गंगानगर: उत्तरी राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के कपास किसानों को हाल में गुलाबी कीटों (Pink Bollworms) के लगातार हमलों के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ा है। ये गुलाबी कीट जलवायु की परिस्थितियों, अपर्याप्त फसल चक्र और कुछ कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने सहित विभिन्न कारकों के कारण कपास की फसल को भारी क्षति पहुंचा रहे हैं। ऐसे में इससे निपटना एक बड़ी चुनौती है। स्थित के मद्देनजर राजस्थान सरकार ने राज्य के प्रमुख कपास उत्पादक जिलों, खासकर हनुमानगढ़, गंगानगर और बीकानेर, में गुलाबी कीटों के संक्रमण से निपटने के लिए एक सक्रिय अभियान शुरू किया है। इन जिलों में पिछले साल करीब 6 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कपास की बुआई हुई थी। अभियान के तहत, राज्य के कृषि विभाग को किसानों के साथ जुड़ने और उन्हें जागरूक करने की सलाह दी गई है। गुलाबी कीटों के संक्रमण के प्रति किसानों में जागरूकता बढ़ाने के अभियान में कृषि विभाग को कई अग्रणी बीज कंपनियों से भी सहयोग मिला है।
अभियान के तहत ग्राम पंचायत स्तर की 600 से अधिक बैठकें आयोजित की गईं, जिनमें क्षेत्र के कपास उत्पादक किसानों को शामिल किया गया। ये बैठकें जरूरी सूचनाओं के प्रसार और गुलाबी कीटों के प्रबंधन की रणनीतियों के संबंध में व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान करने में महत्वपूर्ण साबित हुईं। इनके अलावा, स्थानीय स्तर पर व्यापक मीडिया कवरेज के माध्यम से भी जागरूकता बढ़ाने के प्रयास किये गये।हाइब्रिड बीज की प्रमुख कंपनी ‘रासी सीड्स’ इस तरह की गतिविधियों के माध्यम से 20 हजार से अधिक किसानों तक पहुंची। आईसीएआर-सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर कॉटन रिसर्च (सीआईसीआर), सिरसा, हरियाणा के प्रधान वैज्ञानिक तथा उत्तरी क्षेत्रीय स्टेशन के प्रमुख डॉ. ऋषि कुमार ने गुलाबी कीटों के प्रभावी प्रबंधन की रणनीतियों को लागू कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी विशेषज्ञता उत्तरी राजस्थान में टिकाऊ कपास खेती प्रथाओं को सुनिश्चित करने और गुलाबी कीट से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने संबंधी सिफारिशें तैयार करने में महत्वपूर्ण साबित हुई हैं।
कुछ प्रमुख सिफारिशों में रबी फसलों की कटाई के बाद गुलाबी कीट के प्यूपा को सूरज की रोशनी में लाने के लिए गहरी जुताई करना, संक्रमण के संभावित स्रोतों को खत्म करने के लिए कपास की बुआई से पहले खेतों को साफ करना, वयस्क गुलाबी कीटों को फसल तक पहुंचने से रोकने के लिए प्लास्टिक शीट या जाल का उपयोग करना और गुलाबी कीटों के संक्रमण की निगरानी तथा नियंत्रण के लिए बुआई के करीब 40-50 दिन बाद फेरोमोन जाल लगाना आदि शामिल हैं। इन उपायों को सफलतापूर्वक लागू करके, किसान गुलाबी कीटों के संक्रमण को कम कर सकते हैं और क्षेत्र में कपास की पैदावार बढ़ा सकते हैं।
कृषि अनुसंधान केंद्र, श्रीगंगानगर के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक रूप सिंह मीना गुलाबी कीटों का संक्रमण रोकने के लिए सक्रिय उपायों की आवश्यकता पर जोर देते हैं। वह अनुशंसित रणनीतियों का पालन करने पर जोर देते हैं, जिनमें बुआई से पहले उचित फसल अवशेष प्रबंधन और पूरे फसल चक्र में प्रतिकूल मौसम की स्थिति से निपटने की तैयारी करना शामिल है, क्योंकि ये स्थितियां कपास की पैदावार को काफी हद तक प्रभावित कर सकती हैं।
विभिन्न विशेषज्ञ कीटनाशक के छिड़काव के दौरान सही अंतराल और मात्रा के साथ संपूर्ण फसल को कवर करने पर भी जोर देते हैं। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि छिड़काव करते समय पौधे पूरी तरह सूखे हों। साथ ही किसानों को ‘रेडी-टू-यूज़’ कीटनाशक मिश्रण का उपयोग नहीं करने की सलाह दी जाती है।
अन्य प्रभावी तकनीकों में गुलाबी कीटों के जीवन चक्र को बाधित करने के लिए फसल चक्र अपनाना, चरम संक्रमण अवधि से पहले फसल तैयार कर लेने के लिए जल्दी कपास बोना, और कपास के खेतों से गुलाबी कीटों को दूर करने के लिए भिंडी जैसी जाल फसलों का उपयोग करना शामिल है। क्षतिग्रस्त बीजकोष और लार्वा जैसे संक्रमण के लक्षणों की समय रहते पहचान के लिए नियमित निगरानी महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, फेरोमोन ट्रैप का उपयोग गुलाबी कीटों की गतिविधि की निगरानी में मदद करता है और किसानों को कीटनाशक अनुप्रयोगों के समय को अनुकूलित करने में सक्षम बनाता है।
पिछले वर्षों में मध्य और दक्षिण भारत में सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से गुलाबी कीटों से उत्पन्न चुनौतियों को सफलतापूर्वक संभाला और प्रबंधित किया गया था। कृषि विभाग के सक्रिय निर्देशन और सहयोगात्मक प्रयासों से उत्तर भारत में भी स्थिति को सफलतापूर्वक संभाला जा सकता है।
संदेश स्पष्ट है- कपास की खेती छोड़ना समाधान नहीं है। इसकी बजाय, स्वयं को ज्ञान से लैस करने और विशेषज्ञों की सलाह एवं जरूरी तकनीकों को लागू करने की जरूरत है। जब विशेषज्ञों के मूल्यवान सुझावों को अमल में लाया जाता है, तो कपास की खेती लाभदायक बनी रहती है।
भारत के कस किसान देश के कपड़ा उद्योग की रीढ़ हैं। कपास उगाना जारी रखकर ही भारत कपास उत्पादन और कपड़ा उद्योग में अगुआ बना रह सकता है। इसके अलावा, कपास की खेती परंपरागत गेहूं-धान चक्र के नुकसान से छुटकारा दिलाने के लिए एक व्यावहारिक समाधान प्रदान करती है, जिससे आर्थिक और पर्यावरणीय दोनों लाभ मिलते हैं। यह एक ऐसा समाधान है, जो राष्ट्र के लिए सतत विकास और समृद्धि का वादा करता है।