, जो श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट में स्पाइन और रीहैबिलिटेशन विभाग के डायरेक्टर हैं। वे स्पाइनल कॉर्ड सोसाइटी के अध्यक्ष भी हैं और इससे पहले भारत के स्पाइन सर्जन एसोसिएशन और अंतरराष्ट्रीय संस्था के भी अध्यक्ष रह चुके हैं।
डॉ. छाबड़ा ने बताया कि, “भारत में हड्डियों की कमजोर होने की बीमारी (ऑस्टियोपोरोसिस) और रीढ़ की टीबी जैसी बीमारियाँ तेजी से बढ़ रही हैं। ये बीमारियाँ शरीर को धीरे-धीरे कमजोर करती हैं, लेकिन अक्सर समय पर पता नहीं चल पातीं। महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों को भी इसका खतरा है। अगर समय पर इलाज न हो, तो मरीजों को लकवा या स्थायी विकृति हो सकती है।”
जानकारों के मुताबिक, दुनिया भर में करीब 50 करोड़ लोग ऑस्टियोपोरोसिस से जूझ रहे हैं और हर साल 89 लाख से ज्यादा फ्रैक्चर होते हैं, यानी हर 3 सेकंड में एक हड्डी टूटती है। भारत में यह बीमारी कम उम्र में भी देखने को मिल रही है। शहरी जीवनशैली, धूप से दूर रहना, कैल्शियम और विटामिन डी की कमी, और कम शारीरिक गतिविधि इसके पीछे के मुख्य कारण हैं। रीढ़ की हड्डी कमजोर होने से मरीज को लगातार पीठ दर्द, झुकी हुई चाल और चलने-फिरने में तकलीफ होती है। चिंता की बात यह है कि 80% मरीजों को हड्डी टूटने के बाद भी ऑस्टियोपोरोसिस का इलाज नहीं मिल पाता। वहीं, स्पाइनल टीबी भारत में एक और बड़ी समस्या है। गलत दवा सेवन, कमज़ोर प्रतिरोधक क्षमता और खराब जीवनशैली के कारण ये संक्रमण बढ़ रहे हैं। सही समय पर इलाज न मिलने पर यह रीढ़ की हड्डी में गंभीर नुकसान कर सकता है।
संगोष्ठी में चर्चा हुई कि इस तरह की बीमारियों का इलाज करने के लिए नई तकनीकों, जैसे बेहतर जांच, सर्जरी, ब्रेसिंग और दवाओं के सही इस्तेमाल को अपनाने की जरूरत है। सभी विशेषज्ञों ने मिलकर इस बात पर ज़ोर दिया कि इलाज के लिए मानक दिशा-निर्देश (प्रोटोकॉल) तैयार किए जाएँ और इलाज में डॉक्टरों की अलग-अलग विशेषज्ञताओं को साथ मिलाया जाए। इसके साथ ही, पुनर्वास (रीहैबिलिटेशन) और बीमारी की रोकथाम को भी इलाज का जरूरी हिस्सा बनाने पर ज़ोर दिया गया।
यह संगोष्ठी श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट की उस कोशिश का हिस्सा है, जिसके जरिए भारत में रीढ़ की बीमारियों का इलाज अंतरराष्ट्रीय स्तर के मुताबिक और ज्यादा प्रभावी बनाया जा सके।