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4 मई को ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन के कार्यक्रम में ‘दाशरथि’ महाकाव्य पुस्तक का होगा लोकार्पण 

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जयपुर । ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन की ओर से शनिवार 4 मई को ’दाशरथि’ महाकाव्य पुस्तक का लोकार्पण किया जाएगा। लेखक संग्राम सिंह ’राष्ट्रवर’ की ओर से रचित इस पुस्तक का लोकार्पण जेएलएन मार्ग स्थित कलानेरी आर्ट गैलरी में शाम 5 बजे किया जायेगा।

कार्यक्रम संयोजक प्रमोद शर्मा ने बताया कि, इस अवसर पर भगवान श्रीराम के चरित्र पर देवांशु झा अपना व्याख्यान देंगे। पुस्तक की विषय वस्तु पर साहित्यकार डॉ. गजादान चारण वक्तव्य प्रस्तुत करेंगे। राजस्थान सरकार में वरिष्ठ आईएएस अधिकारी और राजस्व मंडल के अध्यक्ष राजेश्वर सिंह कार्यक्रम की अध्यक्षता करेंगे। इस आयोजन में शहर के गणमान्य नागरिक एवं प्रबुद्ध जन भाग लेंगे।

’दाशरथि’ के रचयिता संग्राम सिंह ’राष्ट्रवर’ का जन्म सापणन्दा गांव तत्कालीन किशनगढ़ रियासत में हुआ था। बचपन से ही तीक्ष्ण बुद्धि एवं वाकपटु संग्राम सिंह ने अपनी शिक्षा सरवाड़ एवं किशनगढ़ में ग्रहण की एवं मैट्रिक के बाद उच्च शिक्षा ग्रहण करने हेतु कृषि कॉलेज लखावटी, जिला बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश गए। वहां शिक्षा ग्रहण करने के दौरान उनका रुझान हिंदी साहित्य के प्रति हो गया। हालांकि उन्होंने 14 वर्ष की आयु से ही कविता लिखना आरंभ कर दिया था। संग्राम सिंह ने अपने जीवन काल में काव्य का खूब सृजन किया। जिनमें से कुछ रचनाएं प्रकाशित हुई और कुछ उन तक ही सीमित रह गई। उनकी समस्त साहित्यिक रचनाओं पर आर्य समाज की विचारधारा का प्रभाव है। इसी समर्पित साधना से उन्होंने ’दाशरथि’ महाकाव्य रचा।

ब्रजभाषा का यह महाकाव्य राम कथा की अनुपम रचना है, जिसमें राम को एक आदर्श व परम पुरुषार्थी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। 12 विभिन्न सर्गों वाले  ’दाशरथि’  महाकाव्य की विशेषता यही है कि इसमें सनातन आस्था वाले श्रद्धालु राम भक्तों के समान ही सुधारवादी राम निष्ठा वाले व्यक्तियों की भावनाओं को भी उचित पोषण मिला है।

संग्राम सिंह अंतिम दिनों में सादगी पूर्ण जीवन जीते हुए सतत साहित्य साधना करते रहे। जीवन के अंतिम वर्ष संत जीवन जीते हुए सदैव ओम सुमिरन करते हुए बिताए। 25 मई 1994 को महाकवि  ’राष्ट्रवर’ का अपने गांव सापणन्दा में देहांत हो गया। उनके पुत्र नाथूसिंह राठौड़ के प्रयास से ही यह ग्रंथ प्रकाशित हो पाया है।

दाशरथि महाकाव्य के अलावा उनकी अन्य रचनाएं हैं – रूप बहतरी, वीराष्टक,  रणवीर रत्नावली,  शृंगार सरोज हास्य हिलोर, मननीय मंजूषा, दिव्य दोहे आदि।

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