Home न्यूज़ आचार्य लोकेश के सान्निध्य में संवत्सरी महापर्व पर दुबई में विशेष व्याख्यान

आचार्य लोकेश के सान्निध्य में संवत्सरी महापर्व पर दुबई में विशेष व्याख्यान

86 views
0
Google search engine

संवत्सरी विश्व मैत्री का महान पर्व, क्षमा से बड़ा कोई धर्म नहीं हैं, – आचार्य लोकेश

नई दिल्ली/ दुबई, दिव्यराष्ट्र/अहिंसा विश्व भारती एवं विश्व शांति केंद्र के संस्थापक जैनाचार्य डॉ लोकेश के सान्निध्य में जैन धर्म के सर्वाधिक महत्वपूर्ण संवत्सरी महापर्व के आयोजन के अवसर पर दुबई जैन सेंटर मे हजारों श्रद्धालु, विशेषकर युवाओं ने भाग लिया| आचार्या लोकेश की व्याख्यानमाला के माध्यम से भगवान महावीर की वाणी तथा संवत्सरी महापर्व के महत्व का उपस्थित जनसमूह ने लाभ उठाया |
विश्व शांति दूत आचार्य लोकेश ने ‘समवत्सरी महापर्व’ एवं ‘भगवान महावीर का जीवन दर्शन’ विषय पर श्रद्धालुओ को संबोधित करते हुए कहा कि जैन धर्म में संवत्सरी महापर्व का अत्यधिक विशिष्ट महत्व है। वर्ष भर में अपने द्वारा जान अनजाने हुई समस्त भूलों के लिए प्रायश्चित करना तथा दूसरों के प्रति हुए अशिष्ट व्यवहार के लिए अंत:कारण से अत्यंत सरल, ऋजु व पवित्र बनकर क्षमा माँगना व दूसरों को क्षमा प्रदान करना इस महान पर्व का हार्द है। भगवान महावीर ने कहा ‘क्षमा वीरों का आभूषण है’, महान व्यक्ति ही क्षमा ले व दे सकते हैं। उन्होने कहा कि वर्तमान वैश्विक परिपेक्ष में जिस प्रकार विभिन्न समुदायों ने आपसी मतभेदों के कारण हिंसा का मार्ग अपना लिया है, क्षमा के माध्यम से ही आपसी मतभेदों का निवारण संभव है |
विश्व शांति दूत आचार्य लोकेश ने अपने प्रवचन में कहा कि संवत्सरी पर्व मानव-मानव को जोड़ने व मानव हृदय को संशोधित करने का महान पर्व है, जिसे त्याग, प्रत्याख्यान, उपवास, पौषध सामयिक, स्वाध्याय और संयम से मनाया जाता है। वर्षभर में कभी समय नहीं निकाल पाने वाले लोग भी इस दिन जागृत हो जाते हैं। कभी उपवास नहीं करने वाले भी इस दिन धर्मानुष्ठान करते नज़र आते है।
आचार्य लोकेश ने कहा कि सोना तपकर निर्खाद बनता है इंसान तपकर भगवान बनता है। यह पर्व अज्ञानरूपी अंधकार से ज्ञानरूपी प्रकाश की ओर ले जाता है। तप, जप, ध्यान, स्वाध्याय के द्वारा क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष आदि आंतरिक शत्रुओं का नाश होगा तभी आत्मा अपने स्वरूप में अवस्थित होगी अतः यह आत्मा का आत्मा में निवास करने की प्रेरणा देता है।
आचार्यश्री ने अपने व्याख्यान में कहा कि संवत्सरी पर्व प्रतिक्रमण का प्रयोग है। पीछे मुड़कर स्वयं को देखने का ईमानदार प्रयत्न है। यह पर्व अहंकार और ममकार के विसर्जन करने का पर्व है। यह पर्व अहिंसा की आराधना का पर्व है। आज पूरे विश्व को सबसे ज्यादा जरूरत है अहिंसा की, मैत्री की। यह पर्व अहिंसा और मैत्री का पर्व है। अहिंसा और मैत्री द्वारा ही शांति मिल सकती है।
पर्युषण पर्व के सभी कार्यक्रमों के सफल आयोजन के लिए दुबई जैन संघ के प्रमुख पदाधिकारी श्री विपुल भाई कोठारी, शेखर भाई पटनी, चन्दू भाई, राजेश भाई सिरोहिया, करण भाई सहित सम्पूर्ण संघ का उत्साह व व्यवस्थाएँ देखने लायक़ है, अभूतपूर्व है।योगाचार्य कुन्दन जी ध्यान योग के प्रयोग करायें |

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here