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अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का जेईसीआरसी में हुआ आयोजन

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जयपुर, दिव्यराष्ट्र/ जेईसीआरसी यूनिवर्सिटी  में “शैक्षिक, सांस्कृतिक और समाजिक दृष्टिकोण: अंग्रेजी साहित्य, संचार और अनुवाद” पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का सफलतापूर्वक आयोजन हुआ। यह सम्मेलन हाइब्रिड मोड में आयोजित किया गया, जिसमें दुनियाभर से विद्वानों, शिक्षाविदों और पेशेवरों ने भाग लिया।

सम्मेलन के मुख्य वक्ताओं में डॉ. हाइलाह अलखलाफ (रियाद, सऊदी अरब), प्रो. ए. जोसेफ डोराइराज (गांधीग्राम ग्रामीण संस्थान, तमिलनाडु), डॉ. सुमन बाला (दिल्ली विश्वविद्यालय) और प्रो. मारिया सांचेज़ (एबर्डीन विश्वविद्यालय, यूके) शामिल थे। अन्य वक्ताओं में प्रो. कमाहरा इविंग (केंटकी विश्वविद्यालय, यूएसए), प्रोफेसर पॉल इनिस (संयुक्त अरब अमीरात विश्वविद्यालय), डॉ. नबीहा मक्ताबी (अबू धाबी की तनवीन कंपनी की सीईओ), और डॉ. रिया हलीहल (प्रसिद्ध अनुवादक, बेरूत, लेबनान) शामिल थे।

कार्यक्रम में विभिन्न समकालीन मुद्दों पर गहन चर्चा की गई, जिसमें खासतौर पर अंग्रेजी साहित्य, भाषा सीखने और अनुवाद पर ध्यान केंद्रित किया गया। वक्ताओं ने बताया कि कैसे आधुनिक तकनीक, जैसे मशीन लर्निंग टूल्स, भाषा सीखने और अनुवाद की प्रक्रियाओं में बदलाव ला रही हैं। इस बात पर विशेष जोर दिया गया कि तकनीकी विकास ने इन दोनों क्षेत्रों को कैसे प्रभावित किया है और इसके माध्यम से भाषा के अध्ययन को और भी सुलभ और प्रभावी बनाया जा सकता है।वक्ताओं ने अपने विचार साझा किए और अंतरविषयक दृष्टिकोणों की अहमियत पर जोर दिया, यानी एक ही विषय को विभिन्न दृष्टिकोणों से समझने की जरूरत। उदाहरण के तौर पर, डॉ. अलखलाफ, डॉ. रोस्विथा जोशी और डॉ. आर. के. धवन ने अनुवाद के सांस्कृतिक महत्व पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि भाषा के माध्यम से एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति के बीच की दूरी को अनुवाद किस तरह से कम कर सकता है। दूसरी तरफ, प्रो. इनिस और डॉ. रिया हलीहल ने तकनीकी प्रगति पर रोशनी डाली और बताया कि कैसे नई तकनीकों ने भाषा के अध्ययन और अनुवाद को आसान और तेज़ बना दिया है।

सम्मेलन की समापन सत्र में, अंग्रेजी विभाग की प्रमुख डॉ. रुचिदा बर्मन और सम्मेलन संयोजक डॉ. ललित गहलोत ने साहित्य, संचार और अनुवाद में अंतरविषयक दृष्टिकोणों की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने शैक्षिक, सांस्कृतिक और तकनीकी अंतर्दृष्टियों को समेकित करने की बढ़ती प्रासंगिकता पर चर्चा की, जिससे अंग्रेजी साहित्य और उसके वैश्विक प्रभाव की अधिक व्यापक समझ विकसित हो सके।

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