अकोला, दिव्यराष्ट्र/ अकोला नगर में गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वर महाराज का संघ सहित प्रवेश हुआ। प्रवेश के अवसर पर सकल श्री संघ अकोला द्वारा आचार्यश्री का सामैया किया गया। आचार्यश्री के साथ गणि मयंकप्रभसागर, मुनि विरक्तप्रभसागर तथा साध्वी कनकप्रभाश्रीजी, संवरबोधिश्रीजी समत्वबोधिश्रीजी शुद्धबोधिश्रीजी सुबोधिश्रीजी शौर्यबोधिश्रीजी आदि साध्वी मंडल आये हैं।
आचार्यश्री ने अपने प्रवचन में कहा- मानव जीवन को सफल बनाना है, तो अपना दृष्टिकोण व आचरण बदलना जरूरी है। अपने चित्त को सद्विचारों से सदा सदा भरते रहना है। दुर्विचार मन को अशांत तथा सद्भाव शांति देते हैं। जीवन को परिणामलक्षी बनाएँ। प्रतिक्रिया पर नियंत्रण करें और आत्मा को नुकसान से बचाएँ।
उन्होंने खरगोश और कछुए का उदाहरण देते हुए कहा- एक दूसरे का सहयोग करना ही, अपने जीवन को सार्थक करना है। कोई खरगोश की तरह तेज दौडता है तो कोई कछुए की भांति धीरे चल पाता है। लेकिन जमीन पर खरगोश सफल है तो पानी में वह हार जाता है। ठीक इसी प्रकार जमीन पर कछुआ धीरे चल पाता है पर पानी में वह आसानी से चल जाता है। ठीक इसी प्रकार संसार में सभी लोग एक समान नहीं होते। किसी में कोई गुण विशेष होता है तो किसी में कोई दूसरा गुण! एक दूसरे के सहयोग से जीवन में आनंद की अनुभूति होती है।
उन्होंने कहा- आराधना जप-तप से अन्तरात्म में समता और अनासक्ति का विकास होता है। प्रतिक्रिया में अभिव्यक्ति में इसका प्रभाव दिखाई देता है। व्यवहार, भाषा और कर्म में प्रतिक्रिया का रूप दिखाई देता है। व्यवहार और भाषा में उत्तेजना और कठोरता का भाव मन की अशांन्ति और क्रोध को प्रकट करता है तो स्नेहपूर्ण व्यवहार वाणी की मृदुता और भाषा की मधुरता, मन की प्रसन्नता प्रकट करता है। प्रतिक्रिया परिस्थितियों के अनुसार बदलती है। सावधानीपूर्वक दी गई प्रतिक्रिया शांति प्रदान करती है। मन में उठ रहे विचार हर क्षण बदलते रहते है। अशुभ विचारों से अशांति और शुभ विचारों से आत्मा में शांति मिलती है। अलग-अलग स्थितियों में एक ही घटना अलग-अलग परिणाम देती है। जीवन को परिणाम लक्षी बनाऐं। प्रतिक्रिया के परिणामों पर भी प्रतिक्रिया देने से पूर्व विचार करे, सावधानी रखें। व्यवहारिक जीवन में बुराई अच्छाई पर भारी होती है इस मानसिकता में बदलाव लाऐं। अच्छाई की प्रशंसा सार्वजनिक रूप से करें। गलत काम की बुराई भी सबके सामने करें। निन्दा और बुराई पर नियंत्रण रखें।
आचार्यश्री ने कहा कि आदर्श जीवन के लिए अच्छा व्यवहार और संतुलित भाषा जरूरी है। गलती पर डाँटना जरूरी है किन्तु डांटना, सुधार भाव से होना चाहिए। अच्छे काम पर यश लेने वाले जुट जाते है, किन्तु काम बिगड़ने पर जिम्मेदारी लेने आगे आने से सभी बचते है। मेरा-तेरा का भाव लोक व्यवहार है। गलती पर दूसरों को दोष देने की अपेक्षा कर्म को दोष देना चाहिए। क्रोध अपने कर्म पर किया जाना चाहिए। दुर्विचार, गलत काम और कटुवाणी के कर्मबंधनों पर नियंत्रण स्वयं पर नियंत्रण से संभव है। अपनी सोच को सकारात्मक रखें। क्रोध में व्यक्ति स्वयं का दुश्मन बन जाता है। गुस्सा स्वीकारने वाला सामने हो तो क्रोध और बढ़ जाता है। क्रोध को हम स्वयं ही नियंत्रित कर सकते है। परिस्थितियों पर हमारा नियंत्रण नहीं है किन्तु प्रतिक्रिया पर नियंत्रण हमारे हाथ में है। प्रतिक्रिया परिस्थिति के अनुसार नहीं आत्मानुकूल होनी चाहिए। अपनी मानसिकता बदलें, विचारों में परिवर्तन लाऐं और सावधानीपूर्वक प्रतिक्रिया सीमित शब्दों में दें।
उन्होने कहा- अकोला नगर में साध्वी सम्यग्दर्शनाश्रीजी सम्यक्प्रभाश्रीजी की प्रेरणा से चौदह राजलोक के आकार में भव्य जिन मंदिर बना है। इस मंदिर में नूतन प्रतिमाओं के साथ वाराणसी नगर से आई 500 वर्ष प्राचीन पार्श्वनाथ परमात्मा की प्रतिमा बिराजमान होगी। साथ ही दादावाडी में दादा गुरुदेव जिनकुशलसूरि के साथ चारों दादा गुरुदेव प्रतिष्ठित होंगे।
प्रारंभ में जिनकुशलसूरि महिला मंडल द्वारा स्वागत गीत प्रस्तुत किया। कुशलसूरि दादावाडी ट्रस्ट के अध्यक्ष रमेश गोलेच्छा ने बताया कि 26 जून को प्रातः वाराणसी नगर आदि का उद्घाटन होगा। साथ ही परमात्मा के जन्म कल्याणक का विधान व अभिषेक संपन्न होंगे।