जयपुर, दिव्यराष्ट्र/: राजस्थान प्रदेश के सीकर जिलान्तर्गत ग्राम दिवराला में 37 वर्ष पूर्व हुए रूपकंवर सती प्रकरण में जयपुर महानगर द्वितीय की सती निवारण स्पेशल कोर्ट ने बुधवार को सभी 8 आरोपियों को बरी कर दिया। अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि आरोपियों ने महिमामंडन किया। इस मामले में 11 आरोपी पहले ही 31 जनवरी 2004 को बरी हो चुके हैं। अदालत ने श्रवण सिंह, महेन्द्र सिंह, निहाल सिंह, जितेन्द्र सिंह, उदयसिंह, नारायण सिंह, भंवरसिंह व दशरथ सिंह को आज बरी किया जबकि राजेन्द्र राठौड़, प्रतापसिंह खाचरियावास, नरेन्द्र सिंह राजावत, गोपाल सिंह राठौड़, रामसिंह मनोहर, आनन्द शर्मा, ओंकारसिंह, जगमलसिंह, बजरंग सिंह, प्रहलाद सिंह व सुमेर सिंह को बीस साल पहले ही बरी कर दिया था।
गौरतलब है कि जयपुर की रहनेवाली 18 वर्षीय रूपकंवर का विवाह सीकर जिले के दिवराला ग्राम निवासी 24 वर्षीय मालसिंह शेखावत से हुआ था। विवाह के सात माह बाद गंभीर बीमारी की वजह से मालसिंह का निधन हो गया जिसके बाद मृत पति के साथ रूपकंवर का सती हो जाने का प्रकरण प्रकाश में आया। 4 सितम्बर 1987 को रूपकंवर सती हुई जिसे आखरी सती माना जाता है। रूपकंवर अपने पति के साथ चिता में जलकर भस्म हो गई। इसके बाद सती स्थल पर चबुतरे का निर्माण कर पूजा अर्चना शुरू हो गई व चुनरी, नारियल, अगरबत्ती व प्रसाद आदि चढाये जाने लगे बताये। इस प्रकरण का महिमामंडन होने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय हरिदेव जोशी की सरकार ने 45 लोगों के खिलाफ हाईकोर्ट में मामला दर्ज करवाया। देश की आजादी के बाद राजस्थान में सती होने के 29 मामले हुए, परन्तु रूपकंवर सती प्रकरण ने तूल पकड़ लिया तथा देश व प्रदेश का नाम इस मामले में दुनिया भर में चर्चित हो गया। इस मामले की जल्द सुनवाई के लिए जयपुर में सती निवारण मामलों की विशेष अदालत बनी। बुधवार को इसका फैसला आया। रूपकंवर के सती होने के दौरान दिवराला गांव में काफी लोग एकत्रित हो गये थे। आरोप था कि सति का महिमामंडन किया गया। इन मे से कई आरोपी तो ऐसे है जो इतने लंबे समय मे बुजुर्ग हों गए और कई राजस्थान सरकार मे उच्च पदों पर आसीन भी रह चुके है। राजेंद्र राठौड़ और प्रताप सिंह खाचरियावास का नाम भी इन आरोपियों मे रहा है वही आनंद शर्मा पत्रकारिता से जुड़े रहे है। दिवराला कांड को लेकर देश, विदेश के मिडिया जगत मे लंबे समय तक चर्चा चली थीं और राजस्थान मे यह प्रकरण लंबे समय तक जवल्नत विषय बना रहा। इस प्रकरण के बाद तत्कालीन राज्य सरकार ने सती निवारक अधिनियम के तहत सती महिमा मंडन को अपराध की श्रेणी में लाने का काम किया