नौसेना युद्ध के प्रथम प्रवर्तक रहे शिवाजी महाराज

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शिवाजी महाराज की जयंती पर विशेष

(डॉ. सीमा दाधीच)

प्रत्येक भारतीय के लिए गौरव और स्वाभिमान के प्रतिक शिवाजी महाराज युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत है। युवावस्था की दहली पर पैर रखते ही उन्होंने अपनी कुशाग्र बुद्धि का परिचय देते हुए तोरणा किला जीत कर हिंदुत्व की पताका फहराई और युद्ध कला में कौशल रखने के साथ ही धर्म, न्याय और कला प्रेमी के रूप में भी अपनी पहचान स्थापित की। “करा धर्माचा, सोडा जीवाचा” (न्याय करो, क्रूरता का त्याग करो)* यह शब्द महान योद्धा,मराठा वंश के योद्धा और पश्चिमी भारत में मराठा साम्राज्य के संस्थापक जीजाबाई के लाल के है।
छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1627 को मराठा परिवार में शिवनेरी (महाराष्ट्र) में हुआ था। शिवाजी महाराज, शाहजी भोंसले और जीजा बाई के पुत्र थे। उन्हें पूना में उनकी माँ और काबिल ब्राहमण दादाजी कोंडा-देव की देखरेख में पाला गया, कोंडदेव ने उन्हें महाभारत, रामायण और अन्य प्राचीन भारतीय ग्रंथों का ज्ञान दिया। उन्होंने बाल्यकाल में ही राजनीति और युद्ध नीति की कला में पारंगत हो गए। उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। उन्हें धार्मिक, राजनीतिक,और युद्ध कला की शिक्षा में पारंगत किया गया, जिसने उन्हें एक विशेषज्ञ सैनिक और एक कुशल प्रशासक बनाया। वह सभी कलाओ में माहिर थे।
उन्होंने 16 वर्ष की आयु में तोरणा किले पर विजय प्राप्त करके अपनी पहली सैन्य विजय प्राप्त की।
शिवाजी महाराज भाषण “करा धर्माचा, सोडा जीवाचा” (न्याय करो, क्रूरता का त्याग करो) यह नैतिक नेतृत्व के महत्व पर जोर देते रहे। शिवाजी महाराज ने न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों पर आधारित न्यायिक प्रणाली की स्थापना की, जिसमें निष्पक्ष रूप से न्याय करने वाले न्यायाधीश नियुक्त किए।
शिवाजी अपनी बुद्धि के लिए जाने जाते थे, यही एक ऐसा गुण था जिसने उन्हें मुगलों के खिलाफ कई युद्धों में जीत दिलाई। वह पहले भारतीय शासकों में से एक थे, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र की रक्षा के लिए ” नौसेना बल ” की अवधारणा शुरू की थी। वह धर्मनिरपेक्ष थे और उन्होंने अपनी बटालियन में कई सैनिकों को नियुक्त किया था।
शिवाजी महाराज एक महान मराठा योद्धा रहे, जिनके महान व्यक्तित्व, वीरता, नेतृत्व और दूरदर्शिता के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है। छत्रपती शिवाजी महाराज ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों कि सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। उन्होंने समर-विद्या में अनेक नवाचार किए तथा छापामार युद्ध में माहिर थे, शिवाजी महाराज ने गुरिल्ला युद्ध और नौसेना रणनीतियों में सबके छक्के छुड़ा दिए थे। प्रतापगढ़ की लड़ाई,कोल्हापुर की लड़ाई,पावनखिंड की लड़ाई चाकन की लड़ाई, उंबरखिंड की लड़ाई, सूरत की लूट , पुरंदर की लड़ाई, सिंहगढ़ की लड़ाई, कल्याण की लड़ाई, भूपालगढ़ की लड़ाई, संगमनेर की लड़ाई, यह शिवाजी की आखिरी लड़ाई थी,उन्होंने पुर्तगालियों, जंजीरा के सिद्धियों और अन्य तटीय शक्तियों के खिलाफ सफल नौसैनिक अभियान चलाए, जिससे अरब सागर में मराठा प्रभुत्व स्थापित हुआ।
शिवाजी का प्राथमिक लक्ष्य मराठा लोगों के लिए “स्वराज” या स्वशासन स्थापित करना था, जो बाहरी वर्चस्व से मुक्त हो। उन्होंने आदिल शाही सल्तनत और मुगल साम्राज्य के प्रभुत्व को सफलतापूर्वक चुनौती दी,दक्कन क्षेत्र के मध्य में एक स्वतंत्र मराठा साम्राज्य की स्थापना की यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी साथ ही
उन्होंने पुर्तगालियों, जंजीरा के सिद्धियों और अन्य तटीय शक्तियों के खिलाफ सफल नौसैनिक अभियान चलाए, जिससे अरब सागर में मराठा प्रभुत्व स्थापित हुआ। शिवाजी का प्रशासन काफी हद तक डेक्कन प्रशासनिक प्रथाओं से प्रभावित था, उन्होंने आठ मंत्रियों को नियुक्त किया जिन्हें ‘अस्तप्रधान’ कहा गया था, जो उन्हें प्रशासनिक मामलों में सहायता प्रदान करते थे,उनके शासन में अन्य पद भी थे पेशवा सबसे महत्वपूर्ण मंत्री थे जो वित्त और सामान्य प्रशासन की देखभाल करते थे।
16 साल की उम्र में, जब हर कोई जीवन का आनंद लेने में विश्वास करता है, राजे शिवाजी ने हमारे देश को गौरव वापस दिलाने और मुगल अन्याय और पीड़ा से समाज को मुक्त करने के लिए मुगल आक्रमण के खिलाफ अपनी लड़ाई शुरू की।अपनी आखिरी सांस तक, राजे ने समाज और धर्म के कल्याण के लिए सोचा और काम किया। आज के युवा को चुनौतियों पर विजय पाने के लिए नवीनता और सृजनशीलता पर ध्यान देना होगा साथ ही खुले दिमाग से साकारात्मक के साथ बड़े दृष्टिकोण से सोचें और जब इंसान सफलता के पथ पर हों तो विनम्र और स्थिर रहें।

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