-(दिव्य राष्ट्र के लिए रामनवमी पर कुलदीप शर्मा दाधीच की विशेष प्रस्तुति)
श्रीमद् भगवद्गीता के 10वें अध्याय के 31 वें श्लोक में, भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि, “पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्। हे अर्जुन! ”मैं पवित्र करने वालों में वायु हूँ, और शस्त्रधारियों में, मैं राम हूँ”। अर्थात्, शस्त्रधारियों में श्रीराम सबसे श्रेष्ठ हैं। भगवान श्रीकृष्ण और श्रीराम में कोई भेद मत समझना, चेहरे अलग हो सकते हैं, रूप-रंग अलग हो सकते हैं, लीलाओं के तल पर भेद हो सकते हैं, लेकिन अस्तित्त्व के तल पर कोई भेद नहीं हैं, दोनों की ताकत और महिमा एक ही है। राम में ही कृष्ण को देखो, कृष्ण में ही राम के दर्शन करो।
रामकृष्ण एक ही अस्तित्त्व का नाम है।
त्रेता युग में, भगवान विष्णु ने अधर्म का नाश करने और धर्म की स्थापना के लिए वामन, परशुराम और राम के रूप में अवतार लिए थे, वामन अवतार:
यह भगवान विष्णु का पाँचवाँ अवतार था, जो त्रेता युग के आरंभ में हुआ था, भगवान वामन ने राजा बलि से तीन पग धरती दान में माँगी थी, जिससे स्वर्ग लोक पर दैत्यों का अधिकार समाप्त हुआ, परशुराम अवतार:
यह भगवान विष्णु का छठा अवतार था, जो त्रेता युग में ही हुआ था, भगवान परशुराम ने क्षत्रियों के अत्याचारों का अंत किया और धर्म की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, राम अवतार:
यह भगवान विष्णु का सातवाँ अवतार था, जो त्रेता युग के अंत में हुआ था।भगवान श्रीराम ने रावण जैसे शक्तिशाली असुर का वध कर धर्म की स्थापना की और मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में आदर्श स्थापित किया। जबकि द्वापर युग में भगवान विष्णु के दो अवतार हुए थे – बलराम और श्रीकृष्ण, भगवान श्रीकृष्ण को इस युग का सर्वश्रेष्ठ पुरुष माना जाता है। परमात्मा श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु (श्री हरि) का आठवां अवतार माना जाता है, उन्होंने कंस का वध किया और महाभारत के युद्ध में श्रीमद् भगवद्गीता का उपदेश दिया।
भगवान विष्णु के नौवें अवतार महात्मा गौतम बुद्ध थे, उन्होंने ही बुद्ध धर्म की स्थापना की थी । जबकि भगवान विष्णु का दसवां अवतार कल्कि है, कल्कि अवतार को भगवान विष्णु का अंतिम अवतार माना जाता है, कल्कि अवतार के बारे में कल्कि पुराण और अग्नि पुराण में ज़िक्र मिलता है।
भगवान श्रीराम के हाथ में शस्त्र धर्म की रक्षा और अधर्म के नाश के लिए है, जबकि रावण के हाथ में शस्त्र अधर्म को बढ़ावा दे रहें थे, क्योंकि रावण के भीतर सिवाय हिंसा के और कुछ भी नहीं है। और हिंसा के हाथ में शस्त्र का होना, जैसे कोई आग में पेट्रोल डालता हो। यह हम समझ जाएंगे। यह हमारी समझ में आ जाएगा। इस दुनिया की पीड़ा ही यही है कि गलत लोगों के हाथ में ताकत है। गलत आदमी उत्सुक भी होता है,शक्ति पाने के लिए बहुत उत्सुक होता है, ताकि शक्ति का प्रयोग कर मनचाहे कार्य करता रहे, और हिंसा फैलाता रहे, यह हमेशा से दुर्भाग्य रहा है कि बुरे आदमी सदा से संगठित रहे हैं, अच्छा आदमी हमेशा अकेला खड़ा रहा है। और इसीलिए अच्छा आदमी हार गया, अच्छा आदमी जीत नहीं सका। अच्छा आदमी आगे भी नहीं जीत सकेगा। अच्छे आदमी को भी संगठित होना जरूरी है। बुराई की ताकतें इकट्ठी हैं। उन ताकतों के खिलाफ उतनी ही बड़ी ताकतें खड़ा करना आवश्यक है। इसलिए श्रीकृष्ण कहते हैं, जब मुझे शस्त्र उठाने पड़तें हैं, तो मैं श्रीराम हो जाता हूँ। परमात्मा विराट अस्तित्त्व है, बुद्धि की समझ से बाहर है, यदि राम मर्यादित हैं, तो राम मर्यादित रहते हुए शस्त्रधारी भी हैं।