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पुस्तक ‘जलियांवाला बाग, 1919 – द रियल स्टोरी’ पर चर्चा…

पिक ए बुक (पीएबी) जयपुर द्वारा आयोजन….

जयपुर, दिव्यराष्ट्र। अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को हुआ दिल दहला देने वाला जलियांवाला बाग नरसंहार जनरल रेजिनाल्ड डायर द्वारा भारतीयों को सबक सिखाने के लिए की गई एक सुनियोजित कार्रवाई थी। घटना से तीन दिन पहले, 10 अप्रैल को रॉलेट एक्ट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आयोजित करने के लिए अमृतसर में डॉ. सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल की गिरफ्तारी पर झड़प हुई थी। लोग दोनों को छुड़ाने के लिए अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर को ज्ञापन देना चाहते थे। रेलवे ओवर ब्रिज पर पुलिस पिकेट तोड़ने की कोशिश में पुलिस ने फायरिंग कर दी, जिसमें करीब 20 भारतीयों की मौत हो गई। इसकी प्रतिक्रिया के रूप में, पुराने अमृतसर शहर में भारतीयों द्वारा 5 यूरोपीय लोगों की हत्या कर दी गई और उन्होंने टाउन हॉल, बैंक और टेलीग्राफ भवन को जला दिया।

जलियांवाला बाग में अपनी कार्रवाई से डायर स्पष्ट रूप से यह संदेश देना चाहता था कि भारतीयों द्वारा यूरोपीय लोगों के खिलाफ इस तरह की हिंसा बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यह बात जगदीप सिंह ने अशोक क्लब में किश्वर देसाई की पुस्तक ‘जलियांवाला बाग, 1919 – द रियल स्टोरी’ प्रस्तुत करते हुए कही। पुस्तक पर पावरप्वाइंट प्रेजेंटेशन पिक ए बुक (पीएबी) जयपुर द्वारा आयोजित किया गया था।

प्रजेंटेशन के माध्यम से इस गंभीर तथ्य पर प्रकाश डाला गया कि वैसाखी के दिन जलियांवाला बाग में एकत्रित हुए 2500 से अधिक लोगों पर अंधाधुंध गोलीबारी की गई, जिसमें 1000 से अधिक लोग मारे गए और कई घायल हो गए। अंग्रेजों द्वारा दिया गया आधिकारिक आंकड़ा इससे काफी कम था। जनरल डायर 11 अप्रैल को अमृतसर आया था और बिना किसी लिखित या मौखिक आदेश के सेना की कमान अपने हाथ में ले ली थी। उसने 12 अप्रैल को एक आदेश जारी किया था कि कोई पब्लिक मीटिंग या सभा नहीं आयोजित की जा सकेगी, लेकिन जलियांवाला बाग के पास रहने वाले लोगों को इस आदेश की सूचना प्रभावी ढंग से नहीं दी गई थी। जनरल डायर 50 सैनिकों के साथ वहां पहुंचा। जिन्होंने बिना किसी पूर्व चेतावनी के निहत्थे, शांतिपूर्ण तरीके से वहां बैठे मासूम लोगों पर 10 मिनट की अवधि में 1650 राउंड फायरिंग कर इस घटना को अंजाम दिया। अमृतसर में रात 8 बजे के बाद कर्फ्यू के कारण घायलों को इलाज नहीं मिला और न ही कोई चिकित्सा सहायता प्रदान नहीं की गई।

घटना के बाद के दिनों में, डायर ने अमृतसर के भारतीय निवासियों को विभिन्न प्रकार की सज़ाएं दीं, जिनमें भयानक ‘रेंगने का आदेश’ (क्राउलिंग ऑर्डर) भी शामिल था, जहां भारतीयों को 150 वर्ग गज की लेन पर रेंगने के लिए मजबूर किया जाता था।

जलियांवाला गोलीकांड की पूरे विश्व में कड़ी निंदा हुई। महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम को नई गति मिली। जहां अंग्रेजों ने जांच के लिए हंटर कमेटी बनाई, वहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भी अपनी ओर से जांच कराई। जनरल डायर और पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ’डायर दोनों को भारत से इंग्लैंड वापस बुला लिया गया। जनरल डायर को इस्तीफा देने के लिए कहा गया लेकिन उसे सजा नहीं दी गई। बाद में ब्रिटेन ने इस घटना पर खेद जताया है, लेकिन इसके लिए माफी नहीं मांगी है। बीस वर्ष बाद उधम सिंह ने लंदन में ओ’डायर की हत्या कर दी। इसकी पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि उधम सिंह शायद जलियांवाला बाग में मौजूद थे और उन्होंने बचपन में नरसंहार की इस घटना को देखा था।

प्रजेंटेशन के बाद प्रश्न-उत्तर सेशन हुआ। इस कार्यक्रम का संचालन पिक ए बुक की रीजनल हेड, अंशू हर्ष ने किया मेंटर टॉक सिद्धार्थ शर्मा द्वारा दिया गया।

 

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