राजसमंद की बेटियाँ सीड्स बॉल से दुर्गम पहाडियों और जंगलों में ला रही है हरियाली
बीजों की मुट्ठी, हौसलों की टोली – गोरीधाम से मेराथन ऑफ़ मेवाड़ तक गुलेल से छोड़े हजारो सीड्स बॉल
राजसमन्द : दिव्यराष्ट्र/ जिस गुलेल से कभी निशाना साधा जाता था, आज उसी से राजसमंद की बेटियाँ बीजों की वर्षा कर रही हैं। उनके निशाने पर अब जंगलों की सूनी ज़मीनें हैं, और लक्ष्य है – जीवन को हरा-भरा बनाना। राजसमंद जिले के देहात और दुर्गम पहाड़ी इलाकों में हरियाली लौटाने का एक अनूठा और प्रेरणादायक अभियान इस वर्ष भी अपने चरम पर है। इस बार सांसद महिमा कुमारी मेवाड़ की प्रेरणा और सामाजिक कार्यकर्ता भावना पालीवाल के नेतृत्व में “सीड्स बॉल अभियान” पिछले सात वर्षों से लगातार पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य कर रहा है। यह अभियान कॅरियर संस्थान राजसमन्द, माय भारत राजसमन्द, कॅरियर महिला मंडल देवगढ़ द्वारा किया जा रहा है ।
पैदल तय किया कच्चा पगडंडी मार्ग, गुलेल से हुआ बीजारोपण*
इस वर्ष भी कॅरियर संस्थान द्वारा आयोजित अभियान के तहत प्रथम चरण में महिलाओं ने सामाजिक कार्यकर्ता भावना पालीवाल के नेतृत्व में देवगढ़ की कठिन पर्वतीय श्रृंखलाओं, गोरीधाम, देवरो का गुड़ा, चंद्रभागा नदी के उद्गम स्थल, मेराथन ऑफ मेवाड़, तथा सात पालिया के आस-पास के जंगलों में सीड्स बॉल का छिड़काव किया। महिलाओं ने घंटों पैदल चलकर कच्चे पगडंडी रास्तों और घने जंगलों को पार किया। फिर गुलेल के माध्यम से हजारों बीज बॉल जंगलों की ढलानों, घाटियों और मैदानों में छोड़े। यह बीज बॉल बारिश के पानी से घुलकर मिट्टी में समा जाते हैं और कुछ ही समय में अंकुरित होकर पौधों का रूप ले लेते हैं।
जल, जंगल, जमीन और पक्षियों के लिए एक महिला-सशक्तिकरण आधारित पहल*:
सीड्स बॉल अभियान का मुख्य उद्देश्य सिर्फ पौधारोपण नहीं, बल्कि पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा भी है। अभियान में शामिल महिलाएं न केवल वनस्पतियों के संरक्षण की बात करती हैं, बल्कि लुप्त होती पक्षियों की प्रजातियों, गिरते जलस्तर और बंजर होती जमीन को संजीवनी देने की बात भी करती हैं। कॅरियर संस्थान की जिला प्रभारी मीनल पालीवाल कहती हैं, “यह सिर्फ पर्यावरण की सेवा नहीं, बल्कि मातृभूमि की गोद को हरियाली से भरने का संकल्प है। हम चाहते हैं कि जंगल जीवित रहें, जल स्रोत पुनः बहें और पक्षियों की चहचहाहट फिर से गूंजे।”
इन बीजों का हुआ छिड़काव :
इस वर्ष जिन बीजों के सीड्स बॉल तैयार किए गए उनमें नीम, पीपल, बबूल, रोहिडा, अमलताश, करंज, बड़, शीशम और जामुन शामिल हैं। ये सभी बीज क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के अनुकूल हैं। हर बीज बॉल को छिड़काव से पहले भिगोकर रखा गया ताकि वह थोड़ी सी नमी मिलते ही जल्दी अंकुरित हो सके। इसका उद्देश्य यही था कि हर बीज बर्बाद न जाए और अधिक से अधिक पौधे जन्म लें।
ऐसे तैयार होती है सीड्स बॉल
सीड्स बॉल तैयार करने की प्रक्रिया में महिलाओं को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। सबसे पहले क्षेत्र के अनुकूल बीज एकत्रित किए जाते हैं। इसके बाद उपजाऊ मिट्टी और गोबर/कम्पोस्ट खाद का मिश्रण तैयार किया जाता है, जिसे थोड़ा गीला कर लड्डू के आकार में गूंथा जाता है। फिर प्रत्येक लड्डू में बीचोंबीच बीज डालकर उसे बंद कर दिया जाता है। इन सीड्स बॉल को छांव में सुखाया जाता है ताकि बीज धूप के कारण समय से पहले अंकुरित न हों। जब यह पूरी तरह सूख जाते हैं, तब उन्हें संग्रहित कर बारिश में जंगलों में फेंका जाता है।
एक महीने से चल रही थी तैयारी – इस बार बनाए गए 50,000 सीड्स बॉल*
कॅरियर संस्थान सचिव निलेश पालीवाल ने जानकारी देते हुए बताया कि इस बार सांसद महिमा कुमार मेवाड़ की प्रेरणा से महिलाओं ने इस वर्ष एक माह पूर्व ही अभियान की तैयारी शुरू कर दी थी। उनका लक्ष्य था कि बारिश आते ही हजारों बीज बॉल जंगलों और खाली पड़ी पहाड़ियों में फेंके जा सकें। इस वर्ष भी सीड्स बॉल तैयार किए गए हैं, जिनका छिडकाव अब शुरू हो चुका है। महिलाओं की मेहनत से ये पहाड़ियाँ फिर से हरी होंगी, और आने वाले वर्षों में ऑक्सीजन का स्रोत बनेंगी।”
महिलाओं की ताकत से हो रहा है हरियाली का सपना साकार
अभियान में शामिल भावना सुखवाल, विजय लक्ष्मी, ज्योति चुंडावत, निकिता वैष्णव, अरीना, रिद्धिमा चौहान, किरण गोस्वामी, दिलखुश सेन, मीनल पालीवाल, आशा कुमावत, रिनू शक्तावत, पूजा पालीवाल, रागिनी पूर्बिया सहित राजसमंद जिले की कई महिलाएँ इस अभियान से जुड़ कर जंगल बनाने में योगदान दे रही है।