मूल नाम राम था, भगवान शिव से परशु अस्त्र मिला और परशुराम कहलाए

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(दिव्यराष्ट्र के लिए कुलदीप दाधीच)

हम में से कई लोग सोचते होंगे कि दशरथ पुत्र राम के जन्म से पहले पृथ्वी पर कोई और दूसरा राम नहीं हुआ होगा, जो रामायण में हम राम देखते हैं उनके अलावा कोई राम नाम का अवतार नहीं हुआ होगा, लेकिन हमें यह विदित होना चाहिए कि रामायण में दिखाई पड़ने वाले दशरथ पुत्र श्रीराम से पहले महर्षि जमदग्नि के पुत्र का नाम भी राम ही था।
जिन्हें आज हम भगवान परशुराम के नाम से जानते हैं। भारतीय सनातन संस्कृति में राम नाम की त्रिवेणी है, अर्थात् हमारे यहाँ तीन राम हुए हैं, पहले महर्षि जमदग्नि के पुत्र राम, दूसरे अयोध्या के दशरथ के पुत्र राम और तीसरे कृष्ण के अग्रज बड़े भाई बलराम। तीनों के मूल नाम राम ही हैं।तीसरे राम बलशाली होने से बलराम है।
भगवान परशुराम के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ:
प्रश्न: महर्षि जमदग्नि के पुत्र ‘राम’ कैसे बने परशुराम?
उत्तर: बाल्यावस्था में भगवान परशुराम के माता-पिता इन्हें राम कहकर पुकारते थे। जब राम कुछ बड़े हुए तो उन्होंने पिता से वेदों का ज्ञान प्राप्त किया और पिता के सामने धनुर्विद्या सीखने की इच्छा प्रकट की। महर्षि जमदग्नि ने उन्हें हिमालय पर जाकर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा। पिता की आज्ञा मानकर राम ने ऐसा ही किया। उस बीच असुरों से त्रस्त देवता शिवजी के पास पहुंचे और असुरों से मुक्ति दिलाने का निवेदन किया। तब शिवजी ने तपस्या कर रहे राम को असुरों को नाश करने के लिए कहा। राम ने बिना किसी अस्त्र की सहायता से ही असुरों का नाश कर दिया। राम के इस पराक्रम को देखकर भगवान शिव ने उन्हें अनेक अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए। इन्हीं में से एक परशु (फरसा) भी था। यह अस्त्र राम को बहुत प्रिय था। इस परशु अस्त्र को धारण करने से राम का नाम परशुराम हो गया। महर्षि जमदग्नि के पुत्र होने के कारण भगवान परशुराम जामदग्न्य के नाम से भी जाने जाते हैं, और भृगुवंश का होने के कारण इन्हें भार्गव के नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न: भगवान परशुराम का परिचय क्या है?
उत्तर: महर्षि जमदग्नि और माँ रेणुका ( राजा प्रसेनजित की पुत्री) भगवान परशुराम के माता-पिता थे। अक्षय तृतीया के दिन वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया पर भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम ने माँ रेणुका के गर्भ से जन्म लिया था। पौराणिक संदर्भों के अनुसार परशुराम भृगुवंश में जन्मे थे। भृगु के पुत्र च्यवन हुए, च्यवन के ऋचीक, ऋचीक के पुत्र जमदग्नि और जमदग्नि के पुत्र भगवान परशुराम हुए। इस तरह उनकी पितृ परम्परा परम् यशस्वी रही है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, उनका जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में जानापाव नामक स्थान पर हुआ था।जानापाव पहाड़ी मध्य प्रदेश के इंदौर जिले की महू तहसील में, इंदौर-मुंबई राजमार्ग पर स्थित है। यह समुद्र तल से 881 मीटर की ऊँचाई पर है और इसे जानापाव कुटी के नाम से भी जाना जाता है |
प्रश्न: भगवान परशुराम उग्र और आवेशित क्यों हैं?
