शिव भक्ति से ‘राम बने परशुराम’

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(डॉ. सीमा दाधीच)

परशुराम मिटाता अन्याय को, परशुराम पूजता गाय को, जानता है वह संहार करना, जब राह हो पहलगांव का
वो चिरंजीव है इस धरा पर ,जमदग्नि की संतान है, वो परशुराम है, वो परशुराम है।
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया पर भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम का जन्म रेणुका और जमदग्नि के यहां हुआ।
इनके बचपन का नाम राम था। राम ने शिव की आराधना की और भगवान शिव ने प्रसन्न होकर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभ नामक परशु प्रदान किया। शिव जी से उन्हें श्री कृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्वराज स्तोत्र एवं मंत्र कल्पतरु भी आशीर्वाद में मिले शिव जी उन्हें सब उनकी तपस्या से प्रभावित होकर दिए।शस्त्र विद्या के महान गुरु के रूप में भी परशुराम ने अपनी पहचान बनाई। एकादश छंदयुक्त शिवा पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र की रचना भी परशुराम ने की। परशुराम को चिरंजीवी माना जाता है।
परशुराम ने हमेशा नारी के सम्मान को महत्व दिया है। उन्होंने ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूया और महर्षि अगस्त्य की पत्नी लोपा मुद्रा के साथ नारी जागृति हेतु अथक प्रयास किया, और महाभारत काल में अम्बा के सम्मान की रक्षा के लिए भीष्म से युद्ध भी किया था।
अंबा का हरण और अंबा की याचिका पर अपने ही शिष्य भीष्म से युद्ध किया, यह नारी की रक्षा के प्रति सम्मान था।
परशुराम ने प्रतिज्ञा ली थी कि वे केवल ब्राह्मणों को ही युद्ध कला सिखाएँगे क्योंकि वे पहले से जानते थे कि क्रोधित व्यक्ति के हाथ में हथियार कितने विनाशकारी हो सकते हैं। ब्राह्मण अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखते थे और शांत और धैर्यवान थे। इसलिए वे इसका इस्तेमाल केवल दूसरों की भलाई के लिए करेंगे, न कि शक्ति प्राप्त करने के लिए। वे पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के रखने के समर्थक थे। नारी जागृति उनका मुख्य ध्येय था। वे पशु पक्षी प्रेमी भी थे और उनकी भाषा भी जानते थे।
हैहय राजवंश का 21 बार सर्वनाश इसकी बड़ी वजह केवल गौ रक्षा और झूठ बोलकर गौ का चुराने का कृत्य करना और उनके पिता की हत्या और माता का सती होना उनके प्रतिशोध की भावना से युद्ध किया, परशुराम ने गर्भावस्था में किसी भी स्त्री पर वार नहीं किया और यह युद्ध इसलिए 21 बार हुआ।
भगवान श्री कृष्ण को युद्ध कौशल और शास्त्रों का ज्ञान भी परशुराम ने दिया परशुराम से ही कृष्ण ने युद्ध की रणनीति के बारे में समझा था। श्री कृष्ण और परशुराम का गुरु शिष्य का संबंध था उसके द्वारा ही श्री कृष्ण युद्ध कौशल में महारथी हुए। परशुराम जी ने कर्ण ,दुर्योधन अन्य क्षत्रिय राजाओं को भी शास्त्र शिक्षा दी थी जिससे वह युद्ध कौशल में महारथी हुए। भगवान शिव के भक्त परशुराम ने यह सब कठिन शिव तपस्या से दिव्यास्त्र और विद्या प्राप्त की थी।
आरक्षण की तलवारों से,
प्रतिभाएं काटी जाती हैं।धर्म और जाति की दीवारों से,
मानव नस्ल बाटी जाती हैं।।
आज आरक्षण और भाई भतीजावाद से देश में युवा पीढ़ी आक्रोश में है हमें आरक्षण को खत्म करना चाहिए।
प्रकृति प्रेमी पशु पक्षियों की सभी भाषाओं को समझने वाले परशुराम बाल्यावस्था से ही जानवर को भी स्पर्श करके मित्र बना लेते थे, उन्हें प्रकृति के प्रति गहरा प्रेम और जानवरों के प्रति सहानुभूति थी।
परशुराम जी दान में भी पीछे नहीं रहे उन्होंने यज्ञ समाप्ति पर धर्मात्मा कश्यप को दक्षिणा के रूप में संपूर्ण पृथ्वी दे डाली और स्वयं महेंद्र पर्वत पर रहने लगे इस तरह पृथ्वी का दान कर दिया। राम सीता मिलन में भी परशुराम जी का धनुष पिनाक जिसे परशुराम ने राजा जनक को दिया था यह धनुष भगवान शंकर ने परशुराम की भक्ति से प्रसन्न हो उन्हें दिया था सीता स्वयंवर में इस धनुष को राम ने तोड़ा था। यह धनुष कोई साधारण धनुष नहीं था बल्कि एक शक्तिशाली हथियार था जिसकी संचालन विधि कुछ ही लोगों को ज्ञात थी। परशुराम का सबसे श्रेष्ठ गुण उनकी वीरता धर्म निष्ठा न्याय प्रियता तपस्या थी परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपने मां का सर काट दिया और बाद में पिता के आशीर्वाद से मां को पुनः जीवित कर माता और पिता की आज्ञा का पालन किया।इसके साथ ही में अन्याय के विरुद्ध हमेशा संघर्ष कर पीड़ितों की रक्षा करते थे। पितृ आज्ञा का पालन करने पर पिता सेतीन वरदान मांगने का आदेश पाकर परशुराम ने पहले वरदान में अपनी मां को जीवित करना दूसरा वरदान अपने भाइयों को सही करना और तीसरा वरदान मांगा कि वह कभी पराजय ना हो और दीर्घायु हो। परशुराम की वाणी में कठोरता रहती थी। आज देश को आतंकवाद के खिलाफ परशुराम के परशु की जरूरत है अब सरकार को परशु से आतंकवादियों के गले को काट देना चाहिए ताकि वह भारत की भूमि पर इस तरह का दुस्साहस न कर सके।
युवा पीढ़ी को भगवान परशुराम के आदर्शों को अपने जीवन में धारण करना चाहिए।

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