लेखक, चिंतक व पत्रकार सम्मान पाने के चक्कर में सत्य को न दबाएं

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(दिव्यराष्ट्र के लिए कुलदीप दाधीच)

अपनी स्पष्ट सोच को बेधड़क उजागर करने वाले लेखक और शिक्षक कुलदीप दाधीच का कहना है कि, जो भी व्यक्ति सत्य की दुनिया में अपना पहला कदम रखना चाहता है, तो उसे सबसे पहले लोगों की सोच और लोगों से स्वयं को मिलने वाले सम्मान की भूख को त्यागना ही पड़ेगा, अन्यथा वह सत्य की दुनिया में कदम भी न रख सकेगा, क्योंकि लोग क्या कहेंगे? क्या सोचेंगे? क्या बातें बनेगी? यही बात उसे सत्य का साक्षात्कार करने से रोक देगी। और वह सत्य का एक शब्द भी न पढ़ सकेगा। दुनिया में जिन लोगों ने भी सत्य को जाना, वे सभी बेधड़क लोग थे, साहसी थे, हिम्मत वाले लोग थे। उन्होंने सत्य को किसी को तंग करने के लिए नहीं, बल्कि मनुष्य जीवन को साफ-सुथरा रखने के लिए बोला और लिखा है।
एक लेखक की कलम से सत्य उतना ही उजागर होता चला जाता है, जितना वह सम्मान की भूख को त्यागता चला जाता है। हिंदी विषय के प्रसिद्ध लेखक और व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई जी ने बहुत ही सुंदर बात कही है कि- लेखक को आदरणीय होने से बचना चाहिये, लेखक आदरणीय हुआ और गया। क्योंकि आदर हमें कुछ बोलने से बचाता है, आदर की भूख हमें कुछ लिखने से बचाती है, आदर पाने की भूख सत्य की सीढ़ियों पर चढ़ने में बाधा बन जाती है। हरिशंकर परसाई जी ने ही अपनी बात को आगे रखते हुए कहा है कि- जो जितना अंड-बंड बकता है, वह उतना ही बड़ा महात्मा होता है। क्योंकि उसके मन में कोई जहर नहीं होता, उसे केवल सत्य दिखाई पड़ता है, सत्य को पाने के खातिर वह कुछ भी कर सकता है। जिस तरह गुरु शिष्य को सुधारने के खातिर कुछ भी बोल देता है, कुछ भी बक देता है, उसी तरह सत्य के प्रेमी भी संसार के कल्याण के लिए कुछ भी बोल देते हैं, कुछ भी लिख देते हैं, लेकिन उनके मन में किसी के प्रति भी कोई जहर नहीं होता, वे निष्पाप होते हैं। सदैव ध्यान रहें- मीठे शब्द कभी भी जाग्रति नहीं लाते, वे केवल काम की बातों को ढक सकते हैं। गौतम बुद्ध से कई बार लोग कहा करते थे- आप इतना कठोर बातें बोल देते हैं, क्या आपको लोगों की फिक्र नहीं? गौतम बुद्ध ने कहा, कठोर बातें बोलता हूँ- क्योंकि मैं तुम्हारी इस हालत को नहीं देख सकता, मैं तुम्हारा कल्याण मित्र हूँ। कठोर बातें बोल देता हूँ, ताकि बातें चुभें और तुम कुछ सोचने को और कुछ करने को मजबूर होओ,बुद्ध पुरुषों की, महापुरुषों की तो गालियाँ भी पुष्प बन जाती हैं, श्री रामकृष्ण परमहंस की गालियाँ सुनकर विवेकानंद जैसे महान व्यक्तित्व खड़े हो जातें हैं, और फिर उन्हें दुनिया एक दिन पूजती है। जो व्यक्ति बदलाव लाने के लिए, मनुष्यता को बनायें रखने के लिए जितना कटु हो सकता है, उसे हो जाना चाहिये, क्योंकि ऐसे ऊर्जावान व्यक्ति से बड़ा महात्मा पृथ्वी पर और कोई नहीं हो सकता। प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक कांट कहा करता था “इफ ट्रुथ शेल किल देम, लेट देम डाई” अगर सत्य किसी को मारता है, तो उसे मरने दो।

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