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भारत में रबी 2024-25 के लिए 115.2 लाख टन रेपसीड-सरसों उत्पादन का अनुमान

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सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इण्डिया (एसईए) ने रबी 2024-25 सीजन के लिए रेपसीड-सरसों के रकबे और उत्पादन अनुमानों पर एक व्यापक सर्वेक्षण पेश किया है। एसईए के क्षेत्र सर्वेक्षण और सैटश्योर के उपग्रह-संचालित पूर्वानुमान विश्लेषण के आधार पर, सरसों का कुल रकबा 92.15 लाख हेक्टेयर होने का अनुमान है, जिसमें 115.2 लाख टन उत्पादन होने का अनुमान है। इन निष्कर्षों से पता चलता है कि सरकार के 89.30 लाख हेक्टेयर के अनुमान की तुलना में रकबे में मामूली वृद्धि हुई है, लेकिन पिछले साल के 100.5  लाख हेक्टेयर से 11.1 प्रतिशत की गिरावट का संकेत मिलता है।

एसईए के अध्यक्ष संजीव अस्थाना ने संभाषण की शुरूआत करते हुए बताया कि पिछले कुछ वर्षों में भारत दुनिया का सबसे बड़ा ईडेबल ऑयल इम्पोर्टर बनकर उभरा है, जिससे इसके खजाने के साथ ही किसानों की आय पर भी गंभीर दबाव पड़ा है। एक जिम्मेदार और शीर्ष उद्योग निकाय के रूप में, एसईए ने तिलहन की घरेलू उपलब्धता बढ़ाने के लिए कई इनिशिटिव किए हैं। इनमें से एक इनिशिटिव, जिसका नाम ‘मॉडल मस्टर्ड फार्म प्रोजेक्ट‘ है, जो कि वर्ष 2020-21 से लागू की जा रही है, जिसका मकसद वर्ष 2029-30 तक भारत के रेपसीड सरसों के उत्पादन को 200 लाख टन तक बढ़ाना है।

इस मौके पर एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. बी.वी. मेहता ने बताया कि ‘‘सरसों के लिए मौजूदा एमएसपी 5950 रुपये प्रति क्विंटल है। सरसों की कीमत पहले ही एमएसपी को छू चुकी है और आवक के दबाव के साथ इसके नीचे जाने की संभावना है। सरकार को किसानों की सुरक्षा के लिए एमएसपी पर खरीद के लिए नैफेड और अन्य एजेंसियों को तैयार करना चाहिए।‘‘

एसईए रेप मस्टर्ड प्रमोशन काउंसिल के अध्यक्ष विजय डाटा ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा ‘‘इन ठोस प्रयासों के परिणामस्वरूप अनुकूल मौसम और सरसों के बीज की कीमत के साथ, भारत ने सरसों के उत्पादन में साल दर साल उल्लेखनीय वृद्धि देखी है, जो वर्ष 2020-21 में लगभग 86 लाख टन थी, और वर्ष 2023-24 में सरसों का उत्पादन अब तक का सबसे अधिक 115.8 लाख टन दर्ज किया गया। 2024-25 के लिए रेपसीड/सरसों का रकबा लगभग 92.15 लाख हेक्टेयर है और अनुमानित उत्पादन लगभग 115.2 लाख टन होने का अनुमान है।

सैटस्योर के श्री कुमारजीत मौमदार ने बताया कि सईए ने फसल क्षेत्र के आकलन में उच्चतम स्तर की सटीकता के लिए दो दौर के व्यापक फसल सर्वेक्षण, रिमोट सेंसिंग विश्लेषण के माध्यम से सर्वेक्षण के लिए सैटस्योर एनाल्यूटिक्स इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड को शामिल किया है। परियोजना के परिणाम के बारे में विस्तार से बताते हुए ने उन्होंने बताया कि सर्वेक्षण में बुवाई से लेकर कटाई तक किसानों के साथ लगातार बातचीत भी शामिल थी, ताकि सभी कृषि पद्धतियों के प्रभाव को सुनिश्चित किया जा सके, इनपुट का चयन किया जा सके और अंतिम अनुमान पर पहुंचने के लिए मौसम पर विचार किया जा सके।

कुल आठ राज्यों जैसे असम, गुजरात, हरियाणा, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल का सर्वेक्षण किया गया। आठ प्रमुख राज्यों के प्राथमिक सर्वेक्षण और शेष राज्यों के द्वितीयक सर्वेक्षण के आधार पर, वर्ष 2024-25 के लिए भारत का रेपसीड-सरसों का रकबा 92.15 लाख हेक्टेयर होने का अनुमान है। (सरकार का अनुमान 89.30 लाख हेक्टेयर)

श्री कुमारजीत मौमदार, सैटस्योर एनालटिक्स इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड ने मुख्य निष्कर्षों और राज्यवार रकबे की जानकारी दी:

ऽराजस्थान, जो सबसे बड़ा सरसों उत्पादक राज्य है, में 34.74 लाख हेक्टेयर में सरसों की खेती होने का अनुमान है, जिसमें 52.45 लाख टन उत्पादन होने का अनुमान है।

ऽमध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में क्रमशः 14.86 लाख हेक्टेयर और 14.23 लाख हेक्टेयर में खेती होने की उम्मीद है, जो राष्ट्रीय उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान देगा।

ऽहरियाणा में 7.14 लाख हेक्टेयर में सरसों की खेती होने का अनुमान है, जिसमें 12.58 लाख टन उत्पादन होने का अनुमान है।

ऽपश्चिम बंगाल, झारखंड, असम और गुजरात सहित अन्य प्रमुख सरसों उत्पादक राज्यों में मामूली वृद्धि के साथ स्थिर क्षेत्रफल दिखा है।

क्षेत्र अवलोकन और किसान भावनाएं

1. फसल वृद्धि के रुझानः एनडीवीआई मूल्य और फसल वृद्धि अवलोकन से संकेत मिलता है कि सरसों की फसल मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिम बंगाल सहित प्रमुख सरसों उगाने वाले क्षेत्रों में उम्मीद के अनुरूप रही है या उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है।

2. जमीनी हकीकत: क्षेत्र के आकलन से फसल की वृद्धि के सकारात्मक चरणों का पता चलता है, विशेष रूप से पुष्पक्रम के उभरने और पुष्पन के दौरान, जो सरसों की उपज निर्माण के लिए महत्वपूर्ण चरण हैं।

3. किसानों की भावनाएं: भारत सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि के बावजूद, बढ़ती उत्पादन लागत के कारण किसान सरसों की खेती को लेकर सतर्क बने हुए हैं।

डॉ. मेहता ने स्पष्ट किया कि, एसईए इस बात पर जोर देता है कि ये अनुमान और अवलोकन विकसित कृषि संबंधी स्थितियों, वास्तविक समय के रिमोट सेंसिंग आकलन और आगे की एनेलेस्टिक इनसाइट के आधार पर संशोधन के अधीन हैं। मौसम के बढ़ने के साथ-साथ अपडेट एकड़ और फसल रिपोर्ट प्रदान की जाएगी।

एसईए उपज और उत्पादन के अपने अनुमानों को फिर से मान्य करने के लिए अप्रैल-मई में तीसरा और अंतिम क्षेत्र सर्वेक्षण करेगा।

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