विश्व णमोकार मंत्र दिवस पर विशेष

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9 अप्रैल को विश्व णमोकार मंत्र दिवस मनाया जा रहा हैं।

जयपुर,, दिव्यराष्ट्र/ मंत्र का अर्थ है एक उपकरण या एक ऐसी शक्तिशाली ध्वनि जिसके माध्यम से हम ध्यान की गहरी अवस्था में मन को पार करने के लिए अपने विचारों को ध्यानपूर्वक केंद्रित कर पायें।

विश्व मे प्रचलित लगभग सभी धर्म और सम्प्रदाय में मंत्र अभिन्न आवश्यक तत्त्व के रुप मे चलन में हैं

उदाहरणार्थ सनातन धर्म मे गायत्री मंत्र महामृत्युंजय सरीखे विशिष्ट मंत्रों के साथ साथ अलग अलग देवी देवताओं के लिये विभिन्न मंत्रों का प्रयोग अनादि काल से होता आया है।

लेकिन णमोकार महामंत्र को जैन धर्म मे महामंत्र या मंत्रराज की संज्ञा दी गई हैं।

णमोकार महामंत्र ।।

णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं

णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं*।

अर्थ : णमो अरिहंताणं-अरिहंतों को नमस्कार हो, णमो-सिद्धाणं-सिद्धों को नमस्कार हो। णमो आयरियाणं-आचार्यों को नमस्कार हो। णमो उवज्झायाणं- उपाध्यायों को नमस्कार हो, णमो लोए सव्व साहूणं-लोक के सभी साधुओं को नमस्कार हो*

इस मंत्र की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें किसी विशेष व्यकित या देवी-देवता को नमस्कार नहीं किया है। जिन्होंने तप-ध्यान करके अपनी आत्मा का कल्याण किया है और परमेष्ठी पद प्राप्त किया है अथवा इस हेतु प्रयासरत रहे हैं अथवा प्रयासरत हैं, ऐसे सभी महापुरूषों को नमस्कार किया गया है।

ज्योतिष नगरी कारोई निवासी पंडित अशोक व्यास इसके महत्व की पुष्टि में कहते हैं कि
यह मंत्र किसी धर्म, सम्प्रदाय अथवा जाति विशेष से संबंध नहीं रखता है।

सभी प्राणी चाहे वे किसी भी जाति, संप्रदाय, धर्म, देश के हों अथवा गरीब हों, अमीर हों,
इस मंत्र के द्वारा अपना कल्याण कर सकते हैं।

 

ऐसा पंच णमोयारो सव्व पावप्पणासणो*

मंगलाणं च सव्वेसिंह पढ़मं हवई मंगलम्*

कारोई के सिद्धि विनायक ज्योतिष केन्द्र के अधिष्ठाता पंडित अशोक व्यास इसकी विवेचना करते हुये कहते हैं कि

ये पंच नमस्कार मंत्र सभी पापों का नाश करने वाला है। और सभी मंगलों में पहला मंगल है।

इस मंत्र में केवल गुणों को नमस्कार किया गया है ।
विश्व का यह एकमात्र मंत्र है जोकि अपनी स्वयं की आत्मा से संबंधित है।

यह मन्त्र एक भावना है, एक इच्छा है, एक कामना है जो बार बार दोहराई जाती है ताकि वैसा हो जाए. नवकार मंत्र पांच नमस्कार है और मंगल कामना है. पहला नमस्कार है अरिहंतों को. अरिहंत उसको कहते हैं जिसने राग द्वेष मोह माया जैसे सारे मानवीय दुश्मन जीत लिए हैं.
दुसरा नमस्कार सिद्धों को है – सिद्ध उसको कहते हैं जो जन्म-जन्म के बंधनों से मुक्त हो गया है,

तीसरा नमस्कार आचार्यों को है जो सबको ज्ञान बांटते हैं
और चौथा नमस्कार उपाध्यायों को है और पांचवां नमस्कार सभी साधू – साध्वियों को है
जो स्वयं भी ज्ञान दर्शन तप और संयम के रास्ते पर चलते हैं और दूसरों को भी इसी रास्ते पर चलने के लिए कहते हैं.

इन पांच नमस्कारों के द्वारा इस मन्त्र में प्राणी मात्र के मंगल की कामना है. पंडित अशोक व्यास विशेष रुप से नवकार मंत्र की आखिरी पंक्ति को इंगित करते हैं
जिसमें यह कहा गया है की इस नमस्कार से सबका मंगल हो और सभी पापों का नाश हो – सबकी मंगल कामना और सबका कल्याण हो।

मूलत राजनीतिक अनुष्ठानों के चर्चा मे रहनेवाले पंडित अशोक व्यास दावा करते हैं कि इस महामंत्र के विभिन्न प्रयोग जनजीवन से जुड़ी सामान्य परेशानियों से लेकर नवग्रह शांति तथा विशिष्ट कामनापूर्ति तक मे पूर्ण सक्षम है।

शताधिक जैन साधु साध्वी गणो के साथ तत्त्वमीमांसा मे भागीदार रह चुके पंडित अशोक व्यास के अनुसार मनुष्य मे देवत्व के दर्शन तथा आदि दैहिक, दैविक, भौतिक रुपी त्रय के शमन में इसकी प्रामाणिकता अचूक अटूट और अक्षुण्ण हैं

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