“बालकांड से उत्तरकांड तक जनमानस को मर्यादित बनने की शिक्षा देती रामचरित मानस

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(डॉ. सीमा दाधीच)

विष्णुना सदृशो वीर्ये सोमवत्‌ प्रियदर्शन:। कालाग्निसदृश: क्रोधे क्षमया पृथिवीसम:।। धनदेन समस्त्यागे सत्ये धर्म इवापर
मर्यादा पुरूषोतम श्रीराम ने मानव के रूप में जन्म लेकर संसार को श्रेष्ठ मानव के रूप में जीवन जीकर राष्ट्र और समाज के लिए कर्तव्य बोध का ज्ञान कराया। आज्ञाकारी शिष्य, पितृ भक्त, माता का सेवक, आदर्श पति, श्रेष्ठ भ्राता, लोकप्रिय राजा, भक्तवत्सल के रूप में स्वयं को प्रतिपादित किया। पराक्रम में विष्णु के समान, मनोहर रूप में चन्द्रमा के समान हैं, क्रोध में अग्नि के समान हैं, धैर्य में पृथ्वी के समान हैं, दान में कुबेर के समान हैं तथा धैर्य में सूर्य के समान रह कर उन्होंने नारी शक्ति के आत्म सम्मान को समझा।
माता कौशल्या की कोख से राजा दशरथ के पुत्र रूप में श्रीराम ने जन्म लिया। मानव रूप में जन्म लेकर धरती से पापियों का नाश करने, बुराई का अंत करने तथा भेद-भाव की बेड़ियां तोड़ने का महान् कार्य एक पुरुष रूप में श्री राम ने किया। भगवान विष्णु के अवतारी भगवान राम के रूप में धरती पर जन्म लिया। राम नवमी का त्योहार सनातन धर्म के पालकों द्वारा पिछले कई हजार सालों से मनाया जा रहा है। रामनवमी का दिन भगवान राम के जन्म के साथ साथ मां दुर्गा की चैत्र नवरात्रि के समापन का संकेत देती है।
राम नवमी प्रमुख हिन्दू त्योहार है। यह शुक्ल पक्ष ‘या हिन्दू चंद्र वर्ष की चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान विष्णु के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्म की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन को राम नवमी भी कहा जाता है।
राम नवमी, भगवान राम के जन्म का उत्सव है, जिन्हें भगवान विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है। श्रीराम जिन्हें कलयुग के सर्वोत्तम श्रेष्ठ पुरुष के रूप में घर घर पूजा जाता है भारत वर्ष के साथ विदेशी भी राम भगत देखने को मिलते हैं । राम के जन्म से लेकर राजाराम हुए इसकी रचना भी हुई जो रामचरित मानस के रूप में हुई,तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना एक विशेष उद्देश्य के तहत की थी। राम जन्म के समय में समाज में अंधविश्वास और बुराइयों का बोलबाला था। तुलसीदासजी चाहते थे कि भगवान श्रीराम का जीवन आदर्श उदाहरण बनकर लोगों को सही मार्ग दिखाए। इस ग्रंथ के माध्यम से उन्होंने भक्तों को भक्ति का मार्ग दिखाया और जीवन के कठिन से कठिन समय में धैर्य रख कर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। हमारे देश में सरकार को गीता और रामायण के प्रसंग को पाठ्यक्रम में भी सम्मिलित करवाना चाहिए जिससे देश में आदर्श, गुणवान, श्रेष्ठ, और मर्यादित युवा शक्ति का निर्माण हो सके एवं सनातनी सोच को बढ़ावा मिल सके।
रामचरितमानस की रचना में सात कांड बताए गए जो श्रीराम के जन्म से राज्य में धर्म की स्थापना को बताया इसमें 7 कांड इस प्रकार हैं बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुंदरकांड, लंकाकांड, उत्तरकांड लिए गए हैं।
सात कांड को लिखने का उद्देश्य और उनसे मिलने वाली शिक्षाएं आज भी प्रत्येक व्यक्ति के लिए जीवन में उतारने लायक है इसमें
बालकाण्ड में भगवान राम के जन्म,बाल्यकाल और शिक्षा का वर्णन है, जिससे हमें मर्यादा और कर्तव्य पालन की शिक्षा मिलती है।
