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एमआईटी ,डब्ल्यूपीयू में सस्टेनेबल टनलिंग पर इंटरनेशनल वर्कशॉप

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केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा: अगले 10 सालों में ₹2.5 से ₹3 लाख करोड़ रुपये के टनल प्रोजेक्ट्स पूरा करने की योजना हैं

• एमआईटी – डब्ल्यूपीयू ने भारत के पहले टनलिंग और अंडरग्राउंड कंस्ट्रक्शन एक्सीलेंस सेंटर का शुभारंभ किया।

पुणे, दिव्यराष्ट्र/ एमआईटी – डब्ल्यूपीयू वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने ‘सस्टेनेबल टनलिंग फॉर बेटर लाइफ’ पर इंटरनेशनल वर्कशॉप का उद्घाटन किया, जिसका आयोजन सस्टेनेबल इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास को बढ़ावा देने के लिए किया गया है। इंटरनेशनल टनलिंग एंड अंडरग्राउंड स्पेस एसोसिएशन की शिक्षा एवं प्रशिक्षण समिति के सहयोग से दो दिनों के इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें भारत, यूरोप, यूके और अमेरिका के ग्लोबल एक्सपर्ट एकजुट हुए।
एमआईटी – डब्ल्यूपीयू में टनलिंग और अंडरग्राउंड कंस्ट्रक्शन एक्सीलेंस सेंटर का उद्घाटन इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण था, जो भारत में इस तरह की पहली फैसिलिटी है। टनल मॉनिटरिंग लैब के साथ-साथ ड्रिलिंग एवं ब्लास्टिंग लैब की सुविधा भी उपलब्ध है। इस एक्सीलेंस सेंटर को सैंडविक और टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड के साथ मिलकर बनाया गया है, जिसका उद्देश्य अंडरग्राउंड कंस्ट्रक्शन टेक्नोलॉजी में एडवांस्ड रिसर्च तथा ट्रेनिंग में सहयोग देना है।
इस वर्कशॉप में मुख्य संबोधन के अलावा तकनीकी सत्र और पैनल चर्चाओं का भी आयोजन किया गया, जिनकी अध्यक्षता अर्नोल्ड डिक्स (इंटरनेशनल टनलिंग एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष) और इस क्षेत्र के अन्य जाने-माने विशेषज्ञों ने की।
नितिन गडकरी ने अपने संबोधन में कहा “भारत इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के सबसे अच्छे दौर में कदम रख रहा है, जिसमें सुरंगें कनेक्टिविटी, सुरक्षा और सस्टेनेबिलिटी में बहुत बड़ी भूमिका निभा रही हैं। हम अगले 10 सालों में ₹2.5 से ₹3 लाख करोड़ रुपये के टनल प्रोजेक्ट्स पूरा करने की योजना बना रहे हैं। इसे हकीकत में बदलने के लिए, हमें क्वालिटी से कोई समझौता किए बिना कंस्ट्रक्शन के खर्च को कम करना होगा। इसका मतलब है कि, हमें नई टेक्नोलॉजी के साथ-साथ सीएनजी, इथेनॉल, हाइड्रोजन और डीजल के इलेक्ट्रिक विकल्पों जैसे सस्टेनेबल फ्यूल का उपयोग करना होगा। हमें पुरानी टनलिंग मशीनों की मरम्मत करके उसे फिर से नया बनाना होगा, ऑस्ट्रिया, नॉर्वे और स्पेन जैसे यूरोपीय देशों से पुरानी मशीनों का आयात करना होगा, और सबसे बड़ी बात हमें अपनी खुद की मशीनें बनानी होंगी। भारत की भौगोलिक संरचना देश के हर हिस्से में अलग-अलग है, इसलिए रिसर्च और ट्रेनिंग बहुत ज़रूरी है। फैकल्टी के साथ-साथ इंडस्ट्री के एक्सपर्ट्स और जानकार इंजीनियरों को साथ मिलकर छात्रों को सही राह दिखानी चाहिए। मेरा मंत्रालय इससे जुड़े इक्विपमेंट और ट्रेनिंग के साथ हर तरह का सहयोग देने के लिए तैयार है। इनोवेशन, रिसर्च और सच्ची लगन के साथ, हम भारत को टनलिंग टेक्नोलॉजी और इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में आत्मनिर्भर बना सकते हैं।” इस मौके पर उन्होंने सस्टेनेबल टनलिंग टेक्नोलॉजी में रिसर्च की दिशा में पहला कदम उठाने के लिए एमआईटी – डब्ल्यूपीयू की तारीफ़ की, जो भारत जैसे विकासशील देश के लिए फिलहाल सबसे बड़ी ज़रूरत है।
इस मौके पर अर्नोल्ड डिक्स ने कहा, “ये एक्सीलेंस सेंटर पूरी दुनिया के लिए काफी मायने रखता है, क्योंकि यह इंजीनियरिंग में विशेषज्ञता और उसे उपयोग में लाने की काबिलियत के बीच के अंतर को दूर करता है। बहुत बार, युवा कामगार जोखिम में पड़ जाते हैं क्योंकि उन्हें इतनी बारीकी से डिज़ाइन की गई चीज़ों को सुरक्षित तरीके से बनाने के लिए ज़रूरी ट्रेनिंग नहीं मिल पाती है। एमआईटी – डब्ल्यूपीयू में, मुझे फैकल्टी और छात्रों के बीच एक अनोखा जुड़ाव दिखता है, जो एक परिवार की तरह लगता है। जिन ग्रेजुएट्स से मैं यहाँ दो साल पहले मिला था, वे अब देश का इन्फ्रास्ट्रक्चर बना रहे हैं, जो वाकई काबिले तारीफ है। यह एक्सीलेंस सेंटर सिर्फ़ ज़रूरी ही नहीं है, बल्कि उन मुश्किलों को भी स्वीकार करता है जिनसे हम जूझ रहे हैं। मुझे पूरा यकीन है कि, यह देश और दुनिया में क्षमता विकसित करने, लोगों की जान बचाने और सस्टेनेबल इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाएगा।”

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