– ++शहर के सी के बिरला हॉस्पिटल में हुई जटिल रिवीजन हिप सर्जरी
– ++पूर्व में 2 बार फेल हो गई थी हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी
जयपुर दिव्यराष्ट्र/: फेल होती सर्जरियों और बढ़ते इंफेक्शन के बीच 60 वर्षीय मरीज के लिए चलना-फिरना मुश्किल हो गया था। हिप फ्रैक्चर के बाद लगातार दो सर्जरियां असफल रहीं, जिससे उनकी हालत और बिगड़ती चली गई। जब मरीज ने सी के बिरला हॉस्पिटल के वरिष्ठ जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ. ललित मोदी से संपर्क किया, तब तक स्थिति काफी गंभीर हो चुकी थी। लेकिन डॉ. मोदी ने अपने अनुभव और दक्षता से जटिल परिस्थितियों में भी चौथी सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया और मरीज को दोबारा चलने-फिरने का आत्मविश्वास लौटाया।
डॉ. ललित मोदी ने बताया कि, “जब मरीज मेरे पास पहुंचे, तब तक इंफेक्शन काफी फैल चुका था और पहले की दो असफल सर्जरियों से हिप के टिश्यूज को भी काफी नुकसान पहुंचा था। ऐसे में हमने दो चरण में सर्जरी करने का निर्णय लिया।”
पहले चरण में इंफेक्शन पर नियंत्रण* –
पहले चरण में इंफेक्शन को नियंत्रित करने के लिए कृत्रिम जोड़ को निकालकर बोन सीमेंट का आर्टिफिशियल बॉल इंप्लांट किया गया, जिसमें एंटीबायोटिक्स भी मिलाए गए। इससे बैक्टीरिया को खत्म करने में मदद मिली और मरीज बिना सहारे चलने-फिरने लगे। हालांकि, इस प्रक्रिया के बाद भी दूसरी सर्जरी जरूरी थी, लेकिन मरीज के निजी कारणों से यह सर्जरी 6 महीने तक टल गई।
हृदय संबंधी दिक्कतों के कारण आगे बढ़ा इलाज*
दूसरी सर्जरी से पहले जांच में पता चला कि मरीज का हृदय ऑपरेशन के लिए पूरी तरह स्वस्थ नहीं था और ब्लड सप्लाई में कमी के कारण सर्जरी में जान का खतरा था। ऐसे में पहले एंजियोप्लास्टी की गई और उसके बाद 6 महीने तक किसी भी सर्जरी से बचना जरूरी था। इस कारण जो हिप सर्जरी 3 महीने में होनी थी, वह करीब सवा साल से ज्यादा समय तक टल गई।
चुनौतियों के बीच चौथी सर्जरी में मिली सफलता*
इतने लंबे अंतराल के बाद जब चौथी सर्जरी का समय आया, तो बोन सीमेंट इंप्लांट के कारण आसपास के टिश्यू काफी सख्त हो चुके थे। डॉ. ललित मोदी ने बताया कि, “यह सर्जरी काफी चुनौतीपूर्ण थी, क्योंकि इसमें मांसपेशियों और नसों को बिना नुकसान पहुंचाए हड्डी को दोबारा बनाना था। एंजियोप्लास्टी होने के कारण सर्जरी में रक्तस्राव कम से कम रखने की चुनौती भी थी। इन सभी बातों का ध्यान रखते हुए सर्जरी को पूरी सावधानी और तकनीकी दक्षता के साथ सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया।”
सर्जरी के 3 दिन बाद मिली छुट्टी, 15 दिन में चलना शुरू*–
सर्जरी के महज 3 दिन बाद ही मरीज को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई और 15 दिन के भीतर उन्होंने चलना-फिरना शुरू कर दिया। डॉ. मोदी के अनुसार, “इतनी जटिल परिस्थितियों में यह सर्जरी करना एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन सटीक योजना और आधुनिक तकनीक की बदौलत इसे सफल बनाया जा सका। मरीज अब पूरी तरह स्वस्थ हैं और सामान्य जीवन जी रहे हैं।” इस सर्जरी में सी के बिरला हॉस्पिटल्स की एनेस्थीसिया टीम एवं डॉ हितेश जोशी का महत्वपूर्ण योगदान रहा।