वर्धमान से महावीर स्वामी की जीवन यात्रा का सफर
नैतिकता,अहिंसा,सत्य संयम और दया का भाव सीखाती है जिसे दुनिया आज भी करती है नमन।
(डॉ. सीमा दाधीच)
भारत भूमि कर्म और धर्म प्रधान रही है कोई भी इंसान बिना कठोर तप के बिना श्रेष्ठ नहीं यही श्रेष्ठता की कसौटी है।
महावीर स्वामी जैन धर्म के 24 वें और अंतिम तीर्थंकर थे, उनका जन्म ईसा पूर्व 599 वर्ष माना जाता है, उनके पिता राजा सिद्धार्थ और माता रानी त्रिशला थीं और प्रारम्भ में उनका नाम वर्द्धमान था। उनका जन्म राज परिवार में हुआ एक राजा के पुत्र ने विरासत की गद्दी का मोह त्याग कर अपना वैराग्य जीवन यापन किया ये अंतर्मन की आवाज उनके जीवन यात्रा को ही बदल देती है। महावीर के जन्म के समय यह भी माना जाता है कि उस दिन देवराज इंद्र ने अभिषेक किया, जो सुमेरु पर्वत का अनुष्ठानिक अभिषेक माना गया जब देव वर्ष करे तब कोई विरले ही आते है मानव रूप में वे जैन परिवार में जन्मे। उनके जन्म दिन को जैन धर्म का मुख्य त्योहार के रूप में मनाया जाता है। वे जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर हैं। जैन धर्म में आस्था रखने वाले लोगों द्वारा महावीर जयंती का पर्व काफी हर्ष-उल्लास के साथ दुनियाभर में मनाया जाता है।महावीर स्वामी का चरित्र त्याग, तपस्या, अहिंसा, सत्य और संयम से ओतप्रोत था वह एक महान आध्यात्मिक व्यक्तित्व के धनी थे उन्होंने संसार को प्रेम करुणा दया और सदाचार का संदेश दिया। इक्ष्वाकु वंश में राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला से महावीर का जन्म हुआ था। किंवदंती है कि गर्भावस्था की अवधि के दौरान महावीर की मां को कई शुभ सपने आते थे। जैन धर्म में, गर्भावस्था के दौरान इस तरह के सपने एक महान आत्मा के आगमन का संकेत देते हैं। राजा सिद्धार्थ ने रानी के देखे गए कुल सोलह सपनों की व्याख्या की थी।
महावीर एक राजकुमार थे और उनके माता-पिता ने उन्हें वर्धमान नाम दिया था। राजा के पुत्र होने के कारण, उनके पास कई सांसारिक सुख, आराम और सेवाएँ थीं। लेकिन तीस साल की उम्र में, उन्होंने अपने परिवार और राजघराने को छोड़ दिया, अपनी सांसारिक संपत्ति त्याग दी और दर्द, दुख और पीड़ा को खत्म करने के उपाय की तलाश में एक भिक्षु बन गए। जिज्ञासा जो सब कुछ त्याग कर उसे प्राप्त कर कर रहे यही वर्द्धमान ने किया ।महावीर स्वामी ने घर को “अज्ञान और मोह का घर” कहा, और उन्होंने तपस्वी जीवन जीने के लिए सत्य की खोज में अपना घर, परिवार और संपत्ति त्याग दी। महावीर ने अपनी इच्छाओं, भावनाओं और आसक्तियों पर विजय पाने के लिए अगले साढ़े बारह साल गहन मौन और ध्यान में बिताए यह कठिन साधना है।उन्हें वर्धमान, जैन, जितेंद्रय केवलिन और अरिहंत के नाम से भी जाना जाता है। महावीर ने जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत की खोज की और उन्हें अगले तीस साल नंगे पैर भारत भर में घूमकर लोगों को शाश्वत सत्य का उपदेश दिया जिसे उन्होंने महसूस किया था। उनकी शिक्षा का अंतिम उद्देश्य था कि कैसे कोई व्यक्ति जन्म, जीवन, दर्द, दुख और मृत्यु के चक्र से पूरी तरह मुक्ति पा सकता है और अपने आप को स्थायी आनंदमय स्थिति में ला सकता है। इसे मुक्ति, निर्वाण, पूर्ण स्वतंत्रता या मोक्ष के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने तपस्वी जीवन जीने का मार्ग चुना, जो कि सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने का एक साधन था। कठोर तप के पश्चात ज्ञान की प्राप्ति, उन्हें ऋजुपालिका नदी के तट पर एक साल्वा वृक्ष के नीचे हुई थी।
बताए, जो है– अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) ,ब्रह्मचर्य।
आज की युवा पीढ़ी को महावीर स्वामी से अहिंसा, सत्य, त्याग, संयम और दूसरों के प्रति दया जैसे मूल्यों को सीखना चाहिए, जो उन्हें चक्काचौंध भरी दुनिया में शांति और सुकून दिला सकते हैं। महावीर स्वामी ने जैन धर्म के महत्वपूर्ण सिद्धांत उनमें मुख्य ये बताए जो आज भी हर धर्म के लिए आवश्यक है।
1.परस्परोपग्रहो जीवानाम् : साथ निभाएँ
2.सबको क्षमा- सबसे क्षमा
3.अपरिग्रह: दूसरों की ज़रूरतों का सम्मान
4.अनेकांत: दूसरों के विचारों का सम्मान
5.अहिंसा: जिओ और जीने दो
6.शाकाहार और स्वस्थ जीवन शैली
7.अपनी ताक़त पहचानें और आगे बढ़ें
महावीर स्वामी ने 72 वर्ष की आयु (527 ई.पू.) में निर्वाण प्राप्त किया और उनकी शुद्ध आत्मा ने अपना शरीर त्याग दिया तथा पूर्ण मुक्ति प्राप्त की। वे सिद्ध, शुद्ध चेतना, मुक्त आत्मा बन गए, जो हमेशा पूर्ण आनंद की स्थिति में रहते थे। उनके निर्वाण की रात को, लोगों ने उनके सम्मान में प्रकाशोत्सव (दीपावली) मनाया। यह हिंदू और जैन कैलेंडर वर्ष का अंतिम दिन है जिसे दीपावली दिवस के रूप में जाना जाता है।
वर्तमान समय में महावीर स्वामी से त्याग की भावना समझना चाहिए त्यागने से अर्थ हमें अपने जीवन में बुराइयां द्वेष घृणा इनका परित्याग करना चाहिए इससे जीवन सरल और सुलभ बनता है यही स्वामी जी ने संदेश दिया। जैन धर्म में शाकाहारी भोजन को महत्व दिया जाता है इससे हमारे शरीर में विकार की उत्पत्ति नहीं होती है। यह संदेश भी हमें स्वामी जी ने दिया कि जीवन में उनके पास सब कुछ था लेकिन उन्होंने अपने अंतरात्मा से शुद्धिकरण को समझा यही समझ आज के युग में सरकार को होना चाहिए आज हमारे देश में भाई भतीजावाद और पद लोलुपता की जो कुरीतियों का प्रारंभ हुआ जिससे जनता में द्वेष,द्वंद्व और नफरत को खत्म किया जा सकता है। जीवों की रक्षा करना और अहिंसा को समझ कर मानव सरल जीवन जी कर जन्म का उद्धार कर सकता है।