Home कला/संस्कृति जयपुर काव्य साधक एवं राष्ट्रीय समरस सृजन संस्थान, जयपुर की काव्यांजलि सभा

जयपुर काव्य साधक एवं राष्ट्रीय समरस सृजन संस्थान, जयपुर की काव्यांजलि सभा

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जयपुर,, दिव्यराष्ट्र/ढूंढॉड़ी, हिंदी एवं ब्रजभाषा के पुरोधा कवि स्वर्गीय बिहारी शरण पारीक की द्वितीय पुण्य तिथि पर काव्य साधक स्टूडियों में जयपुर काव्य साधक एवं राष्ट्रीय समरस सृजन संस्थान, जयपुर की व.कवि एवं गीतकार जगदीश मोहन रावत की अध्यक्षता, डॉ. श्यामसिंह राजपुरोहित के मुख्य आतिथ्य एवं प्रेम पहाड़पुरी के विशिष्ठ अतिथ्य में श्री बाल मुकुन्द पुरोहित जी की सरस्वती वंदना के साथ काव्यगोष्ठी प्रारम्भ हुई ।
वैद्य भगवान सहाय पारीक ढूंढाड़ी में रचना -“गोपियां ने भावै मोबाइल तेरी बंशी कौन सुनैगो। कानां के लग रह्यो मोबाइल तेरी मुरली कौन सुनेगो।। अब नाही मधुवन में आवे,अब नाही ये माखन लावे, अब नाही सिंगार सजावे ।अब ना ही जमुना जल लावे। बोतल बिस्लेरी मंगवाने री तेरी बंशी कौन सुनेगो” पढ़कर प्रशंसा में पाई ।
अरुण ठाकर ने -“किसी दिन हम भी सितारों में होंगे, कितने फुर्सत में अपने हमारे होंगे” और गीतकार कवि बालमुकुंद पुरोहित ने “पिंजरे में बंद तोता बोले,बोले अपनी मैना से । कैसे मिलूं ओ प्यारी सजनीयां, अब मैं तुझसे आके।” सुनाकर दाद पायी ।
कवयित्री नीता भारद्वाज ने इन पंक्तियों से मुस्कान बिखेरी -“जीवन की हर एक उलझन को, कुछ ऐसे सुलझायें हम.!
आशा को विश्वास बना कर हँसें और मुस्कायें हम .!” वही श्रीमती सावित्री रायज्यादा ने इन पंक्तियों में श्रद्धासुमन अर्पित किए -“चरण-शरण में कृष्ण के, विहारी किर्ति-शेष।
स्मृति से गद्-गद होत मन,काव्य ग्रंथ अवशेष।।” और –
लो पुष्पांजलि कविप्रवर, अंतर में नव भाव जगे हैं।
ऋषितुल्य के चरण-कमल हित,हृदय-डाल पर पुष्प खिले हैं।”

रमेश चिंतक ने – “पिता पुत्र की अतुलनिय शक्ति है जीवन और भविष्य के निर्माण की । अँगुली पकड़कर चलना सिखाता, जीवन देकर पोषण करता अपने नन्हें मेहमान की” भाव विभोर किया वही वरिष्ठ कवि अमित आजाद ने -“जमाने में तो हैं रिश्ते बहुत आने कहने को, पर पिता से बढ़कर कोई रिश्ता नहीं होता । पिता तू हमारे लिए तो आसमां है, अगर तू साथ है तो दर्द कहाँ है । – भावपुर्ण रचना पढ़ी ।

