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दिल्ली के धर्मशिला नारायणा अस्पताल ने हैप्लोआइडेंटिकल बीएमटी द्वारा 2 भाई-बहनों के थैलेसीमिया का सफलतापूर्वक इलाज किया

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पुणे स्थित झा परिवार की प्रेरक कहानी थैलेसीमिया रोगियों के लिए नई आशा उजागर करती है

नई दिल्ली, दिव्यराष्ट्र/ थैलेसीमिया एक आनुवंशिक रोग है, जो हमारे देश में सबसे आम वंशागत विकार है, जिसमें हर साल 10,000 से अधिक बच्चे थैलेसीमिया के सबसे गंभीर रूप से पीड़ित होते हैं जिसे ‘थैलेसीमिया मेजर’ कहा जाता है। ऐसे बच्चे केवल नियमित रक्त आपूर्ति और बार-बार रक्त आपूर्ति के साथ इकट्ठा होने वाले अतिरिक्त लौह को दूर करने वाली दवाओं जिन्हें आयरन किलेशन कहा जाता है, के माध्यम से जीवित रह सकते हैं। आँकड़ों के अनुसार कहें तो, अप्रभावित माता-पिता दोनों में थैलेसीमिया का जीन होने पर भी, थैलेसीमिया मेजर वाले बच्चे के होने की संभावना 25% है। फिर यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि दो बच्चे हैं – दोनों थैलेसीमिया मेजर से प्रभावित हैं।

यह कहानी पुणे के रहने वाले आशुतोष और प्रीति झा के दो बच्चों राधिका और शिवांश की है। अशुतोष और प्रीति को 2015 में एक सुंदर बेटी हुई और उन्होंने उसका नाम राधिका रखा। लेकिन 6 महीने के भीतर, राधिका पीली और सुस्त होने लगी और जांच करने बाद राधिका में थैलेसीमिया मेजर की पुष्टि हुई। यह खबर आशुतोष और प्रीती के लिए एक बम विस्फोटक जैसा था। मासिक रक्त आपूर्ति और कुछ महीनों बाद आयरन किलेशन गोलियों का सहारा लेना, सब कुछ माता-पिता के लिए अवास्तविक लगने लगा था। इसे एक जीवनभर चलने वाले मामले के रूप में विचार करना और इससे जुड़ी सभी विभीषिकाओं को पचाना मुश्किल था।

क्या इस स्थिति का कोई इलाज है? अशुतोष और प्रीति ने आसपास पूछा। कुछ लोगों ने भाई-बहन से बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने का सुझाव दिया! लेकिन एक शर्त है- भाई-बहन में से किसी एक को भी वही रोग स्थिति नहीं होनी चाहिए और रोगी के साथ उसका एचएलए एंटीजन पूरी तरह से मेल खाना चाहिए। मानव कोशिकाएं 12 एचएलए एंटीजन अभिव्यक्त करती हैं, जो जोड़ियों में विरासत में मिलते हैं, एक पिता से और एक माता से। और ऐसा ही मानव और वास्तव में सभी स्तनपायियों में सुरक्षात्मक तंत्र है, कि किसी भी अन्य एचएलए को लेकर कोई भी कोशिका, जो अपने स्वयं के समान नहीं है, शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा सरेआम अस्वीकार कर दी जाएगी। तो, दो बच्चों के समान माता-पिता से एचएलए की समान जोड़ी विरासत में मिलने की क्या संभावना है? फिर से, यह संभावना विरासत के सरल नियम के अनुसार 25% है। लेकिन राधिका उन दोनों की पहली और एकमात्र बच्ची थी। इसलिए, 100 % मिलान के साथ बीएमटी संभव नहीं था।

