(दिव्य राष्ट्र के लिए गिरिराज अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत)-
कश्मीर के पहलगाम में मंगलवार 22 अप्रैल की दोपहर पर्यटकों पर हुए बर्बर आतंकी हमले ने एक बार फिर पाकिस्तान पोषित आतंकवाद का घिनौना चेहरा उजागर किया है। इस कायराना हरकत में कई निर्दोष जानें गईं, जिससे पूरा देश आक्रोशित है। जवाब में, भारत सरकार ने अपनी चुप्पी तोड़ी है और पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए कठोर राजनयिक और रणनीतिक कदम उठाने का फैसला किया है। यह स्पष्ट संकेत है कि भारत अब सीमा पार आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा। कश्मीर में दशकों से जारी इस नासूर को जड़ से उखाड़ फेंकने का समय आ गया है।
यह आतंकी हमला शांत बाईसरन घाटी (पहलगाम) में हुआ, जिसे अक्सर ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ कहा जाता है और जो पर्यटकों के बीच बेहद लोकप्रिय है। इस नृशंस हमले में कम से कम 27 लोग मारे गए, जिनमें 25 भारतीय पर्यटक और एक नेपाली और एक विदेशी नागरिक शामिल थे। 20 से अधिक घायल हुए। पीड़ित भारत के विभिन्न राज्यों- जैसे राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा से थे। शहीदों में एक नवविवाहित भारतीय नौसेना अधिकारी और एक खुफिया ब्यूरो (IB) अधिकारी भी शामिल हैं। चश्मदीदों के अनुसार, कायर आतंकवादियों ने धार्मिक पहचान पूछकर विशेष रूप से गैर-मुस्लिम पुरुषों को निशाना बनाया– यह उनकी सांप्रदायिक और वहशी मानसिकता का प्रमाण है।
इस हमले की जिम्मेदारी ली है द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) नामक आतंकी गुट ने, जिसे लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों का मुखौटा माना जाता है। TRF ने बेशर्मी से कश्मीर में “बाहरी लोगों” को बसाने का विरोध इस हमले का कारण बताया है। सुरक्षा एजेंसियों ने LeT से जुड़े संदिग्ध हमलावरों के स्केच जारी किए हैं, जिनमें से कुछ के विदेशी (पाकिस्तानी) होने का शक है।
हमले के फौरन बाद, भारतीय सुरक्षा बलों ने घाटी में आतंकियों के सफाए के लिए बड़े पैमाने पर ऑपरेशन शुरू कर दिया है। हजारों जवान, अनगिनत चौकियां और हवाई निगरानी के जरिए इन कायरों को पाताल से भी ढूंढ निकालने की कसम खाई गई है। पर्यटकों को, विशेषकर उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर निशाना बनाना, कश्मीर में आतंकियों की हताशा और उनकी रणनीति में खतरनाक बदलाव का संकेत है। यह हमला पर्यटन उद्योग को तबाह करने की साजिश है, जो हाल ही में पटरी पर लौट रहा था। TRF जैसे नए नाम का इस्तेमाल केवल दुनिया की आँखों में धूल झोंकने की कोशिश है; असली आका पाकिस्तान में बैठे हैं। भारत की त्वरित और व्यापक सुरक्षा प्रतिक्रिया सरकार के फौलादी इरादों और आतंकियों को नेस्तनाबूद करने के संकल्प को दर्शाती है।
पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ अभूतपूर्व कदम उठाए हैं, जिनका लक्ष्य उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करना और सीमा पार आतंकवाद की फैक्ट्री बंद करने पर मजबूर करना है, इनमें प्रमुख हैंः-
