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कुंभ का आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व विषयक संगोष्ठी संपन्न

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भारतीय संस्कृति का महासंगम है कुंभ

जयपुर, दिव्यराष्ट्र/।कुंभ भारतीय संस्कृति के महासंगम के रूप में श्रद्धा, अध्यात्म और सामूहिकता का महापर्व है। कुंभ आध्यात्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। पवित्रता,आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति के लक्ष्य को अर्जित करने की दृष्टि से कुंभ में होने वाली आध्यात्मिक चर्चा, तप और सत्संग की अहम भूमिका है।

यज्ञ फाउंडेशन के तत्वावधान में शनिवार को विधायक बालमुकुंद आचार्य के मुख्य आतिथ्य में कुंभ के आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व विषयक गोष्ठी में यह विचार व्यक्त किए गए।

विधायक बालमुकुंद आचार्य ने भारतीय संस्कृति की विशेषताओं को रेखांकित करते हुए कहा कि महाकुंभ भारतीय समाज की समरसता का साक्षात उदाहरण है। उन्होंने कहा कि कुंभ में बिना किसी जातिगत भेदभाव के समस्त समाज एकत्रित होकर आध्यात्मिक चेतना का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने कहा कि कुंभ के दौरान देशभर से साधु सन्यासी आकर श्रद्धालुओं की आध्यात्मिक चेतना को प्रबल करते हैं और धर्म के मार्ग पर चलने का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए राजस्व मंडल के अध्यक्ष रहे श्री राजेश्वर सिंह ने वेद, उपनिषद और गीता का उल्लेख करते हुए विस्तार से कुंभ की महिमा को प्रतिपादित किया। उन्होंने कहा कि कुंभ के दौरान ज्ञान की अमृत वर्षा होती है और कुंभ में शामिल होने वाले सभी श्रद्धालुओं को धर्म के मार्ग पर चलने का संदेश मिलता है। उन्होंने कहा कि सूर्य चंद्रमा और गुरु के विशेष संयोग से कुंभ का समय निर्धारित होता है एवं इस विशिष्ट समय पर सकारात्मक वातावरण उत्पन्न होने के कारण कुंभ में स्नान का विशेष महत्व है।

मुख्य वक्ता एवं राज्य सरकार के प्रमुख शासन सचिव कार्मिक डॉ के के पाठक ने विभिन्न शास्त्रों का उल्लेख करते हुए कुंभ के आध्यात्मिक एवं दार्शनिक पक्ष पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों को एस्टॉनोमिकल साइंस और उनके जैविक प्रभावों के बारे में गहन जानकारी थी। बायो मैग्नेटिज्म के अनुसार मानव शरीर चुंबकीय क्षेत्र का उत्सर्जन करता है और बाहरी ऊर्जा क्षेत्र से भी प्रभावित होता है। उन्होंने विभिन्न नदियों की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उत्तरी भारत के साथ ही दक्षिणी भारत को जोड़ते हुए गंगा, यमुना, गोदावरी क्षिप्रा, चंबल आदि नदियों को पूजनीय स्थान प्राप्त है। उन्होंने इन नदियों के संबंध में विस्तृत शास्त्रीय व्याख्या की।

जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग अध्यक्ष डॉ कौसलेंद्र दास शास्त्री ने कुंभ के उद्गम एवं विकास के संबंध में विभिन्न शास्त्रों का उल्लेख करते हुए विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने प्रयाग में आयोजित कुंभ की विशेषताओं पर विस्तार से प्रकाश डाला।

विख्यात ज्योतिष आचार्य पंडित पुरुषोत्तम गौड़ ने बताया कि हमारे प्राचीन ऋषि मुनि ग्रह नक्षत्र के संबंध में व्यापक जानकारी रखते थे और उन्होंने ग्रह नक्षत्र की स्थितियों के अनुसार प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में कुंभ की तिथियां निर्धारित की। आज भी उसी अनुरूप से कुंभ की तिथियां निर्धारित होती है और ग्रहों के पवित्र संयोग से इन क्षेत्रों में जाकर श्रद्धालु आध्यात्मिक वातावरण में आत्म कल्याण की ओर अग्रसर होते हैं।

संगोष्ठी का संचालन अतिरिक्त निदेशक जनसंपर्क सेनि डॉ गोविंद पारीक ने किया। होटल सफारी के पवन गोयल ने अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया।

प्रारंभ में यज्ञ फाउंडेशन और एस्ट्रो जीपीटी के सचिव प्रणव पारीक ने अतिथियों का स्वागत किया।

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