उदयपुर,, दिव्यराष्ट्र/ मेवाड़ में शिक्षा, साहित्य लेखन, भूगोल, इतिहास, समाजसेवा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व विप्र समाज में नारायण लाल शर्मा की सक्रीयता व अवदान को चिरकाल तक स्मरण रखा जायेगा। आठ अप्रैल 2025को प्रातः शर्मा के चिरनिद्रा में लीन होने का दुखद समाचार मिलते ही शोक छागया।
ज्येष्ठ पूर्णिमा विक्रम संवत् 1998 दिनांक 8 जून 1941 को सिंध हैदराबाद (जो अब पाकिस्तान में है) में पिता गिरिधर लाल शर्मा के घर में माता लक्ष्मीबाई की कुक्षी से बालक नारायण का जन्म हुआ। भारत विभाजन की विभिषिका के मध्य आप सपरिवार कांकरोली आये। कांकरोली में प्रारम्भिक शिक्षा के बाद आपने उदयपुर में भूगोल में स्नातकोत्तर, बीएड व एम एड तक की शिक्षा ग्रहण की।
शर्मा के अग्रज भानुकुमार शास्त्री देश की आजादी से पूर्व ही सिंध में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आ गये थे। इस कारण शर्मा भी बाल्यकाल में ही संघ के स्वयंसेवक बन गये। संघ का तृतीय वर्ष प्रशिक्षण लेने के साथ शाखा स्तर से जिला कार्यवाह तक के दायित्वों का निर्वहन किया। वर्षों तक तक संघ शिक्षा वर्गों के बौद्धिक विभाग के प्रमुख का दायित्व भी उनके पास रहा। वे 1962 से 1966 तक राजकीय महाविद्यालय कोटपुतली (जयपुर) में भूगोल के प्राध्यापक रहे। उदयपुर में संघ से जुडे विद्यालय विद्या निकेतन की स्थापना हुई तो शर्मा ने राजकीय सेवा से त्यागपत्र देकर अध्यापक हो गये। उसके बाद शर्मा आलोक संस्थान में प्रधानाचार्य व स्कॉलर्स एरिना संस्थान में अकादमिक निदेशक रहे।
राज्य सरकार ने सन् 1991 से 1994 तक उन्हें उदयपुर नगर विकास प्रन्यास का न्यासी नियुक्त किया। इस दौरान आपने प्रन्यास अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह लिखारी के साथ विभिन्न समाजों, संस्थानों को भूमि आंवटन कराने व नगर के विकास में महत्ती भूमिका का निर्विह किया। सविना के सबसिटी सेंटर की आधारशिला इसी कार्यकाल में रखी गयी।
आपने प्रातःकाल दैनिक में लगभग 27 वर्षों तक इतिहास विषयक नियमित साप्ताहिक स्तंभ ” मेवाड महिमा” का लेखन किया। उन्होंने मेवाड़ का सम्मान, मन, महाराणा उदयसिंह, शत नमन माधव चरण में, योग दर्शन और शिक्षा, नैतिक शिक्षा, अपराजेय प्रताप और रह गई यादें पुस्तके लिखी। आपने कुछ पुस्तकों का अनुवाद व सम्पादन भी किया।
उदयपुर में विप्र समाज की एकता व विकास के लिये गठित ब्राह्मण एकता परिषद् के संस्थापक सदस्य व संभागीय संगठन मंत्री भी रहे।
संघ के जिला कार्यवाह व एक शिक्षक के नाते उनका सम्पर्क क्षेत्र व्यापक था। वे अपने विद्यार्थियों के साथ उनके परिवारजनों से भी सीधा परिचय रखते थे। वे परीक्षा के दिनों में प्रातः व सायं परिवार में जाकर अपने विद्यार्थियों के अध्ययन समय की जानकारी उनके परिजनों से अवश्य लेते थे। उनकी स्मरण शक्ति अद्वितीय थी। वर्षों पू्र्व के विद्यार्थियों को भी वे सदैव नाम से पुकारते थे। आपको महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, आलोक संस्थान के पूर्व छात्रों, लायन्स व रोटरी क्लब सहित विभिन्न संस्थाओं ने सम्मानित भी किया।
संघ व राजनीतिक क्षेत्र में उनका अच्छा प्रभाव होने के बाद भी उन्होने कभी पद प्रतिष्ठा पाने या प्रत्यक्षतः चुनावी राजनीति करने का कोई प्रयास नहीं किया। वस्तुतः वे संगठन व विचारधारा के जुडे मां भारती के सच्चे उपासक थे। वे स्पष्टवक्ता थे। संगठन में अनुचित गतिविधियों पर स्पष्ट व बेबाक अभिव्यक्ति उनका स्वभाव था। संगठन का दायित्व रहा या नहीं रहालेकिन संगठन के प्रति उनकी निष्ठा अटल व अडिग रही।
मां भारती के लिये जीवनभर समर्पित रहे।