(दिव्यराष्ट्र के लिए गोविन्द पारीक, अतिरिक्त निदेशक, जनसंपर्क (सेनि.))
वेदों में अग्नि, इन्द्र, वरुण, सोम, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश, महादेव, आदि सब नाम सर्वव्यापक परमात्मा के लिये प्रयुक्त हुये हैं। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान आदि यम नियमों का पालन करते हुये परमात्मा का नित्य ध्यान करना और वेदों में वर्णित परमात्मा की आज्ञाओं का पालन करना ही सच्ची गणेश पूजा है । वेदों में एक ईश्वर के अनेक नाम बताये गये हैं । ईश्वर का हर नाम ईश्वर के गुण का प्रतिपादन करता हैं। ईश्वर के असंख्य गुण होने के कारण असंख्य नाम हैं। सत्य सनातन वैदिक धर्म में सर्वव्यापक परमात्मा के अनेक गुणवाचक नामों में से एक नाम गणेश है। प्रकृत्यादि जड़ और सब जीवजगत का स्वामी व पालन करने वाला होने से ईश्वर का नाम ‘गणेश’ या ‘गणपति’ है।
गणेश का उल्लेख ऋग्वेद और यजुर्वेद में है।
ग॒णानां॑ त्वा ग॒णप॑तिं हवामहे क॒विं क॑वी॒नामु॑प॒मश्र॑वस्तमम् । ज्ये॒ष्ठ॒राजं॒ ब्रह्म॑णां ब्रह्मणस्पत॒ आ न॑: शृ॒ण्वन्नू॒तिभि॑: सीद॒ साद॑नम्॥ ऋग्वेद 2.23.1
भावार्थ:- हे मनुष्यो ! जैसे विद्वान लोग सबके अधिपति, सर्वज्ञ, सर्वव्यापी, अन्तर्यामी परमेश्वर की उपासना करते हैं वैसे तुम भी सब गणों के स्वामी परमेश्वर की उपासना किया करो ।
ग॒णानां॑ त्वा ग॒णप॑तिं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे निधिनां त्वा निधिपतिं हवामहे। वसो मम आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्॥ -यजुर्वेद 23.19
भावार्थ:- हे परमपिता परमात्मा आप समस्त समूहों के राजा हैं हम आपकी प्रजा हैं इसलिए मैं आपको गणपति अर्थात् गणेश नाम से पुकार रहा हूँ।आप प्रिय पदार्थों के पति हैं, आप समस्त धन सम्पत्तियों, खजानों आदि के स्वामी हैं, आप मेरे अर्थात् हम सबको वसाने वाले वसु हैं, आप जन्म आदि दोष से रहित हैं, मैं अपनी अविद्या को दूर फेंक दूँ। हे प्रभु मैं समस्त प्रकृति को गर्भ में रखने वाले आप को जान सकूँ। ऐसी आपसे विनम्र प्रार्थना है।
मंगल मूर्ति गणेश से मिलने वाली दिव्य प्रेरणाओं को ग्रहण कर जीवन को आनंदमय और मंगलमय बनाया जा सकता है। विनायक जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता की राह दिखाते हैं। गणेश सनातन संस्कृति के सभी 33 कोटि देवी देवताओं में सबसे पहले पूजे जाते हैं।
गणेश जी सृजन और कर्म के देवता है। महाकाव्य महाभारत का लीप्यांकन गणेश जी ने ही किया था। प्रजापिता ब्रह्मा जानते थे कि संसार में एकमात्र गणेश ही है जो बगैर त्रुटि के महाभारत का लेखन करने में महर्षि वेदव्यास के सहायक हो सकते हैं।गणेश जी ने महाभारत की दोष रहित रचना पूरी की। गणेशजी ने इस महाकाव्य की रचना कर लक्ष्य की सिद्धि हो जाने तक बिना विराम काम करने की सीख दी।
गणेश जी की चार भुजाएं चार पुरुषार्थ का रूप है। गणेश जी का गजमुख, वक्रतुंड, एकदंत, लंबोदर स्वरूप उनकी चार भुजाओं का प्रतीक है। चार भुजाओं में पाश ,अंकुश, वरदहस्त तथा अभयहस्त है। पाश राग का तथा अंकुश क्रोध का संकेत है। उनका वरदहस्त कामनाओं को पूर्ण करने के लिए अनथक श्रम करने और अभयहस्त निर्भय रहने का संदेश देते हैं। गणेश जी दुष्टों का नाश कर सज्जनों की रक्षा के परम धर्म के पर्याय हैं। गणेश रूपी परमेश्वर ने ही देवता, मानव, नाग और वासु को स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल में स्थापित किया। उनके चार हाथ चार प्रकार के इन प्राणियों देवता, मानव, नाग और वासु के सम्यक विभाजन के संकेतक है।