सिंधु जल संधि निलंबित: भारत ने दो टूक कह दिया है कि जब तक पाकिस्तान अपनी धरती से आतंकवाद का समर्थन बंद नहीं करता, तब तक सन् 1960 की सिंधु जल संधि निलंबित रहेगी। यह संधि, जिसने कई युद्धों के बावजूद पानी का बंटवारा सुनिश्चित किया था, अब पाकिस्तान की आतंकी हरकतों की भेंट चढ़ गई है। रावी, ब्यास और सतलज पर भारत का हक है, जबकि सिंधु, झेलम और चिनाब का पानी पाकिस्तान को मिलता था। पानी को हथियार बनाना भारत की नई, आक्रामक नीति का स्पष्ट संकेत है। पाकिस्तान को अब समझ आ जाना चाहिए कि आतंकवाद की कीमत चुकानी होगी।
अटारी सीमा सील: भारत ने अटारी-वाघा सीमा पर इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट (ICP) को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया है। यह भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापार का एकमात्र जमीनी रास्ता और लोगों की आवाजाही का मुख्य बिंदु था। अफगानिस्तान से व्यापार भी यहीं से होता था। इस तालाबंदी से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और कनेक्टिविटी पर सीधी चोट पड़ेगी। छोटे व्यापारियों से लेकर बड़े उद्योगों तक, सबको नुकसान होगा। लोगों की आवाजाही बंद होने से रिश्तों पर जमी बर्फ और गहरी होगी। वैध दस्तावेजों वालों को 1 मई, 2025 तक लौटने का अल्टीमेटम दिया गया है, उसके बाद सीमा पूरी तरह सील हो जाएगी।
राजनयिक रिश्ते न्यूनतम: भारत ने दोनों देशों में उच्चायोगों के स्टाफ की संख्या 55 से घटाकर सिर्फ 30 करने का फरमान सुनाया है, जो 1 मई, 2025 से लागू होगा। नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग के रक्षा, सैन्य, नौसेना और वायु सलाहकारों को ‘अवांछित व्यक्ति’ घोषित कर एक हफ्ते में देश छोड़ने का आदेश दिया गया है। भारत भी इस्लामाबाद से अपने समकक्षों को वापस बुला रहा है। पांच सहायक कर्मचारियों की भी छुट्टी कर दी गई है। यह कदम पाकिस्तान के साथ राजनयिक संबंधों को न्यूनतम स्तर पर ले आएगा, बातचीत के दरवाजे लगभग बंद कर देगा और पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर और अधिक शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी।
पाकिस्तानी वीजा रद्द: भारत ने सार्क वीजा छूट योजना (SVES) के तहत पाकिस्तानी नागरिकों को जारी सभी वीजा रद्द कर दिए हैं। जो पाकिस्तानी इस वीजा पर भारत में थे, उन्हें 48 घंटे के भीतर देश छोड़ने का हुक्म दिया गया था। यह कदम पाकिस्तान को और अलग-थलग करेगा और स्पष्ट संदेश देगा कि भारत में उसके नागरिकों के लिए अब कोई जगह नहीं, जब तक वह आतंकवाद का रास्ता नहीं छोड़ता।
आतंक का खूनी इतिहास:
जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद का खूनी खेल 1980 के दशक के अंत में शुरू हुआ और 1990 के दशक में पाकिस्तान के सक्रिय समर्थन से चरम पर पहुंचा। शुरुआत में जम्मू और कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) जैसे गुट आजादी का ढोंग रचते थे, लेकिन जल्द ही हिजबुल मुजाहिदीन (HM), हरकत-उल-अंसार (HuA), लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे पाकिस्तानी प्यादों ने कमान संभाल ली, जिनका मकसद केवल जिहाद और भारत को तोड़ना रहा है। TRF जैसे नए मुखौटे भी इन्हीं पुराने दरिंदों के नए चेहरे हैं।
