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योग का एक दशक: मिलन का एक जीवनकाल: शांति की अनंत समय

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अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर दाजी का संदेश

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर मैं आप सभी के अच्छे स्वास्थ्य, स्वस्थ मन, नियंत्रित भावनाओं और इन सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक कल्याण की कामना करता हूँ।

हम सभी योग करने के लाभों को जानते हैं – योग आसन, प्राणायाम, मुद्राएँ, श्वास संबंधी व्यायाम, इत्यादि। हम यह भी जानते हैं कि योग किस तरह ताकत, संतुलन और लचीलापन बढ़ाता है, पीठ दर्द से राहत देता है या गठिया के लक्षणों को कम करता है, हृदय के स्वास्थ्य में सुधार करता है, हमें बेहतर नींद लेने में मदद करता है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह हमें सुबह के समय अधिक ऊर्जा देकर हमारे मनोभाव को बेहतर बनाता है, तनाव को प्रबंधित करने में मदद करता है और यह सूची बहुत लंबी है। इन चीजों के बारे में काफी कुछ लिखा और कहा जा चुका है।

हम यह भी जानते हैं कि योग के बहुत सारे मार्ग, शैलियाँ या शाखाएँ हैं – जैसे हठ योग, अष्टांग योग, बिक्रम योग, अयंगर योग इत्यादि। अभ्यासकर्ता के रूप में हम अपनी ज़रूरतों या जिस भी शैली को अपनाना हम को सहज लगता है, उसके आधार पर विभिन्न शैलियों या मार्गों को चुन सकते हैं। हम सभी इन चीज़ों को जानते हैं और उनके बारे में पता लगाकर अपने जीवन, जीवनशैली और ज़रूरतों के अनुसार सबसे अच्छा चुन सकते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की दसवीं वर्षगाँठ होने के नाते मैं अपने गुरु पूज्य बाबूजी महाराज द्वारा कही गई एक गहन, लेकिन बहुत ही सरल सच्चाई को साझा करने जा रहा हूँ। बाबूजी महाराज ने कहा,

“योग क्या है? यह वास्तविकता की अनुभूति है।
आत्मा क्या है? यह वास्तविकता की चिंगारी है।”

उन्होंने यह भी कहा है, “वास्तविकता की तुलना में हम सर्वशक्तिमान के सागर में एक बूँद की तरह हैं और किसी तरह हमें उस बूँद से नदी बनना है।” क्यों? क्योंकि जैसा कि महान योगिक संत कबीर दास जी ने कहा, “बूँद को सागर में विलीन होना है, उसे सागर बनना है।“ लेकिन मैं यह क्यों कह रहा हूँ कि हम नदी बन जाएँ? क्योंकि एक नदी अपने रास्ते में आने वाली सभी बूँदों को सागर में विलीन होने में मदद करती है। अगर सभी बूँदों को सागर में मिल जाना है, तो हमें नदी बनना होगा। एक बूँद के सागर में मिल जाने में उसकी क्या महिमा है?

यही सत्संग का सार है। फ्रांसीसी इसे “एग्रेगोर” या समूह मन कहते हैं। मैं इसे सामूहिक हृदय कहना पसंद करता हूँ। एक बार एक बहुत पुराने प्रयोग के बारे में बताया गया था| एक वैज्ञानिक ने एक जीवित हृदय की एक कोशिका या एक छोटा सा टुकड़ा लिया और उसे सूक्ष्मदर्शी से देखा, और वह उसे धड़कता हुआ देख सका। जब उसने उसी हृदय की एक और कोशिका को उसके पास रखा और कोशिकाओं को एक दूसरे के बगल में रखे जाने की प्रतीक्षा की, तो वे एक साथ धड़कने लगीं।

अब कल्पना करें कि अगर दुनिया के सभी दिलों के बीच सामंजस्य हो तो कितना अच्छा होगा! यही योग है!

योग का अर्थ है मिलन।
योग का अर्थ उस मिलन को प्राप्त करने के साधनों में भी है। यह व्यक्तिगत आत्मा का ब्रह्मांडीय आत्मा या स्वयं या अस्तित्व से संबंध है|

उस सामंजस्य और प्रतिध्वनि को प्राप्त करने के लिए हम व्यक्तिगत रूप से और साथ मिलकर योग का अभ्यास करते हैं। क्योंकि यदि व्यक्ति अपने भीतर, अपने कई व्यक्तित्वों के बीच एकीकृत नहीं है, तो हम मानवता की एकता की कल्पना भी नहीं कर सकते। या यहाँ तक कि एक समुदाय के भीतर भी एकता की कल्पना नहीं कर सकते। और यह एकीकरण विचारों, दर्शन, नैतिकता और नियमों के बजाय भावनाओं के स्तर पर आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। यहीं पर हार्टफुलनेस का योग एक अधिक सूक्ष्म, सरल, स्थायी साधन है।

हृदय का योग मानवता जितना ही पुराना है, वेदों और उपनिषदों जितना ही पुराना है, बुद्ध के हृदय सूत्र जितना ही पुराना है, ईसा मसीह और माता मरियम के पवित्र हृदय जितना ही पुराना है, प्राचीन मिस्र के चिकित्सकों जितना ही पुराना है जिनके लिए हृदय मानव प्रणाली का सबसे कीमती हिस्सा था, मस्तिष्क से भी अधिक।

योग मानवता का हृदय है। इसीलिए बाबूजी महाराज ने इसे “वास्तविकता की अनुभूति” कहा है।
मैं आप सभी को आमंत्रित करता हूँ कि आप अपने दिलों को ब्रह्मांड के सभी दिलों के साथ जोड़ने का प्रयास करें, और इसके लिए पहला कदम उठाते हुए आइए आज ध्यान करें। आप जहाँ भी हों, अपने शहरों में हार्टफुलनेस केंद्रों पर जाएँ या अपने घरों में ही बैठें और योगिक ट्रांसमिशन या प्राणहुति की उपस्थिति में कुछ मिनटों के लिए ध्यान करें। आप मोबाइल ऐप, हार्ट्सऐप का उपयोग करके किसी ट्रेनर से जुड़ सकते हैं, और आइए हम सब मिलकर इस यात्रा की शुरुआत करें।

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