Home न्यूज़ जयपुर साहित्य उत्सव में शशि थरूर और फ्रांसेस्क मिराल्स की चर्चा

जयपुर साहित्य उत्सव में शशि थरूर और फ्रांसेस्क मिराल्स की चर्चा

196 views
0
Google search engine

जयपुर। दिव्यराष्ट्र/ जयपुर साहित्य उत्सव (चारबाग) में ‘पुरुषार्थ: द फोर वे पार्ट’ सत्र के दौरान लेखक शशि थरूर और फ्रांसेस्क मिराल्स ने पल्लवी अय्यर के साथ हिंदू धर्म, भक्ति और आधुनिक समय में प्राचीन ज्ञान की प्रासंगिकता पर चर्चा की।

शशि थरूर ने हिंदू धर्म में ईश्वर की अवधारणा पर बात करते हुए कहा कि प्राचीन काल में हिंदू धर्म में ईश्वर की अवधारणा बहुत सरल थी। उन्होंने कहा, “हिंदू धर्म में ईश्वर निर्गुण और निराकार है, जैसे कि मुस्लिम धर्म में होता है। वो हिन्दु धर्म नहींं है जो जय श्री राम बोले वो ही है, जो ना बोले, उसे पीट दे। लेकिन समय के साथ लोगों को पूजा के लिए एक रूप की आवश्यकता महसूस हुई। इसलिए सगुण ईश्वर की अवधारणा विकसित हुई।”अब हमें एक बड़े से आदमी जिसका चेहरा हाथी का है और वो चूहें पर बैठा है, उसमें भी भगवान दिखाई देते हैं। उन्होंने आगे कहा कि हिंदू धर्म में विविधता है और यह किसी एक रूप या तरीके को थोपता नहीं है।

थरूर ने स्वामी विवेकानंद का हवाला देते हुए कहा, “जिसे कोई शिव कहता है, कोई अल्लाह कहता है, तो कोई ईसा कहता है, सब एक ही हैं।” उन्होंने जोर देकर कहा कि हिंदू धर्म में किसी एक मार्ग को सर्वोत्तम बताने की कोई जगह नहीं है। जिसे शंकराचार्य ने भी बताया है। गीता में भी कर्म को प्रधान बताया है, कि कर्म करो फल कि इच्छा ना करो। महात्मा गांधी भी इसे ही मानते थे और मै भी। और एक अवधरणा सावरकर की भी थी।
शशि थारू ने कहा कि हिंदू धर्म सभी को अपने ने वाला होता है, लेकिन देश में इन दोनों एक मसाला रोहिंग्या का भी चल रहा है।

फ्रांसेस्क मिराल्स ने आधुनिक समय में प्राचीन ज्ञान की प्रासंगिकता पर बात करते हुए कहा कि आज के समय में लोग खुशी और आंतरिक शांति की तलाश में हैं। उन्होंने कहा कि प्राचीन ज्ञान को आधुनिक संदर्भ में समझाने वाली पुस्तकें लोगों को इस दिशा में मार्गदर्शन कर सकती हैं।

शशि थरूर ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पुस्तकें ज्ञान का स्रोत हैं, लेकिन उन्हें व्यवहार में लाना एक अलग बात है। उन्होंने गीता के दर्शन का हवाला देते हुए कहा कि व्यक्ति को बिना फल की इच्छा के अपना कर्म करना चाहिए।

थरूर ने यह भी कहा कि हिंदू समाज को जाति और वर्ग के आधार पर बांटा गया है, जो हिंदू धर्म के मूल सिद्धांतों के विपरीत है। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म हमेशा से बहुलवादी और समावेशी रहा है।

सत्र के अंत में थरूर ने कुंभ मेले का जिक्र करते हुए कहा कि यह हिंदू धर्म की विविधता और जीवंतता को दर्शाता है। उन्होंने कहा, “साधु-संतों को सोशल मीडिया पर देखना और उन्हें मोबाइल फोन का उपयोग करते हुए देखना भारत की बदलती तस्वीर को दिखाता है। यही भारत है।”

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here