कश्मीर को दहलाने वाले पाकिस्तान प्रायोजित प्रमुख आतंकी हमले:
कश्मीर और भारत ने पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद का दंश दशकों से झेला है, जिसका रक्तरंजित इतिहास कुछ इस प्रकार है:- वर्ष 2000 में, लश्कर-ए-तैयबा (LeT) ने चटिसिंगपुरा में 35 निर्दोष नागरिकों का नरसंहार किया और उसी साल अमरनाथ यात्रा पर हुए कायराना हमले में 62 श्रद्धालुओं की जान गई, उसमें भी LeT का हाथ होने का संदेह है। साल 2001 में, जैश-ए-मोहम्मद (JeM) ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमला कर 38 लोगों की हत्या कर दी। इसके बाद साल 2002 में, जम्मू के रघुनाथ मंदिर पर LeT/JeM के आतंकियों ने हमला किया, जिसमें 24 लोग मारे गए। साल 2003 में, LeT ने नदीमार्ग में फिर एक नरसंहार को अंजाम दिया, जिसमें 24 कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई।
इसके बाद, साल 2005 में हिजबुल मुजाहिदीन (HM) ने श्रीनगर में बमबारी की जिसमें 5 जानें गईं। साल 2006 में, LeT ने डोडा में एक और नरसंहार किया, जिसमें 35 लोग मारे गए। साल 2008 में, LeT ने देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को दहला दिया, जिसमें 26/11 के भीषण हमले में 164 लोगों की जान चली गई।
आतंक का यह सिलसिला रुका नहीं; साल 2016 में जैश-ए-मोहम्मद (JeM) ने उरी में सेना के कैंप पर हमला किया, जिसमें 19 जवान शहीद हो गए। साल 2019 में, JeM ने ही पुलवामा में CRPF के काफिले पर आत्मघाती हमला किया, जिसमें 40 जवान वीरगति को प्राप्त हुए। हाल के वर्षों में, साल 2024 में रियासी में हुए आतंकी हमले में LeT ने 9 निर्दोष तीर्थयात्रियों की जान ले ली और अब 2025 में, द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF), जिसे LeT का मुखौटा माना जाता है, ने पहलगाम में 27 पर्यटकों और नागरिकों की हत्या कर दी है। यह खूनी सूची पाकिस्तान द्वारा लगातार पोषित किए जा रहे आतंकवाद का स्पष्ट प्रमाण है।
जीरो टॉलरेंस नीति और अनुच्छेद 370 का असरः
भारत ने आतंकवाद के खिलाफ ‘कतई बर्दाश्त नहीं’ (Zero Tolerance) की नीति अपना रखी है। हमारा लक्ष्य सिर्फ आतंकियों को मारना नहीं, बल्कि पूरे आतंकी इकोसिस्टम-उनके मददगारों (OGW), फाइनेंसरों और प्रचारकों को ध्वस्त करना है। अनुच्छेद 370 का खात्मा इसी दिशा में एक निर्णायक कदम था, जिसने अलगाववाद और कट्टरता की जड़ों पर प्रहार किया। सुरक्षा बलों की मजबूत कार्रवाई, घेराबंदी और तलाशी अभियान (CASO), बेहतर खुफिया तंत्र और आतंकियों की कमर तोड़ने वाले वित्तीय एक्शन लगातार जारी हैं।
हाँ, कुछ आलोचक कहते हैं कि यह केवल सैन्य समाधान है या “सामान्य स्थिति” का दावा खोखला है। लेकिन सच यह है कि हाल के वर्षों में आतंकी घटनाओं और घुसपैठ में भारी कमी आई है। OGW नेटवर्क की कमर तोड़ दी गई है और टेरर फंडिंग पर शिकंजा कसा गया है। खुफिया विफलताओं या समन्वय की कमी जैसी चुनौतियों से लगातार निपटा जा रहा है। अनुच्छेद 370 के बाद विकास की गति तेज हुई है, भले ही कुछ निहित स्वार्थी तत्व इसे स्वीकार न करें। पर्यटन पर ध्यान देना अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास है, न कि मूल समस्याओं से ध्यान भटकाना। पहलगाम जैसी घटनाएं हमें विचलित नहीं कर सकतीं, बल्कि हमारा संकल्प और दृढ़ करती हैं।
