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न्याय के पथ पर लौटती श्रद्धा: “माधुरी” की वापसी की आशा फिर जीवित

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नांदणी जैन मठ की सेवा में 35 वर्षों तक रही गजलक्ष्मी “माधुरी” के संदर्भ में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की निर्णायक बैठक, रिट याचिका व प्रकरण वापसी की घोषणा, राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करेगी पुनर्विचार याचिका

मुंबई/कोल्हापुर | दिव्यराष्ट्र*
कोल्हापुर जिले के ऐतिहासिक नांदणी दिगंबर जैन मठ की आराध्य गजलक्ष्मी “माधुरी”, जो विगत 35 वर्षों से संयम, सेवा और साधना की जीवंत प्रतीक रही है, को पेटा की याचिका के आधार पर बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेशानुसार जामनगर स्थित “वनतारा” भेजा गया। यह निर्णय मात्र एक पशु के विस्थापन तक सीमित नहीं था, बल्कि जैन समाज की गहराई से जुड़ी श्रद्धा, परंपरा और धार्मिक अस्मिता पर सीधा आघात था।

इस घटनाक्रम के पश्चात संपूर्ण महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि देशभर में समाज की भावनाएं आहत हुईं। यह प्रकरण सामाजिक, आध्यात्मिक और न्यायिक विमर्श का केंद्र बन गया। इसी पृष्ठभूमि में आज मुंबई मंत्रालय में एक उच्चस्तरीय बैठक आयोजित हुई, जिसमें मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस एवं उपमुख्यमंत्री अजितदादा पवार, वरिष्ठ अधिकारी, विभिन्न मठों के भट्टारकजी, महाराष्ट्र के प्रतिष्ठित राजनेता तथा समाज प्रतिनिधि उपस्थित रहे। बैठक में देवेंद्र ब्रह्मचारी की भी उपस्थिति रही।

बैठक में मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि राज्य शासन एवं नांदणी मठ की ओर से सुप्रीम कोर्ट में “माधुरी” की वापसी के लिए पुनर्विचार याचिका दायर की जाएगी। इसके साथ ही उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि इस प्रकरण के दौरान जिन श्रद्धालुओं व सेवकों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज किए गए थे, उन्हें राज्य सरकार द्वारा वापस लिया जाएगा।

इस निर्णय से माधुरी की पुनः नांदणी मठ में वापसी की आशा सजीव हो उठी है। यह केवल एक हथिनी के स्थानांतरण की बात नहीं, बल्कि धर्म, करुणा, संस्कृति और श्रद्धा के सम्मान की पुनर्स्थापना का प्रतीक है।

बैठक के उपरांत मीडिया से देवेंद्र ब्रह्मचारी ने कहा, “यह केवल एक पशु की वापसी का विषय नहीं है, बल्कि यह उस श्रद्धा, परंपरा और करुणा की पुनर्स्थापना का प्रश्न है, जो सदियों से हमारे मठों और साधना स्थलों से जुड़ी रही है। ‘माधुरी’ केवल एक हथिनी नहीं, वह मठ की आत्मा की भौतिक अभिव्यक्ति है। आज सरकार द्वारा रिट याचिका और प्रकरण वापसी की घोषणा से यह विश्वास पुनः जागृत हुआ है कि श्रद्धा और न्याय कभी पराजित नहीं होते।”

उन्होंने आगे कहा “हमारी मांग सिर्फ वापसी की नहीं, बल्कि उस सम्मान की थी, जो जीवों की सेवा और संरक्षण में समाहित है। यह निर्णय सामाजिक समरसता और धार्मिक गरिमा की ओर एक सकारात्मक संकेत है।”

यह संघर्ष केवल एक जीव के लिए नहीं, बल्कि धर्म, परंपरा और स्वाभिमान के संरक्षण का प्रतीक बन चुका है। और अब इसकी परिणति आशा और न्याय के प्रकाश में होती प्रतीत हो रही है।

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