वरिष्ठ कवि वरुण चतुर्वेदी ने श्रद्धा सुमन अर्पित करते कहा -“तुम गए पास मेरे गमी रह गई, मेरी आँखों मे केवल नमी राह गई । रात-दिन दिल मेरा यही सोचता है, मेरी पूजा में क्या कमी रह गई ।” माहौल को मार्मिक बना दिया । वही सोहनलाल शर्मा ‘सोहन’ – “सुणोजी म्हारा जैपुर छा बड़ा कवि दादाभाई । शुभनाम कवि बिहारी शरण, करै छा कविताई ।”
कवयित्री रंजिता जोशी ने अपनी भावनाएं यूं व्यक्त की –
हसरत बहुत छोटी सी है मेरी, जयपुर के इस जपुरिया का,
एक छोटा सा हिस्सा हूँ मैं, इस हिस्से का किस्सा बन जाऊँ ,
आँखों में नए सपने सजाऊँ , सब के दिल में मैं बस जाऊँ ,
मगर, किसी दिन स्वयं किस्सा बन जाऊँगी, तब अपनी कहानी इन गुरु कलमकारों से ही लिखवाऊंगी ।

किशोर पारीक ‘किशोर’ ने अपने बाबूजी के कुछ हास्य-संस्मरण सुलाने के बाद रचना पढ़ी – “आज रात सपने में आये बाबूजी, आशीर्वाद दिया और मुस्कायें बाबूजी” सुनकर माहौल भावुक बना दिया । रितेश ने ढूंढाड़ी में बिहारी शरण के हास्य-व्यंग्य याद करते, और केसरदेव मारवाड़ी और गंगाधर शर्मा ‘हिंदुस्तान की सरस काव्य रचनाओँ के बाद विशिष्ठ अतिथि श्री प्रेम पहाड़पूरी जी ने -कन्हैया जी जिंदगी क्या है अपने पराए बिना,ज़ख्म खाएबीन, प्यसर करते हैं हम जटाएबीन, खोडिया है हमने उन्हें पाये बिना । ऐसा चेहरा डियाह खुद ने, कि मुस्कराहट दिखाते हैं,मुस्कराए बिना ।

मुख्य अतिथि डाँ श्यामसिंह राजपुरोहित श्रद्धा सुमन अर्पित करते कहा “पिता को देव जो जाने,पिता की जोआज्ञा माने,वही दुनिया में वही पुत्र श्रेष्ठ कहलाता है ।रखता पिता का ध्यान,करता पूरा सम्मान, वही पिता को यश दिलवाता है ।” और “नयन मेरे बड़े तरसाए बाबूजी। मुझको कभी न मिल पाए बाबूजी।मुझे भी हो जाता ज्ञान कुछ छंदों का।वह बोध मुझे नहीं दे पाए बाबू जी।” एक शमा जो बुझ कर भी,छोड़ कर नई भोर। बिहारी हमसे बिछड़े , दे कर एक किशोर” सुना कभाव विभोर कर दिया
गोष्ठी के अध्यक्ष वरिष्ठ गीतकार श्री जगदीश मोहन रावत जी ने स्व. बिहारी शरण पारीक जी को याद करते इस तरह भावनाए प्रकट की -‘धरती पर जब तक रहे, कविगण रहे सनाथ । धरयो सबन कै शीश पर, बाबूजी ने हाथ ।। धन्य बिहारी शरण जी, बहुभाषी कविराज । सूणो जैपुर कर गए, याद करै कवि आज । आपने कहा कि यहाँ इंसान आते हैं और चले जाते हैं, पर जो अपने पद चिन्ह छोडजाते है, लोग उन्हें याद करते हैं । पर बाबूजी तो पूरा शिलालेख ही छोड़कर गए है । वे हिन्दी, ढूंढी, बृज में ही नही अंग्रेजी में भी सटीक ली बह्यर में दोहय लिखते थे । बाबूजी के पास जो भी आता था बड़े आत्मीय भाव से उनसे मिलते थे। मेमोरी ऑफ यू वेरी स्वीट एंड क्लियर.
अंत में किशोर पारीक ‘किशोर’ जने अपने पिता के काव्यांजलि हेतु आयोजित गोष्ठी में आए सभी श्रोताओं का आभार प्रकट किया । गोष्ठी के अंत वरुण चतुर्वेदी ने धन्यवाद ज्ञापित किया । गोष्ठी का सफल संचालन समरस संस्थान के व. उपाध्यक्ष राव शिवराजपाल सिंह ने किया ।

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