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क्रोध की अग्नि पर क्षमा रूपी जल डालें -आचार्य गुप्तिनंदी

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आडूल, दिव्यराष्ट्र/ धर्मतीर्थ क्षेत्र के निकट श्री महावीर दिगंबर जैन मंदिर आडूल में दशलक्षण पर्व के पहले दिन परम पूज्य प्रज्ञायोगी दिगम्बर जैनाचार्य श्री गुप्तिनंदी जी गुरुदेव ने *उत्तम क्षमा धर्म*पर अपनी मंगल वाणी से कहा–क्रोध अग्नि की भट्टी है।क्रोध एक विषधर सर्प है।जिसके डसने से आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाता है।क्रोध मनुष्य को अंधा बना देता है।क्रोध विवेक को नष्ट करके आता है।होश की हत्या करके आता है।होश में व्यक्ति क्रोध नहीं करता,क्रोध बेहोशी में ही संभव है।क्रोध समझदारी को बाहर निकाल कर विवेक के द्वार बंद कर देता है।मनुष्य को विचार शून्य,विवेक शून्य बना देता है।क्रोध जहर है,और क्रोधी मनुष्य जहरीला व विषैला होता है,जब मनुष्य क्रोधी होता है तब शरीर में विष व्याप्त हो जाता है।
न्यूयार्क के वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग किया-एक अत्यंत क्रुद्ध मनुष्य का खून लेकर उसे इंजेक्शन के द्वारा खरगोश के शरीर में पहुंचा दिया और यह जानना चाहा क्रोधी मनुष्य के खून का एक खरगोश पर क्या असर होता है ? उन्हें यह जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह खून खरगोश के शरीर में पहुँचते ही 22 मिनट बाद पूर्णतया शांतचित्त बैठा खरगोश उछलने कूदने लगा,दांत किटकिटाने लगा,35 मिनट होते-होते वह स्वयं को काटने लगा व जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया।गर्म-गर्म श्वास छोड़ने लगा व 1 घन्टे के अन्दर-अन्दर वह सिर पटक-पटक कर मर गया।क्रोधी व्यक्ति का जहरीलापन विष का काम कर गया।इसलिए मनोवैज्ञानिक चिकित्सकों का कहना है कि क्रोध.के समय मनुष्य में जहर फैल जाता है।अतः माताएं क्रोध अवस्था में बच्चों को स्तनपान न करायें।जो माता क्रोधावस्था में अपने बच्चों को स्तनपान कराती है उनकी वह संतान अत्यंत उग्र प्रवृत्ति व क्रोधी स्वभाव की होती है।यहाँ यह भी कारण है कि अमृत पुत्र कहा जाने वाला इंसान आज विषाक्त हो गया है।जो मनुष्य कभी अमृत लुटाता था आज जहर उगलता है।
अणु व्रतों की विकास यात्रा में लगा रहने वाला मानव आज अणुबमों सें विनाश के मंजर तैयार कर रहा है।क्रोध पर विजय पाने के लिए क्षमा की शीतल धारा नितांत आवश्यक है।जैसे माँ अपने बच्चों को दूध पिलाकर पुष्ट करती है,उसकी रक्षा करती है वैसे क्षमा रूपी अमृत माता ही आत्मा को पुष्ट करती है।उसकी सच्ची रक्षक है । जैसै सीधे पृथ्वी पर गिरने वाली अग्नि स्वयमेव शांत हो जाती है क्योंकि वहाँ अग्नि को भड़काने वाला कोई ज्वलनशील पदार्थ नहीं है वैसे ही हम शांत रहें ज्वलनशील न बनें,उत्तेजित न हों दूसरा व्यक्ति हमारे समक्ष कितना ही क्रोध करें,क्रोध की ज्वाला बरसाये लेकिन हमारे क्रोध के अभाव में उसका क्रोध स्वयं शांत हो जाएगा,बुझ जाएगा।वह अकेला क्रोध करते-करते थक जायेगा।जब आप स्वयं के प्रति किसी का क्रोध सहन नहीं कर सकते तो दूसरे पर कैसे क्रोधित होते हो?यह चिंतन क्रोध का अभाव करता है और क्रोध के अभाव में क्षमा भाव प्रकट होता है।हमारी क्षमा स्वार्थ प्रेरित या राजनैतिक नहीं होना चाहिए।बल्कि उत्तम क्षमा होना चाहिए।क्षमा धर्म केवल आज ही धारण नहीं करना,क्षमा नित्य व सतत रहना चाहिए।आज क्षमा धर्म का दिन इसलिए केवल आज क्षमा करना है। फिर पूरे वर्ष की छुट्टी।
यदि आप ऐसा सोचते होंगे तो बड़ी भूल होगी।आज तो पूरे वर्ष का हिसाब करने का दिन है।दिवाली की भांति देखना है कहीं हमारी आत्मा का दिवाला तो नहीं निकल गया,वर्ष भर में हमने कितना क्षमा भाव रखा,कितना क्रोध किया व क्यों किया? प्रयास होना चाहिए कि जो गलतियाँ कर चुके हैं वे आगे न दोहरायें।पूर्व वर्ष 24 घंटे,क्षमा,प्रत्येक क्षण क्षमा ही क्षमा सतत क्षमा ही रहनी चाहिए।ऐसी क्षमा वीतरागता में ही होती है।अन्यत्र नहीं हो सकती,पर हमें अपने पुरुषार्थ द्वारा कषायों को मंद -मंदतर व मंदतम करने के प्रयास करने चाहिए।अनन्तांनुबंधी से बचना चाहिए।ये चरित्र व आत्मा के गुर्णों का घात करते हैं,इसीलिए ये अत्यंत घातक हैं।अनन्तांनुबंधी क्रोध, मान, माया,लोभ,मिथ्यात्व व
सम्यग्मिथ्यात्व ये आत्मा के गुणों को नष्ट करने वाला है ।इसीलिए ये सर्वघाती है।अतः हम जीवन में सदा उत्तम क्षमा धर्म का पालन अवश्य करें।इससे पूर्व धर्मतीर्थ क्षेत्र सहित श्री महावीर दिगंबर जैन मंदिर आडूल में आयोजित दस दिवसीय श्री रत्नत्रय श्रावक संस्कार ध्यान साधना शिविर में डाक्टर श्री प्रेमचन्द सौ.सुषमा कासलीवाल परिवार ने सौधर्म इन्द्र बनकर श्री नित्यमह पूजन, श्री पँचमेरू पूजन, श्री दशलक्षण पूजन व तत्त्वार्थसूत्र विधान संपन्न किया।वहीं प्रमोद संतोष बबनलाल कासलीवाल परिवार ने महाशान्तिधारा का सौभाग्य प्राप्त किया।शाम के ध्यान शिविर में आचार्य श्री ने ध्यान के विभिन्न विषयों का अभ्यास कराया।साथ ही श्री यशोधर मुनिराज की उत्तमक्षमा साधना का ध्यान कराया।सभी उत्सवों में सकल जैन समाज के सभी सदस्य बढ चढकर हिस्सा ले रहे हैं।

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