भविष्य की रणनीति: कश्मीर से आतंकवाद के पूर्ण सफाए के लिए एक बहुआयामी, आक्रामक रणनीति अनिवार्य है जैसे:
खुफिया तंत्र को फौलादी बनाना: आधुनिकतम तकनीक (ड्रोन, सेंसर, AI) का प्रयोग, एजेंसियों के बीच रियल-टाइम सूचना साझाकरण, जमीनी ह्यूमन इंटेलिजेंस को मजबूत करना और आतंकियों के नए कम्युनिकेशन/फाइनेंसिंग तरीकों (ऑनलाइन, क्रिप्टो) पर नजर रखना।
टेरर फंडिंग की गर्दन मरोड़ना: हवाला नेटवर्क ध्वस्त करना, क्रिप्टोकरेंसी के दुरुपयोग पर रोक, अंतरराष्ट्रीय सहयोग से आतंकियों और उनके आकाओं की संपत्ति जब्त करना, ड्रग्स और अवैध धंधों से आतंकी फंडिंग के रास्ते बंद करना।
सीमाओं को अभेद्य बनाना: LOC और IB पर चौबीसों घंटे निगरानी, घुसपैठ रोधी ग्रिड को और मजबूत करना, सेना, अर्धसैनिक बलों और सीमा सुरक्षा बल के बीच पूर्ण समन्वय, सीमा चौकियों पर गहनतम जांच।
स्थानीय लोगों का विश्वास जीतना: विकास, शिक्षा और रोजगार के अवसर प्रदान करना, मानवाधिकारों का सम्मान (लेकिन आतंकियों के लिए कोई दया नहीं), राष्ट्रवादियों के साथ संवाद, निष्पक्ष शासन सुनिश्चित करना, कट्टरपंथी विचारों का खंडन और रणनीतिक संचार से अलगाववादियों को बेनकाब करना।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान को नंगा करना: पाकिस्तान के आतंकी चेहरे को दुनिया के सामने बार-बार लाना, उस पर आतंकी गुटों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई का दबाव बनाना, मित्र देशों से खुफिया साझाकरण और क्षमता निर्माण में सहयोग लेना।
निर्णायक लड़ाई: कश्मीर में स्थायी शांति के लिए संकल्प!
पहलगाम का कायराना हमला कश्मीर में सुरक्षा स्थिति की गंभीर चुनौती को दर्शाता है। भारत सरकार की बिजली की तेजी से की गई कार्रवाई – सिंधु जल संधि का निलंबन और अटारी सीमा की तालाबंदी – पाकिस्तान और उसके पाले हुए आतंकियों के लिए एक स्पष्ट संदेश है: अब बस बहुत हुआ! लेकिन स्थायी शांति केवल गोलियों से नहीं आएगी। इसके लिए एक ऐसी फौलादी रणनीति चाहिए जो सुरक्षा के साथ-साथ कश्मीरी अवाम (राष्ट्रवादी) की आकांक्षाओं को पूरा करे और अलगाववादियों-आतंकियों को पूरी तरह कुचल दे।
खुफिया तंत्र को मजबूत करना, आतंकियों की फंडिंग रोकना और सीमाओं को सील करना पहली प्राथमिकता है। स्थानीय लोगों का विश्वास जीतना और उन्हें विकास में भागीदार बनाना भी उतना ही जरूरी है, ताकि वे आतंकियों के बहकावे में न आएं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान पर दबाव बनाए रखना होगा कि वह अपनी आतंकी फैक्ट्री बंद करे, वरना उसे और गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
कश्मीर में स्थायी शांति की राह कठिन है, लेकिन भारत का संकल्प अटल है। सरकार, सुरक्षा बलों और देशभक्त कश्मीरियों के एकजुट प्रयासों से ही इस क्षेत्र से आतंकवाद के नासूर को हमेशा के लिए मिटाया जा सकता है। यह लड़ाई निर्णायक है और भारत इसे जीतेगा!