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‘टाटा सन्स – द न्यूयॉर्क अकादमी ऑफ़ साइंसेस’ के विजेता घोषित

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भारत के 3 उभरते वैज्ञानिकों को किया सम्मानित

मुंबई, दिव्यराष्ट्र): टाटा सन्स और द न्यूयॉर्क अकादमी ऑफ़ साइंसेस ने टाटा ट्रांसफॉर्मेशन प्राइज के विजेताओं के दूसरे दल की घोषणा की। यह पुरस्कार भारत के दूरदर्शी वैज्ञानिकों को सम्मानित करता है, जो खाद्य सुरक्षा, स्थिरता और स्वास्थ्य सेवा में भारत की सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने वाली सफल तकनीकें विकसित कर रहे हैं। पुरस्कार का लक्ष्य प्रभावशाली नवाचार को बढ़ावा देना और लक्षणीय प्रभाव की क्षमता रखने वाले शोध के कार्यान्वयन को बढ़ाना है। अग्रणी विशेषज्ञों की एक अंतरराष्ट्रीय जूरी द्वारा 18 भारतीय राज्यों से 169 एंट्रीज़ में से तीन वैज्ञानिकों का चयन किया। दिसंबर 2024 में मुंबई में एक समारोह में हर विजेता को 2 करोड़ रुपयों से सम्मानित किया जाएगा। जूरी में एपल, आईबीएम रिसर्च, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट बैंगलोर सहित विभिन्न उद्योगों, सरकार और शैक्षणिक संस्थानों के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक, क्लिनिशियन, टेक्नोलॉजिस्ट और इंजीनियर शामिल थे।
निकोलस बी डर्क्स, प्रेसिडेंट-सीईओ, द न्यूयॉर्क अकादमी ऑफ़ साइंसेस ने कहा,”टाटा ट्रांसफॉर्मेशन प्राइज के विजेताओं के दूसरे दल का अभिनन्दन! कुपोषण और मधुमेह जैसी भारत की समस्याओं को संबोधित करने से लेकर, सबसे वंचित आबादी में मृत्युदर को कम करने वाले आरएसवी टीके तक, हरित, लागत प्रभावी बैटरी प्रौद्योगिकियों के ज़रिए भारत की ऊर्जा भंडारण क्षमता में सुधार करने तक, यह वैज्ञानिक भारतीय समाज की उन्नति के लिए इन नवाचारों का उपयोग कर रहे हैं। इस विजनरी पुरस्कार को स्पॉन्सर करने के लिए टाटा के और हमारी स्वतंत्र ज्यूरी ने अपना समय और निपुणताओं का योगदान दिया उसके लिए उनके हम आभारी हैं।”

2024 टाटा ट्रांसफॉर्मेशन प्राइज के विजेता हैं:अमर्त्य मुखोपाध्याय, पीएचडी, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे (सस्टेनेबिलिटी): स्थायी ऊर्जा समाधानों की तत्काल वैश्विक आवश्यकता के साथ, किफायती, पर्यावरण-अनुकूल बैटरियों का विकास महत्वपूर्ण है। भारत में, जहां लिथियम-आयन (ली-आयन) बैटरियों के लिए लिथियम और कोबाल्ट जैसी प्रमुख सामग्री दुर्लभ हैं और उन्हें विदेशी स्रोतों की आवश्यकता होती है, सोडियम-आयन (एनए-आयन) बैटरियां एक आशाजनक विकल्प प्रदान करती हैं। अमर्त्य मुखोपाध्याय, पीएचडी, सामग्री विज्ञान में हाल ही में हुई सफलताओं के माध्यम से एनए-आयन बैटरी प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं। उनकी बैटरी प्रोटोटाइप एलआई-आयन बैटरियों की तुलना में लगभग 30% सस्ती है, व्यापक तापमान सीमा में संचालित होती है, और हवा और पानी में स्थिर सोडियम-संक्रमण मेटल ऑक्साइड कैथोड और मिश्र धातु-आधारित एनोड बनाकर स्टोर करने के लिए सुरक्षित है। प्रो. मुखोपाध्याय का दृष्टिकोण बैटरी इलेक्ट्रोड के “जलीय प्रोसेसिंग” का भी लाभ उठाता है, जो उत्पादन लागत और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए जहरीले सॉल्वैंट्स को पानी से बदल देता है।

राघवन वरदराजन, पीएचडी, भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर (स्वास्थ्य सेवा):- रेस्पिरेटरी सिन्सिटियल वायरस (आरएसवी) हर साल 30 मिलियन से ज़्यादा लोगों में गंभीर श्वसन संबंधी बीमारी पैदा करता है। शिशु, छोटे बच्चें और बुजुर्ग इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं। रेस्पिरेटरी सिन्सिटियल वायरस से होने वाली 97% से ज़्यादा मौतें भारत समेत दूसरे विकासशील देशों में होती हैं। नए आरएसवी टीकें उपलब्ध हैं लेकिन उनकी लागत काफी ज़्यादा है, सबसे ज़्यादा जोखिम वाली आबादी के लिए इन्हें ले पाना आसान नहीं है। पीएचडी कर चुके राघवन वरदराजन का लक्ष्य है एक किफ़ायती आरएसवी टीका विकसित करना, जो इन चुनौतियों का समाधान करें। प्रोटीन संरचना और वैक्सीन डिज़ाइन में अपनी प्रयोगशाला की व्यापक विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए, डॉ. वरदराजन एक ऐसा टीका विकसित कर रहे है, जो दशकों से आरएसवी वैक्सीन के विकास में बाधा डालने वाली चुनौतियों को पार कर जाएगा और आरएसवी संक्रमण के खिलाफ़ व्यापक और लंबे समय तक चलने वाली सुरक्षा प्रदान करेगा। इसके अलावा, प्रोटीन उत्पादन में अत्याधुनिक तरीकों को अपनाकर, डॉ. वरदराजन की टीम लागत को काफी कम करने के लिए वैक्सीन निर्माण प्रक्रिया को अनुकूलित कर रही है। इससे प्रत्येक खुराक की कीमत संभवतः 95% तक कम हो जाएगी।

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