भगवान गणेश के चतुर्भुज चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के प्रतीक हैं। इन्हें साधकर ही सच्चे अर्थों में अपने जीवन को सार्थक कर सकता है। धर्म के साथ ही गणेश अर्थ सिद्ध अर्थात रिद्धि सिद्धि से संपन्न है। गृहस्थ होकर काम को सार्थक करते हैं और आनंददाता होकर मोक्ष के प्रदाता है। मनुष्य ही नहीं हर देवता की गृहस्थी में कुछ न कुछ मतभेद होते रहते हैं। यहां तक कि गणेश जी के पिता शिवजी से उनकी माता पार्वती और जगतपिता ब्रह्मा जी से उनकी पत्नी गायत्री सावित्री की यदाकदा रूठ जाने की कथाएं मिल जाती हैं। लेकिन गणेश जी की गृहस्थी पूर्णतया आनंदमय रही। संभवतः गणेश जी अकेले ऐसे गृहस्थ हैं, जिनके दो पत्नियां रिद्धि और सिद्धि हैं और जिनकी गृहस्थी में सदैव आनंद ही आनंद प्रतीत होता है। रिद्धि ऐश्वर्या की एवं सिद्धि सामर्थ्य की प्रतीक है। ऐश्वर्या और सामर्थ्य दोनो की प्राप्ति होने पर निसंदेह आनंद ही आनंद रहेगा।
गणेशजी के दो पुत्र लाभ और क्षेम है। उनके पुत्र लाभ, जो अप्राप्त की प्राप्ति कराते हैं और दूसरे क्षेम प्राप्त की रक्षा करते हैं। आदर्श माता-पिता का दायित्व है कि वह लाभ और क्षेम जैसी संतान प्राप्ति के लिए अपने चहुंओर आनंदमय अनुकूल वातावरण रखें। इसका सीधा सकारात्मक असर संतान पर होता है।
सनातन संस्कृति में पांच देवताओं की उपासना का प्रावधान है। यह सभी पंच देव सृष्टि के कारक पांच महाभूतों से संबंधित है। शिव पृथ्वी तत्व के, विष्णु आकाश तत्व के, शक्ति अग्नि तत्व की, सूर्य वायु तत्व के और गणेश जी जल तत्व के देवता है। इसी कारण शिव की पार्थिव पूजा होती है और शक्ति की उपासना हवन द्वारा की जाती है। विष्णु की आराधना शब्द से होती है क्योंकि शब्द आकाश तक जाते हैं।
गणेश जी के जल तत्व के अधिपति होने के कारण ही उनकी सर्वप्रथम पूजा का विधान है। जल ही जीवन का आधार है और जल से ही जगत और जीवन की उत्पत्ति हुई है। धरती पर 70% जल है और मनुष्य के शरीर में भी जल तत्व की प्रधानता है। गणेश जी जल की भांति निर्मल, पारदर्शी और तृप्तिदाता है। इस अर्थ में गणेश जी जीवन को जल की तरह तरल, सरल, निर्मल और सतत प्रवाहित रूप से प्रवाहित कर है संतुष्ट रहने का संदेश देते हैं।
भगवान गणेश को शिव के गणों के अध्यक्ष होने के कारण गणाध्यक्ष भी कहा जाता है। परमपिता ने गणेश के रूप में अपने इस स्वरूप का निर्माण संभवतः मानव को जीवन कल्याण का तत्व ज्ञान देने के लिए किया है। गणेशजी का बड़ा मस्तक यह बताता है कि इंसान को अपनी सोच को हमेशा बड़ा रखना चाहिए। गणपति की छोटी आंख का मतलब है कि व्यक्ति को चिंतनशील होकर हर चीज का गहराई से अध्यन करके ही निर्णय करना चाहिए। भगवान गणेश के बड़े कान भाग्यशाली और दीर्घायु होने का प्रतीक माना जाता है। बड़े कान चौकन्ना रहकर सबकी सुनना और फिर अपनी बुद्धि और विवेक के आधार पर निर्णय लेने का संकेत करते हैं। गणेशजी के बड़े कान यह भी शिक्षा देते हैं कि ज्ञान की बात सुनें और बुरी बातों को तत्काल दूसरे कान से बाहर कर दें।
गणेशजी की सूंड हमेशा हिलती रहती है। इसका तात्पर्य है कि जीवन में हमेशा सक्रिय रहना चाहिए। लंबोदर गणेश का पेट खुशहाली का प्रतीक है। बड़े पेट का मतलब है कि अच्छी और बुरी बातों का समझें, सही पचा लें और फिर अपना निर्णय लें। एकदंत गणेश का एक दांत एक युद्ध में परशुराम ने अपने फरसे से भगवान काट दिया और गणेशजी ने उसी टूटे दांत से पूरा महाभारत ग्रंथ लिख दिया। एकदंत से यह शिक्षा मिलती है कि हमको हर चीज का सदुपयोग करना चाहिए।भगवान गणपति के प्रिय भोग मोदक आनंद, ज्ञान और मान का प्रतीक है। यह हमे सदैव सात्विक और शुद्ध रहकर जीवन का आनंद लेने का संदेश देता है।
गणेशजी ने अपने शस्त्र कुल्हाड़ी से गणपति ने अनेक राक्षसों का अंत किया है। हाथों में कुल्हाड़ी दर्शाती है कि इससे मनुष्य अपने क्रोध, लालच और बुराइयों को काट सकता है। भगवान गणपति ने चूहे को अपना वाहन बनाया है। इसका अर्थ है कि मनुष्य को अपनी इच्छाओं पर सवारी कर जीवन में सफलता अर्जित कर सकता है। प्रथम पूजनीय भगवान गणेश अपने एक हाथ से सभी को ज्ञान और सुख व शांति का आशीर्वाद देते हैं।