(डा.सीमा दाधीच)। भारत की राजनीति में शुचिता का संदेश देकर निष्ठावान और विचारवान कार्यकर्ताओं को आगे आकार देश की दशा और दिशा बदलने का संदेश देने वाले पण्डित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती 25 सितंबर को मनाई जाती है। उन्होने कार्यकर्ताओं को संदेश दिया था की व्यक्ति से बड़ा संगठन और संगठन से बड़ा देश होता है इसी संदेश को कारगर करने के लिए लाखो कार्यकर्ता आज पंडित दीनदयाल उपाध्याय के संदेश को साकार कर रहे है।धानक्या के लाल दीनदयाल ने विपरीत परिस्थितियों को अपने जीवन पर हावी नहीं होने दिया और एम. ए परीक्षाउत्तीर्ण कर, प्रशासनिक सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की लेकिन अंग्रेजों के जमाने में सरकार की नौकरी नहीं की ।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय किसी नाम का मोहताज नहीं रहे।संघ के जीवनभर प्रचारक रहे ।उपाध्याय ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की प्रेरणा से से ही राजनीति में कदम रखा और लगन, मेहनत से भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी निर्वाचित हुए जनसंघ के राष्ट्र जीवन दर्शन के निर्माता माने जाने वाले उपाध्याय को एकात्मता मानववाद की विचारधारा का जनक कहा गया। जनसंघ की आर्थिक नीति के रचनाकार रहे उपाध्याय के बारे में डॉक्टरश्यामा प्रसाद मुखर्जी ने उनकी कार्य कुशलता से प्रभावित होकर कहा था “यदि मुझे दो दिन दयाल मिल जाए तो मैं भारतीय राजनीति का नक्शा बदल दूं “उपाध्याय बहुमुखी प्रतिभा के धनी, पत्रकार होने के साथ-साथ चिंतक और लेखक भी रहे ।
अटल बिहारी वाजपेई, लाल कृष्ण आडवाणी ने पण्डित दीनदयाल के आदर्श को अपनाकर ही देश की राजनीति मे अपनी पहचान बनाई। भारतीय राजनीति को हिंदुत्व की धार की और अग्रसर करने का विचार भी उनका ही था। उन्होने अनेक पुस्तकों से हिंदुत्व धारा की और ध्यान खींचा है पण्डित दीन दयाल उपाध्याय द्वारा लिखित दो योजनाएं, राजनीतिक डायरी, राष्ट्रीय चिंतन (स्वयं के भाषण का संग्रह है), भारतीय अर्थनीति (विकास की एक दिशा), भारतीय अर्थनीति का अवमूल्यन, सम्राट चंद्रगुप्त, जगद्गुरु शंकराचार्य, राष्ट्रीय जीवन की दिशा, एकात्म मानववाद में उनकी झलक मिलती हैं एकात्म मानववाद की विचारधारा की झलक मिलती है। 25 सितंबर 1916 को महान चिंतक और संगठक ,सादा जीवन उच्च विचार धारक, दृढ़ संकल्प व्यक्तित्व के धनी रहे उपाध्याय का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय किसी पहचान के मोहताज नहीं रहे जनसंघ को उन्होंने शुचिता की राजनीति का केंद्र बनाया। उनके जन्मदिवस पर सभी राष्ट्रवादियों को उनसे प्रद्त शिक्षा का महत्व समझना चाहिए। शिक्षा की प्राथमिकता और गरिमा का बोध कराते हुए उन्होने बतायाथा कि हमारे शास्त्रकारों के अनुसार यह ऋषियों का ऋण है, जिसे चुकाना सभी का कर्तव्य है। जब हम अपनी भावी संतानों की शिक्षा की व्यवस्था करते हैं, तो हमारे मन में उनके प्रति कृतज्ञता का भाव नहीं होता, बल्कि हम अपने पूर्वजों से जो कुछ भी विरासत में मिला है, उसे अगली पीढ़ी को सौंपकर अपना ऋण चुकाना चाहते हैं। भारतीय शिक्षा के संबंध में दीनदयाल उपाध्याय के विचार उनकी पुस्तक ‘राष्ट्रचिंतन’, एवम साप्ताहिक समाचार पत्र पांचजन्य ,ऑर्गनाइजर में प्रकाशित उनके लेखों के अध्ययन से प्रतिबिंबित होते हैं। दीनदयाल एक ऐसी शिक्षा प्रणाली के समर्थक थे जो समय के अनुरूप हो,वह देश के अनुकूल भी हो। उनके अनुसार व्यष्टि और समष्टि को जोड़ने वाला प्रथम सूत्र ‘शिक्षा’ है। वे शिक्षा को समाज की जननी मानते हैं। उन्होंने शिक्षा के महत्त्व को अपने जीवन में भी समझा और दीनदयाल उपाध्याय जनसंघ के राष्ट्रजीवन दर्शन के निर्माता माने गए उनका उद्देश्य स्वतंत्रता की पुनर्रचना के प्रयासों के लिए विशुद्ध भारतीय तत्व-दृष्टि प्रदान करना था। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए एकात्म मानववाद की विचारधारा दी। जीवन की कठिन परिस्थितियों को इन्होंने अपने आचरण और अपने कार्य बहुत ही कुशलता पर हावी नहीं होने दिया और समाज को एक नई दिशा बताने का कार्य किया आज उनके जन्म दिवस पर हमें प्रेरणा लेनी चाहिए और शिक्षा के महत्व को समझना चाहिए इन्होंने स्थिति के अनुसार बदलती हुई शिक्षा पर भी अपने विचार व्यक्त किए जो आज भी कारगार साबित होते हैं।