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श्राद्ध यानी अपनो के प्रति श्रद्धा का दिवस

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(डॉ. सीमा दाधीच)

भारत आस्था और श्रद्धा का केन्द्र है आस्थावान बनाए रखने के लिए हमारे पूर्वजों ने हमे अनेक संस्कार प्रदान किए है आश्विन माह के प्रारंभ से ही पूर्वजों के स्मरण का कार्य शुरू हो जाता है। एक पखवाड़े तक चलने वाले इस कार्य को श्राद्ध पक्ष के नाम से जाना जाता है यानी हमारे वे लोग जो इस संसार मे नहीं हे उनके प्रति श्रद्धा प्रकट कर उन्हे याद करने का दिवस।इनमे सबसे बड़ी आस्था पूर्वजों के कल्याण और उनके मोक्ष को लेकर भी है। सनातन धर्म को मानने वालो के लिए 16 संस्कार में गर्भ में आने से और जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य इन संस्कारों से गुजरता है।देवकार्य से हमें हिंदू संस्कृति का पता चलता है ,मनुष्य ने जन्म से देवी देवता के बारे में पूर्वजों से सुना है हमने उन्हें देखा नही केवल महसूस करते है आस्था से और हम पूजा पाठ करने लगे वैसे ही हमारे घर पर किसी का भी देहांत होता है तो हम ब्राह्मण द्वारा और पारिवारिक सदस्यों द्वारा बताए गए कार्य को करते हैं और हमें हिंदू धर्म में 12 दिनों के समय गरुड़ पुराण में वर्णित पितृकार्य के लिए विशिष्ट कार्य बताए जाते है जो करते हैं। उसके बाद हमारे पूर्वजों को हम याद करे और अपने कुल के नए सदस्यों को भी याद रहे हम किस कुल के है इसलिए हम पितृ तर्पण या श्राद्ध करते हैं इससे हमारे कुल के पूर्वज की कृपा तो मिलती है साथ मैं एक विशेष बात का ध्यान रखा जाता है कि श्राद्ध में जिस व्यक्ति का श्राद्ध करना हो उसके नाम , गोत्र , पिता , पितामह , प्रपितामह के नाम , गोत्र का उच्चारण करके उनके निमित्त पिंडदान किया जाता है | यह कार्य केवल उनके कुल के सदस्य द्वारा किया जाता है,यदि नाम एवं गोत्र में या संकल्प बोलने में कहीं कोई त्रुटि हुई तो पितरों को श्राद्ध एवं पिंडदान का भाग नहीं मिल पाता हमारे सनातनी हिंदू धर्म में सबसे महत्पूर्ण है हम अपने कुल और अपनी जाति और धर्म की रक्षा करते हैं हमारे आने वाली पीढ़ी को संस्कारवान बनाने में अपने कुल के पूर्वज के बारे में बताने से उनके प्रति उनका सम्मान की भावना उत्पन्न होती है नई पीढ़ी जिस तरह पाश्चात्य संस्कृति को बढ़ावा दे रही है और अंतर्जातीय विवाह कर अपने कुल का पतन कर रही है इससे उनके घर में आने वाली वधू या उससे जुड़ने वाले वर को संस्कार और परिवार का ध्यान नहीं रहता अपने गोत्र और धर्म का ध्यान नहीं रहता वह अपने पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान नही कर सकते सनातनी धर्म से युवा पीढ़ी अपने पूर्वजों को जानती है,श्राद्ध पक्ष में सात्विक भोजन का प्रयोग होता है जो हमें जीवन में शुद्धता और स्वस्थ जीवन को जीने की बात याद दिलाती है कोरोना काल में भी हमने सात्विक आहार लिया इससे यह पता चलता है कि हमारे ऋषि मुनि और पूर्वज कंद मूल फल खाते थे और बीमारी को पास नही आने देते थे हमे पेड़ पौधे से भी शुद्ध हवा और वनस्पति से रोगों को दूर करने की औषधि मिलती है। देवकार्य हो चाहे पितृ तर्पण सभी कार्य घर पर रहकर करने का महत्त्व है अपने कुल के सदस्यों के साथ मिलकर अपने सुख और दुःख को बाटा जाता है यही सनातनी हिंदू धर्म के संस्कारो में शामिल हैं 16 संस्कार में गर्भ में आने और जन्म से लेकर जीवन छोड़ते वक्त को भी सनातनी त्योहार के जैसे मनाते हैं हमारे युवा जो संस्कारों को भूल गए और पाश्चात्य संस्कृति को अपना रहे हैं जिससे धीरे-धीरे संस्कृत का पतन हो रहा है जिसे समय रहते हुए हमें बच्चों को इस तरह श्राद्ध पक्ष के महत्व को समझना चाहिए और उन्हें इसे करने के लिए प्रेरित करना चाहिए तभी हम अपनी पूर्वजों को सच्चा पिंडदान कर सकते हैं हमने केवल पुस्तकों में पढ़ा है पिंडदान का महत्व कि व्यक्ति को श्राद्ध पक्ष में जो ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है वह व्यक्ति को मिलता है यह बातें केवल हमें पूर्वजों के प्रति विश्वास और श्रद्धा को और उन्हें याद करने के लिए बनाई गई है जिससे हमें अपने पूर्वजों का और अपने परिवार के सदस्यों का नाम गोत्र और उनसे प्राप्त संस्कारों का आभास कराती रहती है।

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