अयोध्याकाण्ड में राम के अयोध्या लौटने, राज्यभिषेक और वनवास की बात को लिखा गया है, जो त्याग और धर्म की रक्षा के महत्व को बताती है।
अरण्यकाण्ड में
राम,सीता और लक्ष्मण का वनवास, सीता हरण और शबरी से भेंट का वर्णन है, जो प्रेम, निष्ठा और भक्ति के महत्व को दर्शाता है।
किष्किन्धाकाण्ड में
हनुमान और सुग्रीव से मित्रता, रावण की सेना पर विजय और राम की शक्ति का प्रदर्शन है, जो मित्रता और सहयोग की शिक्षा देता है आज के युग में भी जाति के भेद भाव को भुलाकर व्यक्ति को सबको आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। राम चाहते तो अकेले ही रावण को मार सकते थे लेकिन समाज में एकता और सहयोग के साथ बुराई का अंत का संदेश दिया। सबसे अच्छा कांड जिसमें मानव रूप में जन्म लेकर भक्ति से जुड़ने का संकेत देता है
सुन्दरकाण्ड इसमें
हनुमान की राम के प्रति भक्ति और लंका में सीता को खोजने की कथा है, जो समर्पण और निष्ठा की शिक्षा देता है। लंकाकाण्ड मैं
राम और रावण के बीच युद्ध और रावण के अंत की कथा है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है। आज के युग में कार्य स्थल पर राम के आदर्श को समझने के लिए
उत्तरकाण्ड को तुलसीदासजी ने बहुत सुंदर वर्णन किया है इसमें राम के राज्य की स्थापना और आदर्श राजधर्म का वर्णन है, जो न्याय और धर्म के महत्व को दर्शाता है।
श्रीराम सूर्यवंश में अवतरित हुए थे और सूर्य की बारह कलाएं होती हैं अत: वे बारह कला से पूर्ण माने जाते हैं ,यह चेतना का सर्वोच्च स्तर होता है। इसीलिए प्रभु श्रीराम को पुरुषों में उत्तम माना गया है। रामजी को 12 कलाओं से युक्त माना जाता है, जो उनके आदर्श चरित्र, न्यायप्रियता और वीरता के रूप में समाहित हैं।भगतन राम 12 कलाओं और हनुमान 14 कलाओं के धनी होने के बावजूद, हनुमान राम के भक्त इसलिए बने क्योंकि हनुमान जी को राम के गुणों, न्याय, दया और करुणा से बहुत प्रभावित हुए थे और वे राम के लिए अपना सब कुछ समर्पित करने के लिए तैयार थे।
कलाएं दो प्रकार की होती है सांसारिक और आध्यात्मिक। श्रीराम ने अपने जीवन में कठिन से कठिन समय में चरित्र को उत्तम रखा और विपरीत परिस्थिति में भी नारी को माता का दर्जा दिया अपने उत्तम चरित्र के कारण ही रावण की पत्नी मंदोदरी को भी राम के चरित्र को श्रेष्ठ मानना पड़ा।श्रीराम ने बाली से युद्ध भी इसलिए ही किया क्योंकि बाली ने सुग्रीव को राज्य से निकाल दिया था और उसकी पत्नी का भी हरण कर लिया था,जो कि मर्यादा के खिलाफ था श्रीराम नारी शक्ति को आदर भाव से सम्मान करते थे। श्रीराम ने राजा होकर भी एक पत्नी से दूसरी पत्नी के लिए नहीं सोचा उन्होंने अपने अनुज को बताया कि एक नारी के सामने दूसरी नारी से विवाह करने पर पहली महिला के हृदय में पीड़ा होगी और श्रीराम किसी भी नारी को कष्ट में नहीं देख सकते थे इसलिए ही वो आदर्श और मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम कहलाए। उनके जीवन में संकट की स्थिति में हवन में बैठने के लिए उन्होंने दूसरी नारी को नहीं बल्कि सीता की जगह उनकी प्रतिमा को स्थापित कर दिया और हवन कार्य को संपूर्ण किया यह बताता है कि जीवन में विपरीत परिस्थिति में भी उन्होंने अपने आदर्श को सर्वोपरि रखा। आज के युग में भी यदि पुरुष नारी में सीता ढूंढते हैं तो उन्हें अपने भीतर श्री राम की तरह चरित्रवान बनना होगा तभी कलयुग की सीता अपना अस्तित्व रख पाएगी,आज प्रत्येक पुरुष को श्री राम के आदर्शों का पालन करना चाहिए।

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