लेकिन आशुतोष और प्रीति हार नहीं मानने वाले थे। उन्होंने डॉक्टरों से पूछा कि अगर वे दूसरा बच्चा पैदा करें तो क्या होगा! वे कैसे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि अगला बच्चा रोग के जीन को नहीं विरासत में लेगा? वे कैसे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि बच्चे एक दूसरे के लिए एचएलए मैच किए गए हैं? उन्हें बताया गया कि वे गर्भावस्था के 10 सप्ताह के भीतर इसका पता लगा सकते हैं। इसलिए, बहुत उम्मीद के साथ उन्होंने 2 साल बाद अपने दूसरे बच्चे को गर्भ धारण किया। 10 सप्ताह में किया गया स्क्रीनिंग में कोई असामान्यता नहीं दिखाई दी और वे राधिका के इलाज की उम्मीद लगाए हुए थे।

शिवांश जन्म के समय एक स्वस्थ बच्चा था। लेकिन जब वह 6 महीने का था, तो राधिका के समान लक्षण शिवांश में भी दिखने लगे। उनके दुर्भाग्य से, शिवांश को भी थैलेसीमिया मेजर का रोगी पाया गया। यह जोड़ा पूरी तरह से निराश था। फिर भी, उन्होंने हार नहीं मानी। वे देश के सभी प्रमुख अस्पतालों के दरवाजे खटखटाने के लिए एक चिकित्सा तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। कुछ डॉक्टरों ने एक असंबंधित डोनर रजिस्ट्री से बीएमटी की सिफारिश की। यह न केवल महंगा था, बल्कि भारत में बहुत कम विशेषज्ञों का थैलेसीमिया के लिए ऐसे प्रत्यारोपण करने का अनुभव था। हालांकि, दो केंद्रों ने उन्हें बताया कि माता-पिता से बीएमटी की संभावना है, जो राधिका और शिवांश के साथ पूरी तरह से मेल नहीं खाते थे।

यह कैसे संभव था। अब तक उन्हें बताया गया था कि डोनर, चाहे संबंधित हो या असंबंधित, रोगी के साथ पूरी तरह से मेल खाना चाहिए। और फिर भी, कुछ डॉक्टर एचएलए मिसमैच बीएमटी की बात कर रहे थे। उन्हें बताया गया कि यह कठिन है, 50% जोखिम के साथ गंभीर जटिलताओं का। आशुतोष ने अपना खुद का शोध शुरू कर दिया। गूगल पर, सोशल मीडिया और माता-पिता समूहों में। ऐसा लगता था कि ऐसे प्रत्यारोपण, जिसे हैप्लोआइडेंटिकल बीएमटी कहा जाता है, पिछले 5 वर्षों में यूरोप और अमेरिका में थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों में आंशिक परिणामों के साथ एक बहुत नई प्रक्रिया थी। प्रीति इस साहसिक कार्य के पक्ष में नहीं थी। उसने तर्क दिया कि कई अन्य परिवारों की तरह, वे भी ब्लड ट्रांस्फ्यूशन और आयरन किलेशन से काम चला लेंगे।

अगस्त 2017 के महीने में, आशुतोष ने एक बंगाली परिवार के बारे में पता किया, जहां माता-पिता अपनी इकलौती बेटी के लिए एक समान परिस्थिति का सामना कर रहे थे। वे धर्मशिला नारायणा अस्पताल पहुंचे, जहां डॉ. सुपर्णो चक्रवर्ती और डॉ. सरिता जैसवाल नवीनतम दृष्टिकोण के साथ में हैप्लोआइडेंटिकल बीएमटी कर रहे थे और उन्होंने कई बच्चों को ठीक भी किया था।

