मुंबई, दिव्यराष्ट्र: ।पीएंडजी इंडिया का प्रमुख सीएसआर कार्यक्रम ‘पीएंडजी शिक्षा’ इस वर्ष एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर है और एक प्रमुख उपलब्धि का उत्सव मना रहा है – शिक्षा के माध्यम से बच्चो के जीवन में बदलाव के 20 वर्ष।
पिछले दो दशकों में, यह कार्यक्रम देश भर में वंचित समुदायों में शिक्षा की पहुंच और शिक्षा में सुधार लाकर 50 लाख से अधिक बच्चों के जीवन पर सकारात्मक रुप से प्रभावित कर रहा हैं।
इस यात्रा को यादगार बनाने के लिए, पीएंडजी ने “20 टेल्स ऑफ ट्रायम्फ” नामक एक विशेष कॉफी टेबल बुक का अनावरण किया है, जिसमें परिवर्तन और संभावनाओं की प्रेरक कहानियां शामिल हैं – यह इस बात की सशक्त याद दिलाती है कि कि जब हर बच्चे को उभरने का अवसर मिलता है, तो शिक्षा कैसे बदलाव ला सकती है।
लेखिका और पूर्व पत्रकार प्रियंका खन्ना द्वारा संचालित इस पैनल में शामिल और लेखिका सोहा अली खान, अभिनेत्री कल्कि कोचलिन, नैदानिक मनोवैज्ञानिक व मनोचिकित्सक डॉ. वरखा चुलानी और पीएंडजी इंडिया के वाइस प्रेसिडेंट – ब्रांड ऑपरेशन और ग्रूमिंग के प्रमुख अभिषेक देसाई।
इस पहल के बारे में बात करते हुए, पीएंडजी इंडिया के वाइस प्रेसिडेंट – ब्रांड ऑपरेशन और कैटेगरी लीडर – ग्रूमिंग, अभिषेक देसाई ने कहा, “हम गर्व से पीएंडजी शिक्षा के 20 साल पूरे होने का उत्सव मना रहे हैं – यह एक ऐसी यात्रा रही है जो यह सुनिश्चित करने के लिए समर्पित है कि हर बच्चे को ऐसी शिक्षा मिले जो उसे ऊपर उठाए, न कि सीमित करे।पिछले दो दशकों में, पीएंडजी शिक्षा ने लर्निंग आउटकम्स को सुधारने की ओर अपना ध्यान विकसित और केंद्रित किया हैं
इस अवसर पर अभिनेत्री और लेखिका सोहा अली खान ने कहा, “मैं कई वर्षों से पीएंडजी शिक्षा से जुड़ी रही हूं और यह देखकर बेहद गर्व होता है कि पिछले 20 वर्षों में इसने एजुकेशन पर इतना गहरा प्रभाव किया है।पीएंडजी शिक्षा शुरू से ही जटिल लेकिन महत्वपूर्ण मुद्दों जैसे लर्निंग गैप्स पर काम कर रहा है। 50 लाख बच्चों पर प्रभाव डालना कोई छोटी बात नहीं है और मैं इस यात्रा का हिस्सा बनकर गौरवान्वित महसूस करती हूं जहाँ पीएंडजी ने शिक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखी है।
अभिनेत्री कल्कि कोचलिन ने कहा, “सालों में मैंने देखा है कि पीएंडजी शिक्षा ने कैसे स्कूलों के निर्माण और शिक्षण माहौल को बेहतर बनाने से आगे बढ़कर अब एक अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे — लर्निंग गैप्स की विभिन्न अभिव्यक्तियों — पर ध्यान केंद्रित किया है, जिसमें सबसे नुकसानदायक हैं हानिकारक लेबल्स। ये लेबल्स — ‘कमज़ोर’, ‘धीमा’, ‘अयोग्य’ — बच्चों के आत्म-विश्वास को धीरे-धीरे खत्म कर देते हैं। मैं पीएंडजी शिक्षा की इस चुनौती को सीधे संबोधित करने की प्रतिबद्धता से प्रेरित हूं और इस यात्रा का हिस्सा बनकर गर्व महसूस कर रही हूं।
नैदानिक मनोवैज्ञानिक व मनोचिकित्सक डॉ. वरखा चुलानी ने कहा, “एक मनोवैज्ञानिक के रूप में मैं देखती हूं कि बच्चे अक्सर इसलिए संघर्ष नहीं करते क्योंकि वे अक्षम हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि उन्होंने वे सीमितकारी लेबल्स आत्मसात कर लिए हैं जो आत्म-संदेह और भय पैदा करते हैं। फिल्म इसे बहुत सुंदर तरीके से दर्शाती है — एक बच्चा खुद को ‘कच्चा नींबू’ मान लेता है, जो भावना सिर्फ कक्षा तक सीमित नहीं रहती, बल्कि खेल के मैदान तक जाती है। फिर भी यह अद्भुत है कि सही हस्तक्षेप से एक बच्चे के आत्मविश्वास में कितना बड़ा बदलाव आ सकता है।