(दिव्यराष्ट्र के लिए आयुष नंदन, शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय)
वर्तमान में हमारे समक्ष पर्यावरण से जुड़े मुख्य समस्या क्या-क्या हैं? हमें साँस लेने के लिए अच्छी वायु नहीं मिल रही है, पीने के लिए स्वच्छ पानी कि समस्या है, गर्मी के मौसम में अत्यधिक तापमान का बढ़ जाना तथा सर्दी के मौसम में तापमान अत्यधिक कम हो जाना, प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग, भूमि कि उर्वरा शक्ति का कम होना, किसानों के खेती करने के समय वर्षा का न होना, नदियों के जल दूषित होना इत्यादि हमारे सामने प्रमुख समस्याएँ बनी हैं। हम जानते हैं कि वायु हमारे जीवन के लिए कितने उपयोगी हैं शायद हम ऑक्सीजन के बिना कुछ सेकंड भी नहीं जी सकते ठीक उसी प्रकार पानी भी हमारे जीवन के लिए उतना ही उपयोगी है। हम आमतौर पर सुनते हैं कि अत्यधिक तापमान के बढ़ने व घटने के कारण अनेकानेक लोग अपनी जान गंवा देते हैं।
अत्यधिक तापमान बढ़ने के कारण पर्वतों पर जमे हुए बर्फ बहुत तेजी से पिघल रहें हैं जिससे समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है दुनिया भर में प्लास्टिक के अत्यधिक उपयोग के कारण प्रबंधित लैंडफिल से बड़े पैमाने पर प्रदूषण का कारण बन रहा है, नदी, घाटियों और जलमार्गों को अवरुद्ध कर रहा है, जिससे हमारे समुद्र, हवा और जमीन दूषित हो रही है, मानव स्वास्थ्य, वन्यजीव, पारिस्थितिकी तंत्र और प्राकृतिक पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। रासायनिक खादों के उपयोग होने के कारण भूमि में उर्वरा शक्ति कम हो गयी है। जलवायु परिवर्तन के कारण सही समय पर वर्षा का न होना भी कृषि आधारित क्षेत्रों के लिए मुख्य समस्या बनी हुई है। अत्यधिक कूड़ा और हानिकारक कचरों को नदी में डालने के कारण जल प्रदूषण का होना तथा जल में रहने वाले जीवों पर खतरा मंडरा रहा है।
राष्ट्रीय पुनर्निर्माण अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् का अंतिम लक्ष्य है। सामान्य जनों का आमतौर पर विद्यार्थी परिषद् को लेकर सामान्य अवधारणा यह रहता है कि परिषद् केवल छात्र राजनीति के रूप में सक्रिय रहता है परन्तु ऐसा नहीं है। राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के व्यापक सन्दर्भ में विद्यार्थियों को नियोजित करना विद्यार्थी परिषद् ने अपना प्रमुख कार्य माना है। शिक्षा एवं समाज के विभिन्न आयामों में विशिष्टता व रुचि रखने वाले प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं में उत्साह, आकर्षण व सहभागिता बढाने के उद्देश्य से विद्यार्थी परिषद् ने विभिन्न आयामों कि योजना तथा रचना को उपयोगी माना है। इन विभिन्न आयामों में से एक आयाम है विकासार्थ विद्यार्थी (Student for Development- SFD)। इसकी शुरुआत रक्तदान, विवेकानंद जयंती, विभिन्न प्रतियोगिता व अनेक सकारात्मक कार्यक्रमों से हुई। विकासार्थ विद्यार्थी अभाविप का ऐसा प्रयास है, जो छात्रो को आर्थिक एवं भौतिक विकास के साथ-साथ मानवीय विकास से जुड़े उन मुद्दों कि तरफ ध्यान आकृष्ट कराता है, जिससे जनसामान्य प्रभावित होता है। विकासार्थ विद्यार्थी, विकास के सही मायने क्या हों, जहाँ प्रकृति व मानव का सह-अस्तित्व सुरक्षित रहे, इस दिशा में सोचने को प्रेरित करता है।
