Home समाज भारत विश्व का कल्याण चाहने वाला देश : डॉ. भागवत

भारत विश्व का कल्याण चाहने वाला देश : डॉ. भागवत

23 views
0
Google search engine

सीकर, दिव्यराष्ट्र/राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि भारत दुनिया में धर्म देने वाला और विश्व का कल्याण चाहने वाला देश है। यहां के वेदों में सभी शास्त्र निहित हैं, ऋषियों की तपस्या से राष्ट्र में बल और ओज का संचार हुआ है।

डॉ. भागवत मंगलवार को राजस्थान के सीकर जिले में स्थित श्री जानकीनाथ बड़ा मंदिर, रैवासा धाम में ब्रम्हलीन पूज्य रेवासा पीठाधीश्वर स्वामी राघवाचार्य वेदांती महाराज की प्रथम पुण्य तिथी पर आयोजित ‘श्री सियपिय मिलन समारोह’ में बोल रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने स्वामी राघवाचार्य की तीन फीट ऊंची संगमरमर की प्रतिमा का अनावरण और नव-निर्मित गुरुकुल भवन का लोकार्पण भी किया।

सरसंघचालक ने कहा कि इतिहास ने भी जब आंखें नहीं खोली थी। तब से विश्व को सत्य, धर्म और आध्यात्म का मार्ग दिखाने और मानवता के कल्याण का कार्य भारतवर्ष और भारत का हिंदू समाज कर रहा है। सनातन काल से रीति ऐसे ही चल रही है। कई उतार-चढ़ाव आए। कभी हम स्वतंत्र रहे। कभी वैभव संपन्न रहे। कभी हम दरिद्र हो गए। कभी हम परतंत्र हो गए। अत्याचारी-पीड़ित हो गए। फिर भी यह काम लगातार चलता रहा। जब-जब दुनिया को विशेष रूप से इसकी आवश्यकता पड़ती है। तब भारत का उत्थान होता है। आज हम देख रहे हैं अप्रत्याशित रूप से अगर स्वतंत्रता के बाद का हमारा इतिहास देखें तो इतिहास के आधार पर कोई यह तर्क नहीं कर सकता कि भारतवर्ष उठेगा, लेकिन भारत वर्ष उठ रहा है। विश्व में अपना स्थान बना रहा है।
डॉ. भागवत ने कहा कि भारत के स्वतंत्र होने के बाद लोगों ने भविष्यवाणी की थी कि यहां प्रजातंत्र चल ही नहीं सकता। प्रजातंत्र चला भी और जब इस पर संकट आया तो लोगों ने उसका प्रतिकार करके प्रजातंत्र को कायम रखा है। आज भारत आश्चर्यकारक रीति से प्रजातांत्रिक देश के नाते प्रजातंत्र के मामले में सारी दुनिया से आगे है।
उन्होंने कहा कि सत्य एक ही है, वही विश्वरूप है और वही विविध रूप में दिखाई देता है। मिथ्या कुछ समय तक ही चलती है, बाद में सब एक ही में विलीन हो जाता है। इसलिए हमारे यहां संतों की ऐसी कथाएं भी मिलती हैं। रामकृष्ण के जीवन का एक प्रसंग वर्णित है कि पंचवटी में वे गंगा को निहारते हुए बैठे थे। निहारते-निहारते उनका ध्यान लग गया और वे आसपास के समस्त दृश्य के साथ एकरूप हो गए। उसी समय सामने की हरियाली पर से एक गाय गुज़री। वे इतने गहरे एकत्व में लीन थे कि उनके अपने सीने पर गाय के पैरों के निशान पड़ गए। इतनी गहन तनमयता सम्पूर्ण सृष्टि के साथ प्राप्त करने की गुरुकुंजी हमारे पास है, यह चाबी हमारे पास है और यह कल्याणकारी चाबी सभी लोगों के लिए है। ऋषि-मुनियों ने सोचा कि सब एक हैं, सब अपने हैं। जो इतना महान श्रेय हमें मिला है, उसे संपूर्ण विश्व को देना चाहिए। लेकिन पूरे विश्व को यह देने के लिए केवल एक व्यक्ति पर्याप्त नहीं होगा; इसके लिए एक पूरा राष्ट्र अपना जीवनध्येय बनाकर इसे जिए। इसी उद्देश्य से ऋषियों ने अपनी तपस्या से इस राष्ट्र की निर्मिती की है।
डॉ. भागवत ने राघवाचार्य जी का स्मरण करते हुए कहा कि मेरा उनसे संबंध सरसंघचालक बनने के बाद ही हुआ। पहली भेंट में मेरे मन में दो बातें आईं पहली, उनके हृदय में सभी के लिए स्नेह था, और दूसरी, वे सभी को आत्मीय भाव से देखते थे। उन्होंने बताया कि उनके जीवनकाल में मैं एक बार रैवासा धाम आ चुका हूं। उस समय उन्होंने मुझे गुरुकुल के छात्रों से भी मिलवाया था। उस वक्त भी वही स्नेह और समाज के प्रति वही तड़पन दिखाई दी। बहुत से ऐसे संत हैं जो संघ के कार्यक्रमों में नहीं आते, लेकिन वे स्वयंसेवक ही होते हैं। मैंने उनसे कहा था कि जब-जब आऊंगा, आपसे मिलूंगा। मैं दो-तीन बार आया, लेकिन उस समय महाराज प्रवास पर थे, इसलिए धाम नहीं आ सका। फिर से यहां आना, उनके जाने के बाद होगा। इसका मुझे बिल्कुल भी अनुमान नहीं था। ऐसा अनुमान किसी को होता भी नहीं है। सरसंघचालक ने कहा कि मैं देख रहा हूं कि समाज के हित के लिए वही तड़पन यहां के वातावरण में विद्यमान है। महाराज के जाने के बाद उनकी तपस्या आज दिखाई दे रही है। इस जगह भक्तमाल की रचना हुई। स्थान की परंपरा ऐसी ही चलती रहेगी। यह आज मुझे विश्वास हो गया है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here