दिव्यराष्ट्र, जयपुर: पहली बार, देश भर से 100 से अधिक कृषि वैज्ञानिक नेमाटोड के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय सेमिनार में एकत्र हुए। नेमाटोड्स फसलों की भारी क्षति के कारण बनते हैं, जिससे हर साल लगभग 25,000 करोड़ रुपये की आर्थिक हानि होती है। हाल ही में सिंजेंटा इंडिया द्वारा आयोजित इस सेमिनार में विशेषज्ञों ने प्रभावी नेमाटोड प्रबंधन की तात्कालिक आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि मृदा स्वास्थ्य को सुरक्षित रखा जा सके, फसल उत्पादकता बनी रहे और रसायनिक हस्तक्षेप को कम किया जा सके। वैज्ञानिकों ने सरकार के कृषि-केंद्रित बजट की सराहना करते हुए वैज्ञानिक अनुसंधान में अधिक निवेश और एक मजबूत अनुसंधान एवं विकास (R&D) पाइपलाइन की मांग की।
सेमिनार का उद्घाटन करते हुए, सुशील कुमार, कंट्री हेड और एमडी, सिंजेंटा इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने कृषि चुनौतियों से निपटने में किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “किसान हमारे खाद्य सुरक्षा प्रयासों के केंद्र में हैं। हमारी तकनीकें प्रमुख कृषि चुनौतियों का समाधान करती हैं और नवाचार उत्पादन क्षमता को बढ़ाने में सहायक हैं। उद्योग और अकादमिक संस्थानों के बीच सहयोग भारतीय कृषि में परिवर्तन लाने के लिए आवश्यक है।”
फसल उपज पर नेमाटोड्स के प्रभाव के बारे में बोलते हुए, सिंजेंटा इंडिया में फसल सुरक्षा अनुसंधान एवं विकास के प्रमुख विनोद शिवरैन ने कहा, “भारत में प्रमुख पौध परजीवी नेमाटोड्स के कारण होने वाली वार्षिक फसल हानि लगभग 19.6 प्रतिशत है, जो 25,000 करोड़ रुपये के बराबर है। इसके बावजूद, किसानों में नेमाटोड्स के बारे में जागरूकता बहुत कम है, जिससे इस मुद्दे से निपटने के लिए सभी हितधारकों के सहयोग की आवश्यकता है।”
उन्होंने आगे कहा, “हमारा लक्ष्य जागरूकता बढ़ाना, नवीनतम तकनीकों को प्रदर्शित करना और पौध परजीवी नेमाटोड्स से निपटने के लिए प्रभावी एवं टिकाऊ समाधान विकसित करना है। कॉरपोरेट क्षेत्र और अकादमिक संस्थानों के बीच भागीदारी के माध्यम से हम तकनीकी विशेषज्ञता और संसाधनों का उपयोग कर नेमाटोड-रोग जटिलता का अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधन कर सकते हैं और कृषि की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित कर सकते हैं।”