आशुतोष तुरंत अपने पूरे परिवार के साथ दिल्ली गए। बीएमटी विभाग से हर कोई अभी भी याद करता है कि कैसे दोनों बच्चे, राधिका और शिवांश, परामर्श कक्ष में घुस आए और अपनी नजर में आने वाली हर चीज को बरबाद कर दिया। वे केवल दो दिन पहले रक्त आधान लेकर आए थे। दोनों डॉक्टरों ने बारी-बारी से हैप्लोआइडेंटिकल बीएमटी की बुनियादी अवधारणा और वे कैसे परिश्रमपूर्वक वहां पहुंचे हैं, इसकी व्याख्या की। बहुत विचार-विमर्श के बाद, माता-पिता राधिका के लिए हैप्लोआइडेंटिकल बीएमटी करवाना चाहते थे। उन्होंने डॉक्टरों से पूछा था कि वे डोनर के लिए माता-पिता में से किसे चुनेंगे! माता-पिता के रक्त के नमूने के साथ-साथ राधिका के भी कई अलग-अलग पैरामीटरों के अलावा एचएलए की जांच की गई। अंत में, आशुतोष को डोनर के रूप में चुना गया। 26 मार्च, 2018 को, राधिका ने थैलेसीमिया से मुक्त अपने नए जीवन में कदम रखा।

प्रक्रिया की सफलता को देखते हुए, माता-पिता चाहते थे कि शिवांश के साथ भी ऐसा ही हो। लेकिन फिर आ गई कोविड के रूप में भयानक महामारी, जिसने उनकी सभी योजनाओं पर रोक लगा दी। हालांकि, उन्होंने धैर्य रखा, और 31 जनवरी, 2022 को शिवांश की बारी आई। इस मामले में डोनर प्रीति थी। आशुतोष अक्सर सोचता है कि दोनों बच्चों के लिए अलग-अलग माता-पिता को क्यों चुना गया। जो भी कारण रहा हो, उसके लिए राधिका और शिवांश दोनों के लिए यह एक सुखद अंत साबित हुआ।

छह साल और दो साल बाद, दोनों थैलेसीमिया मेजर से जुड़े सभी कष्टों से मुक्त हैं।

डॉ. सुपर्णो चक्रबर्ती, विभागाध्यक्ष – हेमेटोलॉजी एंड बोन मेरो ट्रांसप्लांटेशन ने कहा, हम सभी थैलेसीमिया रोगियों के जीवन में एक सार्थक बदलाव लाने के लिए प्रयासरत हैं। अपने निरंतर प्रयासों के माध्यम से, हमारा लक्ष्य आनुवंशिक विकारों का सामना कर रहे परिवारों को आशा और उपचार प्रदान करना है। सफलता की हर कहानी हमें चिकित्सा के क्षेत्र में और उपलब्धि हासिल करने हेतु प्रेरित करती हैं।

धर्मशिला नारायणा अस्पताल में में हाप्लोआइडेंटिकल बीएमटी की प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ. सरिता रानी जयसवाल बताती है कि “हमारा मिशन सभी थैलेसीमिया रोगियों को आशा और उपचार प्रदान करना है। राधिका और शिवांश के प्रत्यारोपण की सफलता हमारे दृष्टिकोण की प्रभावशीलता को रेखांकित करती है।“ धर्मशिला नारायणा अस्पताल में 2014 में डॉक्टरों ने उन सभी बच्चों को ठीक करने का मिशन शुरू किया था जिनके पास थैलेसीमिया मेजर है और जिनके परिवार में एचएलए-मैच डोनर नहीं है, और वे सभी बाधाओं के बावजूद इस मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं।

आशुतोष और प्रीति झा ने कहा कि “डॉ. चक्रवर्ती और डॉ. जयसवाल से मुलाकात के बाद हमें नई आश जगी। उनकी विशेषज्ञ और समर्पण के कारण ही यह सब संभव हो पाया। हालांकि अब थैलेसीमिया हमारे लिए अतीत की बात है। इस तरह के प्रत्यारोपण करने में डॉक्टरों और टीम को काफी मेहनत करनी पड़ी। हम अपने जीवन को बदलने के लिए धर्मशिला नारायणा अस्पताल और इसकी समर्पित केयर टीम के आभारी हैं। धर्मशिला नारायणा अस्पताल के क्रिटिकल केयर टीम ने हमें बेहतर ढंग से हाप्लोआइडेंटिकल बीएमटी के बारे में समझाया और तब जाकर हमारा डॉक्टरों पर विश्वास बढ़ा।

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