संघ मंत्र के जनक: डॉ हेडगेवार जन्मतिथि चैत्र शुक्ला प्रतिपदा

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       (इस वर्ष 30 मार्च) पर विशेष 
                                                 (दिव्यराष्ट्र के लिए विजय विप्लवी)
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम देश की जनता के लिये अब अपरिचित नहीं है, देश के प्रधानमंत्री सहित विभिन्न विशिष्ट पदों पर आसीन व्यक्ति गर्व के साथ संघ से अपने सम्बन्धों को स्वीकार करते है। संघरूपी पौधा अपने एक सौ वर्षों के इतिहास के साथ अब विश्वपटल पर आज वटवृक्ष के रूप में अपना स्थान सुनिश्चित कर चुका है। संघ आज विश्व के सबसे बडा स्वयंसेवी संगठन हैं, आज विश्वभर में संघ की अपनी पहचान है, लेकिन एक शताब्दी पूर्व इस वटवृक्ष का बीजारोपण करने वाले संघ संस्थापक के नाम व जीवनवृत्त से आज भी आमजन अपरिचित है। इसका कारण है, संघ संस्थापक द्वारा प्रदत्त संघ की वह विशिष्ट कार्यपद्धति जिसमें व्यक्ति की अपेक्षा तत्व या सिद्धान्त को अधिक महत्व दिया जाता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आद्यसरसंघचालक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रेल 1889 (चेत्र शुक्ला प्रतिपदा विक्रम संवत् 1946) को नागपुर में पिता बलिराम व माता रेवती बाई के घर में हुआ।
बालक केशव में राष्ट्रप्रेम का भाव बाल्यकाल से ही था, इसलिये उन्हें ’जन्मजात देशभक्त’ भी कहा जाता है। आठ वर्ष की आयु में उनके विद्यालय में महारानी विक्टोरिया के राज्यारोहण की हीरक जयन्ती के अवसर पर विद्यालय में बंटी गयी मिठाई को बालक केशव ने कूडेदान में फेंक दिया। इसी प्रकार नागपुर में सीताबर्डी के किले पर फहराने वाले यूनियन जैक (फिरंगी ध्वज) को उतारने के लिये अपने बालमित्रों के साथ अपने शिक्षक नानाजी वझे के कमरे से किले तक सुरंग बनाने की योजना बनाकर वहां खुदाई शुरू कर दी। इस बाल उपक्रम की सफलता की संभावना चाहे शून्य रही हो, लेकिन इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत के परतंत्र होने पीडा बालक केशव के मन को कचोट रही थी। विद्यालय में शिक्षाधिकारी के आगमन पर पूरे विद्यालय में एक साथ वंदेमातरम् घोष के साथ स्वागत की योजना विद्यार्थी केशव ने अपने मित्रों के साथ बनाई और इसे सफल भी की। इस घटना के बाद उन्हें नागपुर में विद्यालय से निष्कासित कर दिया गया। उन्होनें मेट्रिक की पढाई पूना जाकर पूरी की।
1910 में वे डॉक्टरी की पढाई करने कलकत्ता गये। उस समय वह शहर स्वतंत्रता आंदोलन का केन्द्र बना हुआ था। वे वहां क्रांतिकारियों से जुड गये। 1915 में पढाई पूरी करके वापस नागपुर लौटे और कांग्रेस में सक्रीय हो गये। 1920 में वे विदर्भ प्रांत कांग्रेस के मंत्री बने। 1921 में स्वतंत्रता आंदोलन में उन्हें गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया गया, जहां उन्हें एक वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गयी।
डॉ. हेडगेवार के मन में चिन्तन का एक प्रश्न रहता था, यह देश परतंत्र क्यों हुआ? अंत में वे इस निष्कर्ष पर पहूचे की समाज में एकात्मता का सर्वथा अभाव है और यह भाव आये बिना, यदि स्वाधीनता मिल भी गयी तो वो स्वतंत्रता अस्थायी होगी। इसी चिंतन के परिणामस्वरूप डॉ. हेडगेवार ने 36 वर्ष की आयु में 1925 की विजयादशमी के दिन नागपुर में कुछ तरूण विद्यार्थियों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  की स्थापना की। कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पारित होने के बाद देशभर में तिरंगा फहराने का आह्वान किया, तो डॉ. हेडगेवार ने भी संघ की शाखाओं पर तिरंगा फहराने का निर्देश दिया था।
1930 में जंगल सत्याग्रह में संघ के आद्यसरसंघचालक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने भाग लिया था। सत्याग्रह में जेल जाने की संभावना थी, इसलिये वे सरसंघचालक का दायित्व अस्थायी रूप से डॉ. लक्ष्मण वासुदेव परांजपे को सौप कर गये थे। इस सत्याग्रह में उन्हें नौ माह की जेल हुई।
1940 तक आते आते समर्पित युवाओं को जोडने के सफल उपक्रम के कारण संघ का अखिल भारतीय स्वरूप बन गया था , लेकिन सतत प्रवास के मध्य 15 वर्षों की इस अहर्निश साधना के कारण डॉ. हेडगेवार का वज्र जैसा शरीर अब रूग्ण हो गया था। 9 जून 1940 को नागपुर में संघ शिक्षा वर्ग तृतीय वर्ष के दीक्षांत बौद्धिक वर्ग में उन्होनें कहा था – ’’प्रतिज्ञा कर लोजब तक तन में प्रााण है, संघ को नहीं भूलेगें। किसी भी मोह से आपको विचलित नहीें होना चाहिये। अपने जीवन में कभी यह कहने का कुअवसर न आने दीजिये पांच साल पहले मैं संघ का सदस्य था। हम लोग जब तक जीविज है, तब तक स्वयंसेवक रहेगें।‘‘
इस वर्ग के बाद डॉ. हेडगेवार की अस्वस्थता और बढ गयी। 21 जून 1940 को प्रातः उन्होनें देहत्याग कर दिया। इससे पूर्व उन्होनें सरसंघचालक के दायित्व के लिये श्रीगुरुजी माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर को नामित कर दिया था। डॉ. हेडगेवार के पश्चात संघ ने उनके नेतृत्व में समाज के सभी क्षेत्रों मुझे में आशातीत विस्तार पाया।
उनके तपस्वी जीवन दर्शन व विचारों से अनुप्राणित युवाओं ने उनके विचारों से जुडे संगठनों की शाखाओं को विश्वभर में संचालित किया हुआ है। डॉ. हेडगेवाररूपी उसी बीज ने अपनी तपस्या से स्वयं को गलाकर संघरूपी वटवृक्ष देश को समाज को दिया है। इस संघ-मंत्र के जनक संघ के आद्यसरसंघचालक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार को जन्म दिवस पर शत शत नमन ।
डॉ. विजय विप्लवी
पूर्व पार्षद, उदयपुर
(लेखक विगत 47 वर्षों से संघ से जुडे है, पूर्व में संघ में विभिन्न दायित्वों का निर्वाह कर चुके है)

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