देश कि प्रगति का भारतीय माँडल क्या हो? देश कैसे आगे और किस दिशा में आगे बढे कि वह सतत विकास के साथ साथ पर्यावरण संरक्षण पर भी बल दे सके, इस उद्देश्य के साथ विकासार्थ विद्यार्थी की स्थापना की गई विकासार्थ विद्यार्थी की अवधारणा जल, जंगल, जमीन, जानवर व जन के उद्देश्य पर केन्द्रित है जन का विकास मानव समृद्धि एवं जीवन मूल्य को साथ लेकर करना यही विकासार्थ विद्यार्थी का ध्येय है विकास कि भारतीय अवधारणा में विकास का तात्पर्य सामाजिक एवं आर्थिक दोनों पहलू को विकसित करना, मानव विकास सूचकांक अर्थात् गुणवत्ता के साथ-साथ उच्च मानक स्तर विकसित करना, हर हाथ को काम देना, जीवन कि मूलभूत आवश्यकताओं को पूर्ण करना, उत्तरोत्तर प्रगति के साथ स्थाई विकास करना, न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति होने से है इसी भारतीय अवधारणा को आधार मानते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने अपना रचनात्मक कार्य प्रारंभ किया।
आज सरकार जो आत्मनिर्भरता कि बात करती है यह विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ताओं द्वारा 90 के दशक से ही समाज में एक दिशा देने का काम किया गया है। 1988-89 में मुंबई के आई.आई.टी. में जी.आर.ए. (Group for Rural Activity) के नाम से कार्य प्रारंभ हुआ। डॉ. शिरीष केदारे जी मुंबई SFD के राष्ट्रीय संयोजक रहे। इन्होंने ग्रामीण भारत में Renewal Energy के कौन-कौन से नए श्रोत हो सकते हैं, इस पर कार्य किया। SFD के संस्थापक सदस्य में से एक प्रसाद देवधर जी के द्वारा गोबर गैस को लेकर Bio-Energy से एक गाँव को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास सफलतापूर्वक किया गया। अयोध्या में जब राम मंदिर बनाने का निर्णय नहीं आया था उस समय ही विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ताओं द्वारा ‘प्लास्टिक मुक्त अयोध्या’ अभियान के द्वारा अयोध्या को स्वच्छ करने का कार्य किया गया था। विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ताओं द्वारा महाराष्ट्र के किसानों के लिए ‘जल साक्षरता यात्रा’ निकला गया। आज हमलोग जिस पिने के पानी कि समस्या से जूझ रहें हैं इसके लिए पानी के संरक्षण हेतु विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ताओं द्वारा अवध प्रान्त में ‘बूंद यात्रा’ के माध्यम से पानी के महत्त्व को समाज में फ़ैलाने का कार्य किया गया। 4 से 26 फरवरी 2013 तक विकासार्थ विद्यार्थी (SFD) द्वारा संचालित अभियान ‘माँ नर्मदा अध्ययन यात्रा’ विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
इस अध्ययन यात्रा में विविध विषयों के 32 शोध छात्रों, विशेषज्ञों व विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ताओं के एक दल ने SFD के तत्कालीन राष्ट्रीय संयोजक सचिन दवे जी के नेतृत्व में नर्मदा नदी में बढ़ रहे प्रदूषण का अध्ययन करने हेतु मध्य प्रदेश के अमरकंटक से गुजरात के भरुच तक 2558 किलोमीटर कि यात्रा की और 58 घाटों के सैंपल एकत्र किये। सभी सैंपल मध्य प्रदेश प्रदूषण बोर्ड एवं मध्य प्रदेश विज्ञान व प्रौद्योगिकी द्वारा परीक्षण किये गए। सैंपल में नर्मदा नदी के मात्र सात घाटों के जल ही ‘ए’ श्रेणी के पाए गए। इस यात्रा के रिपोर्ट का प्रकाशन राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद् कि बैठक 30 मई 2013 को नागपुर में किया गया।
तत्पश्चात अध्ययन के निष्कर्षों को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल भोपाल में विद्यार्थी परिषद् कि ओर से एक याचिका संख्या 139/2013 दायर की गयी, जिसके उपरांत राज्य सरकार ने ‘नर्मदा एक्शन प्लान’ बनाया और 11 सौ करोड़ के बजट का प्रावधान किया। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् सदैव वातावरण कि शुद्धता को ध्यान में रखते हुए अपने छोटे से बड़े कार्यकर्मों व वैठकों को संपन्न करती है। अभाविप का 2016 का इंदौर अधिवेशन ‘Waste Free’ अधिवेशन हुआ वहीं 2018 में कर्णावती अधिवेशन ‘0 Food waste’ हुआ। हाल में ही सूरत में हुए NEC बैठक ‘Paper Less’ हुआ जो कि पूर्णतः प्लास्टिक फ्री था। इस महनीय कार्य हेतु सूरत महानगरपालिका द्वारा Sustainable Event का सर्टिफिकेट भी दिया गया।