धर्मतीर्थ अतिशय क्षेत्र के निकट धर्मनगरी आडूल शहर में दिगम्बर जैनाचार्य श्री गुप्तिनंदी ने पर्यूषण पर्व के सातवें दिन उत्तम तप धर्म की व्याख्या की
आडूल, दिव्यराष्ट्र/ मोक्ष शास्त्र में इच्छा निरोध स्तपः कहा है:-पंचेन्द्रिय विषयों की आकांक्षा ही आत्म परिणामों में राग द्वेषादि विकारों को पैदा करने वाली है अतः आत्मशोधन के लिए इच्छाओं का निरोध अनिवार्य है।जो विकारों का दास है वह पशु है,। जो विकारों को जीतने में थोड़ी सफलता प्राप्त कर चुका है वह देव है,। और जो विकारों को पूर्णतया जीत चुका है वह मनुष्य होकर भी देवाधिदेव हैं।स्वयं को राग द्वेष से मुक्त रखना ही उत्तम तप धर्म है।राग द्वेष की विषैली लतायें मनुष्य के जीवन रस को निरन्तर चूसती रहती हैं और उसे खोखला बना देती है।उन विषैली लताओं को तप की अग्नि में ही भस्मसात् किया जा सकता है।संसार में मार्ग दो प्रकार का है,एक साधनों का मार्ग है।साधनों का मार्ग सुख सुविधा का भोग का मार्ग है । और साधना का मार्ग स्वात्माभिमुख स्वाधीन तपश्चर्या का मार्ग है।भारतीय संस्कृति श्रमण संस्कृति में धर्म को साधन सम्पन्न नहीं, साधना सम्पन्न निरूपित किया है। यहाँ भोग के स्थान में योग,त्याग,तप को स्थान मिला है।संसार में दृश्यमान जड़ चेतन सभी को तपना पड़ता हैं।
अग्नि में तपने पर ही स्वर्ण में शुद्धता प्रकट होती है।लोहे की टेढ़ी छड़ को अग्नि में तपाकर ही सीधा किया जा सकता है।अग्नि में तपायें बिना सीधा करने पर वह छड़ टूट सकती है लेकिन वह पूर्णरूपेण सीधी नहीं हो सकती।
आंच में पकने पर भोजन भी स्वादिष्ट हो जाता है।अग्नि में पका हुआ कुंभ गर्मी में सबकी प्यास बुझाता ही है,साथ में कन्या व सौभाग्यशाली स्त्रियों के सिर पर बैठकर सम्मान को भी पाता है।एक हरा-भरा सुन्दर आम डाल पर लटक रहा था,अभी न उसमें कोई सुगन्ध थी और न ही रस चखने योग्य हुआ था।फिर भी बगीचे के माली ने उसे तोड़ा और पलाश के पत्तों के बीच ढककर रख दिया,।तीन-चार दिन के उपरान्त देखा तो आमफल पीले रंग का हो गया था। उसमें मीठी-मीठी सुगंध महकने लगी। रस में मीठापन आ गया और कठोरता के स्थान पर कोमलता आ गयी।आम्रफल इतना मीठा व सुन्दर हो गया कि उसे देखकर सबका मन ललचाने लगा।माली से पूछा गया कि इसमें इतनी जल्दी अविलम्ब परिवर्तन कैसे हो गया तो माली ने कहा-कि यह सब अतिरिक्त तप का परिणाम है।ऐसे ही तप के द्वारा ही आत्मा को शुद्ध करके परमात्मा बनाया जा सकता है।आज उत्तम तप के साथ एकादशी व्रत की धूम रही। सभी जैन मंदिरों में जैन श्राविकाओं ने एकादशी का निरंकार उपवास किया।आज के सौधर्मेन्द्र डा.प्रेमचन्द आशीष मयूर कासलीवाल आडूल ने जिनाभिषेक के साथ गणिनी आर्यिकाश्री आस्थाश्री माताजी द्वारा लिखित श्री दशलक्षण,अनंत व्रत व तत्त्वार्थसूत्र विधान को संपन्न किया।एवं श्री संजय शीतल मनोज कासलीवाल बाडावाला परिवार ने महाशान्तिधारा व श्री गुरु के पादप्रक्षालन का सौभाग्य प्राप्त किया।शाम को आचार्य श्री ने ध्यान शिविर में श्री दशलक्षण व्रत कथा का ध्यान कराया।प्रत्येक दिन ध्यान के बाद गणिनी आर्यिकाश्री आस्थाश्री माताजी के दशधर्म पर विशेष व्याख्यान हो रहे हैं और जैन पाठशाला आडूल के बच्चों द्वारा शिक्षाप्रद सांस्कृतिक कार्यक्रम हो रहे हैं।