उत्तर: भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का छठा आवेशित अवतार माना जाता है। एक कथा के अनुसार महर्षि भृगु ने सत्यवती को जो कि महर्षि जमदग्नि की माँ थी, उसे कहा था कि तुम्हारा पुत्र ब्राह्मणवंशी होते हुए भी क्षत्रिय जैसा आचरण करेगा, सत्यवती ने भृगु ऋषि से प्रार्थना कि और कहा मेरा पुत्र ब्राह्मण जैसा ही आचरण करे, भले ही मेरा पौत्र ( पुत्र का पुत्र) क्षत्रियों जैसा आचरण कर ले, भृगु ऋषि मान गए और तथास्तु कहा। सत्यवती भगवान परशुराम की दादी थी। इसलिए भृगु ऋषि के शब्दों का प्रभाव महर्षि जमदग्नि के पुत्र राम पर पड़ा, इसलिए भृगु ऋषि के शब्दों के कारण भगवान परशुराम को उग्र और आवेशित माना जाता है।
प्रश्न: क्षत्रियों के विनाश से संबंधित कथा क्या है?
उत्तर: भगवान परशुराम ने क्षत्रिय वंश का समूल नाश नहीं किया था, बल्कि उन्होंने विशेष रूप से हैहय वंश के क्षत्रियों का 21 बार संहार किया था।भगवान परशुराम ने यह प्रतिज्ञा अपने पिता के वध और माता के सती होने के बाद ली थी।क्षत्रिय वंश में हैहय वंशाधिपति सहस्रार्जुन के कुल का विनाश, कथाओं के अनुसार माहिष्मती के राजा कार्त्तवीर्य अर्जुन ने भगवान दत्तात्रेय के वरदान से एक हज़ार भुजाएं प्राप्त की थीं। इसीलिए वह सहस्रार्जुन कहलाता था और हज़ार भुजाओं के बल से अजेय था। एक बार वह शिकार खेलता हुआ वन में महर्षि जमदग्नि के आश्रम जा पहुंचा। महर्षि ने आश्रम में कपिला नामक कामधेनु की सहायता से राजा का आतिथ्य किया। चलते समय राजा ने महर्षि से वह कामधेनु मांगी और इनकार करने पर उसे बलपूर्वक छीनकर ले गया। इससे कुपित परशुराम ने परशु के प्रहार से उसकी समस्त भुजाएं व सिर काट दिया। प्रतिशोध स्वरूप सहस्रार्जुन के पुत्रों ने परशुराम की अनुपस्थिति में उनके ध्यानस्थ पिता जमदग्नि की हत्या कर दी। माता रेणुका पति की चिता पर चढ़ सती हो गईं। इससे कुपित परशुराम ने माहिष्मती पर आक्रमण कर उसे अपने अधिकार में ले लिया। फिर तो उन्होंने एक के बाद एक पूरे इक्कीस बार इस पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश कर डाला। उनका क्रोध इस सीमा तक था कि उन्होंने हैहयवंशी क्षत्रियों के रक्त से कुरुक्षेत्र में समन्तपंचक नाम से पांच तालाब बना दिए और इसी रक्त से दिवंगत पिता का श्राद्ध किया। अंत में दादा महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर कृत्य करने से रोका। इसके बाद परशुराम ने अश्वमेध यज्ञ किया और सप्तद्वीप युक्त पृथ्वी महर्षि कश्यप को दान कर दी। देवराज इंद्र के समक्ष अपने शस्त्र त्याग कर वे सागर के उच्छिष्ट भूभाग महेंद्र पर्वत पर आश्रम बनाकर रहने लगे।
प्रश्न: अष्टचिरंजीवी कौन-कौन हैं?
उत्तर: आठ चिरंजीवियों में अश्वत्थामा, राजा बलि, महर्षि वेदव्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, भगवान परशुराम तथा ऋषि मार्कण्डेय अमर हैं, चिरंजीवी हैं ।
प्रश्न: भगवान परशुराम की आराधना हमें क्या प्रदान करती है?
उत्तर: भगवान परशुराम की आराधना से आत्मबल, उत्साह और वीरता का संचार होता है। इसके साथ ही भगवान परशुराम मातृ-पितृ भक्ति की सेवा के भी अनुपम उदाहरण हैं।भगवान परशुराम त्याग, तपस्या शस्त्र और शास्त्र के ज्ञाता होने अनुपम उदाहरण हैं।
परशुराम का जीव-जंतुओं के प्रति प्रेम उनके जीवनकाल में प्रदर्शित होता है।

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